इनफोसिस के मूर्ति दुखी हैं अंग्रेजी को दबाने से
आज के जमाने में सारा खेल धंधे और स्वार्थों का है। किसी को देव मानकर चलना खतरे से खाली नहीं। नहीं तो क्या तुक है कि इनफोसिस के जिस संस्थापक एन आर नारायण मूर्ति को आम भारतीय दंद-फंद से मुक्त और प्रोफेशनल दक्षता के दम पर खड़े नए कॉरपोरेट नेता के रूप में देखता है, वही मूर्ति देश में अंग्रेजी को दबाए जाने से दुखी हैं। उनका कहना है कि राजनेता लोग अंग्रेजी के पीछे पड़ गए हैं। उन्होंने रविवार को न्यूयॉर्क में आईआईटी से निकले पुराने छात्रों के एक जमावड़े को संबोधित करते हुए कहा कि आईआईटी के छात्रों में अंग्रेजी बोलने की काबिलियत और सामाजिकता का कौशल घटता जा रहा है, जबकि उनके शब्दों में, “आईआईटी के छात्र को ग्लोबल नागरिक होना चाहिए और उसे समझना चाहिए कि दुनिया किधर जा रही है।” बात एकदम सही है। आज के जमाने में ग्लोबल नागरिक होना जरूरी है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या अपनी जमीन को पकड़ने से कोई ग्लोबल होने से रुक जाता है? क्या कोई अपनी भाषा जानने से अंग्रेजी में कमजोर हो जाता है? वैज्ञानिक अध्ययन तो यही बताते कि पराई भाषा में वही दक्ष होता है जो पहले अपनी मातृभाषा में दक्ष होता है। किसी भी इंसान की