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Showing posts from December, 2008

कसाब का मुकदमा लाइव ब्रॉडकास्ट हो

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मुंबई पुलिस की पकड़ में आए पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब के खिलाफ खुली अदालत में मुकदमा चलाया जाना चाहिए। इसमें प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को बुलाया जाए। साथ ही टीवी चैनलों को इसके लाइव ब्रॉडकास्ट की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि पूरा देश, पूरी दुनिया जान सके कि हकीकत क्या है। इससे हम लश्करे तैयबा और दूसरे आतंकवादी संगठनों और उनके आकाओं को बेनकाब कर सकते हैं। मुकदमा बिना किसी विलंब के हर दिन चलाकर कसाब को भारतीय कानून के मुताबिक सख्त से सख्त सज़ा दी जानी चाहिए। अगर हम सैकड़ों साल पुराने किसी कबीलाई समाज में रह रहे होते तो शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे का कहना सही था कि कसाब को बिना कोई मुकदमा चलाए वीटी स्टेशन पर ले जाकर फांसी चढ़ा देना चाहिए या गोली मार देनी चाहिए, जहां 26 नवंबर की रात आतंकवादियों की गोलियों से 63 मासूम भारतीय मारे गए थे। लेकिन हम एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं जहां घनघोर अपराधी को भी कानूनी बचाव का हक है। और, अपराधी का कोई देश नहीं होता। जो लोग कह रहे हैं कि कसाब अगर पाकिस्तानी नागरिक न होकर भारतीय होता तो उसे वकील दिया जा सकता था, वे लोग असल में मूर्ख और लोकतंत्र

ऐसे ज्ञानी भी न बनो!

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एक जंगल में बहुत ऊंचे स्तर की आईक्यू वाला चीता रहा करता था। बड़ा विद्वान, बुद्धिजीवी, आत्मज्ञानी। दिक्कत बस इतनी थी कि वह दूसरे चीतों की तरह 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से नहीं दौड़ पाता था। इसके चलते हिरन कुलांचे भरते निकल जाते और वह उन्हें पकड़ नहीं पाता। तेजी से दौड़ते-भागते जानवरों का शिकार उसके लिए नामुमकिन हो गया तो क्या करता वह बुद्धिजीवी बेचारा। चूहों, खरगोश, सांप और मेढक जैसे जानवरों को खाकर किसी तरह गुजारा करने लगा। लेकिन उसे यह सब छिपकर करना पड़ता क्योंकि अगर कोई और चीता देख लेता तो यह शर्म के मारे डूब मरनेवाली बात हो जाती। है कि नहीं। आप ही बताएं। वह अक्सर सोचता रहता कि दुनिया का सबसे तेज दौड़नेवाला जानवर होने से आखिर क्या फायदा? मैं तो कुलांचे मारते हिरन तक का शिकार नहीं कर पाता। इसी सोच और उधेड़बुन में डूबा वह एक दिन जंगल के दूसरे चीते के पास जा पहुंचा जो अपनी शानदार रफ्तार के लिए आसपास के सभी जंगलों में विख्यात था। दुआ-सलाम के बाद फटाक से बोला – मेरे पास विकासवादी अनुकूलन की वे सारी खूबियां हैं जिसने हमारी प्रजाति को सबसे तेज दौड़नेवाला जानवर बनाया है। मेरी नाक की

नगई महरा पानी भरो, रोती है नयका नाउनि

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कमर से झुकी, दाएं हाथ में दंड पकड़े उस सांवली औरत ने अपने बाएं हाथ से मेरे बंधे हुए हाथों को बस छुआ भर था कि जादू हो गया। अंबेडकरनगर ज़िले के देवलीपुर गांव में बाबू राम उदय सिंह के जिस नए-नवेले घर के बरामदे के बाहर यह वाकया हुआ, वह घर गायब हो गया। पूरे गांव-जवार के घर-बार, पेड़-पौधे, खेत-खलिहान, गाय-बछरू सब गायब हो गए। बस बचा तो मैं और वह सांवली औरत जिसका नाम है नयका नाउनि। सत्तर के पार की नयका नाउनि। नयका मेरे हाथों पर अपना हाथ बड़ी नरमी से रखे रहीं और बोलीं – भइया सब भुलाइ दिह्या। फिर बह निकली आंसुओं की अजस्र धारा। नयका नाउनि रोने लगीं। मेरी भी आंखें पहले नम हुईं, फिर बहने लगीं। सारी धरती, सारा इलाका मां और बेटे के आंसुओं में डूब गया। ताल-तलैया, गढ्ढे-गढ़ही, कच्चे-पक्के तालाब सभी गले तक भरकर बहने लगे। लगा जैसे घाघरा से निकली मडहा नदी में भयंकर बाढ़ आ गई हो। क्षितिज तक जिधर भी नजर फेरो, पानी ही पानी। दिग-दिगंत तक पानी ही पानी। उसी के बीच चार गज जमीन के द्वीप पर खड़े थे हम दोनों। असली मां और बेटे तो नहीं। लेकिन वह मुझमें एक-एक कर मरते गए अपने चौदह पुत्रों को देख रही थी और मैं उसमें अथा

अजी हां, मारे गए गुलफाम

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ब्लॉग की दुनिया से वनवास के इस दौर में रेणु की कहानी मारे गए गुलफाम और उस पर बनी फिल्म तीसरी कसम का वह अंश बराबर याद आ रहा है जहां कहानी का नायक हीरामन महुआ घटवारिन की कहानी सुनाता है। जिस तरह महुआ घटवारिन को सौदागर उठा ले गया था, वही हालत मुझे अपनी हो गई लगती है। एक मीडिया ग्रुप ने चंद हजार रुपए ज्यादा देकर मुझे उस दुनिया से छीन लिया है जहां मैं चहकता था, लहकता था, बहकता था। लिखना तो छोड़िए, देख भी नहीं पाता कि हिंदी ब्लॉग की दुनिया में चल क्या रहा है। नहीं पता कि समीर भाई कितने सक्रिय है, ज्ञानदत्त जी के मन की हलचल क्या है, कोलकाता वाले बालकिशन क्या कर रहे हैं, कोई टिप्पणियों में समीरलाल को फतेह करने की मुहिम पर निकला कि नहीं? मुंबई में रहते हुए भी न अजदक, न निर्मल आनंद, न ठुमरी और न ही विनय-पत्रिका का हाल मिल पाता है। हां, गाहे-बगाहे विस्फोट की झलक जरूर देख लेता हूं क्योंकि यकीन है कि वहां कोई विचारोत्तेजक बहस चल रही होगी। क्या करूं? लिखना भी चाहता हूं और पढ़ना भी। लेकिन नौकरी के चक्कर में फुरसत ही नहीं मिल रही। पहले अपना हफ्ता दो दिन का और काम का हफ्ता पांच दिन का था। अब अपना हफ्ता