कभी कुल्हड़ों से देश के कुम्हारों को रोज़गार देने की बात करनेवाले रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव अब मुंबई के लोकल रेलवे स्टेशनों पर जूता पॉलिश करनेवालों की चमड़ी निकालने जा रहे हैं। उन्हीं की बनाई राष्ट्रीय नीति के तहत मध्य रेलवे ने मुंबई की सेंट्रल और हार्बर लाइन के रेलवे स्टेशनों पर जूता पॉलिश करने का ठेका निजी कंपनियों को देने का फैसला कर लिया है। इसके लिए दो महीने पहले टेंडर जारी किए गए थे और किस कंपनी को यह ठेका मिलेगा, इसका फैसला करीब बीस दिन बाद 28 अक्टूबर को हो जाएगा।
भारतीय रेल के इस कदम का मकसद शुद्ध रूप से कमाई करना है। जहां निजी कंपनी से रेलवे को हर महीने 15 लाख रुपए मिलेंगे, वहीं इस समय मुंबई के रेलवे स्टेशनों पर काम करनेवाले करीब 1000 जूता पॉलिश करनेवालों से उसे 75 रुपए के हिसाब से महीने में 75,000 रुपए ही मिलते हैं। लेकिन रेलवे के इस कदम की खबर मिलते ही जूता पॉलिश करनेवालों के बीच हड़कंप मच गया है और इसी गुरुवार को उन्होंने वीटी (छत्रपति शिवाजी टर्मिनस) स्टेशन पर प्रदर्शन करने का फैसला किया है।
दिलचस्प बात ये है कि मुंबई के लोकल रेलवे स्टेशनों पर तकरीबन सभी जूता पॉलिश करनेवाले उत्तर भारतीय हैं और इनमें से भी ज्यादातर लालू यादव के राज्य बिहार के रहनेवाले हैं। 30-40 साल से यही काम कर रहे हैं। बाप का काम बेटा आगे बढ़ा रहा है। दिन में 100-150 रुपए कमाते हैं। इसमें से सामान पर उनका खर्च लगभग 25 रुपए होता है। इस तरह महीने में हर दिन काम करके 3000 रुपए तक कमा लेते हैं और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं।
अभी तक इनकी दस को-ऑपरेटिव सोसायटियां बनी हुई हैं, जिनके जरिए हर जूता पॉलिश करनेवाला महीने में 75 रुपए रेलवे को देता है। लेकिन अगर यह काम निजी कंपनी को सौंप दिया गया तो वो इनसे हर दिन के 50 रुपए वसूलेगी। इन लोगों का कहना है कि निजी कंपनी को इतना दे देने के बाद उनके खाने के लाले पड़ जाएंगे। अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर इस पेशे से बाहर निकालने का उनका सपना चकनाचूर हो जाएगा।
लालूजी, क्या इनकी शिकायत वाजिब नहीं है? क्या आपके पास रेलवे की आमदनी का बढ़ाने के और तरीके नहीं हैं? मुंबई में लोकल ट्रेन से सफर करनेवाले लाखों नौकरीपेशा लोगों की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुके कामगारों से रोज़ी का ज़रिया छीनकर आपको क्या मिल जाएगा? अगर ठेका देना ही है तो जूता पॉलिश करनेवालों की को-ऑपरेटिव सोसायटियों में से किसी को दीजिए। इनके पेट पर दूसरों को क्यो लात मारने की इजाज़त दे रहे हैं? आपको यह दावा करने से कोई नहीं रोक सकता कि, “हमने बिना हींग या फिटकरी 20,000 करोड कमाया।” लेकिन दमड़ी कमाने के लिए किसी की चमड़ी तो मत निचोड़िए हुज़ूर!!
हरी-भरी छाया में साइकिल से सैर
3 days ago
6 comments:
शायद अब यही बाकी रह गया था.
पूरी की पूरी रेलवे को निजी हाथों मे गिरवी रख कर वाहवाही लूटना एक बात है ,और प्रभावकारी योजनाओं को लागू करके भविश्य निर्माण दूसरी.
अगला नम्बर कुलियों का आने वाला है.
लालू से कैसी आशा
क्यों कर आशा ......
लालू को पता है कि गरीब बोली से ही खुश हो जाता है। वही कर रहे हैं। कहते हैं टिकट का दाम नहीं बढ़ाया लेकिन आरक्षित सीटों की तादाद घटा दी। सब कर दिया तत्काल कोटे के नाम। टीटी को डेढ़ सौ देने के बजाय रेलवे के डेढ़ सौ देकर सीट पाइए। जनता जाए भांड़ में। टिकट कैंसिल कराने जाइए तो पूरी जेब ही काट लेते हैं और पूरी दुनिया में प्रचार ये कि बिना जनता पर बोझ डाले रेलवे का कायाकल्प कर दिया। वाह रे झूठ,
रोचक है! पर पूरा तथ्य जाने बगैर में टिप्पणी से बचना चाहता हूं!
आपकी इस पोस्ट को ध्यानार्थ रेल मंत्री के प्रेस सलाहकार को भेज दिया है।
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