रणभेरी में राष्ट्रद्रोह की बारूद!
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इसे रेवाड़ी से उठी मोदी की रणभेरी बताया जा रहा है। लेकिन बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किए जाने के दो दिन बाद ही नरेंद्र मोदी ने जिस तरह सेना को सरकार के खिलाफ भड़काया है, वैसी बातें कोई और कहता तो उसे राष्ट्रद्रोह मान लिया जाता। यह सच है कि मोदी पूर्व सैनिकों की रैली में बोल रहे थे। इसलिए सैनिकों के पक्ष में बोलना सहज और स्वाभाविक माना जा सकता है। लेकिन उन्होंने अपने भाषण में कई जगह वो लक्ष्मण रेखा पार की है, जहां सरकार की आलोचना सत्ताद्रोह नहीं, राष्ट्रद्रोह में तब्दील हो जाती है। अपने यहां सेना आज़ादी के छासठ साल बाद भी पूरी तरह अराजनीतिक रही है। यही वजह है कि भारत का हश्र कभी पाकिस्तान जैसा नहीं हो सकता। लेकिन मोदी ने रविवार को अपने भाषण में सेना के राजनीतिकरण की जघन्य कोशिश की है। इसके भीतर एक तानाशाह का एजेंडा छिपा हो सकता है जो प्रधानमंत्री बनने के बाद पार्टी और कार्यकर्ताओं की बदौलत नहीं, सेना की ताकत के बल पर ताकतवर होना चाहता है, राज करना चाहता है। अभी तक भारतीय सेना देश के आंतरिक मामलों में दखल करने से बचती रही है। लेकिन मोदी ने जिस तरह माओवादियों और आतंकवादि...