Posts

Showing posts from May, 2009

मरूं तो समय के सबसे उन्नत विचारों के साथ

Image
एक अभिन्न मित्र से बात हो रही थी। कहने लगे कि इधर दुनिया भर के पचड़े, कामकाज का झंझट, असुरक्षा और रिश्तों के तनाव ने इतनी खींचोंखींच मचा रखी है कि मन करता है सो जाओ तो सोते ही रहो। अतल नींद की गहराइयों में इतना डूब जाओ कि कुछ होश न रहे। एक सुदीर्घ नींद। जब उठो तो छलकती हुई ताज़गी के मानिंद। आखिर मौत भी तो एक सुदीर्घ नींद की तरह है जिससे आप जगते हो तो ओस की तरह ताज़ा, कोंपल की तरह मुलायम, कुंदन की तरह पवित्र, छह महीने-साल भर के बच्चे की आंखों की तरह निर्दोष होते हो। मुझे समझ में आ गया कि यह संघर्षशील व्यक्ति भागकर आत्महत्या जैसी बात नहीं कर रहा, बल्कि उस ऊर्जा स्रोत की तलाश में है जो उसे हर प्रतिकूलता से जूझने में समर्थ बना दे, उस ज्ञानवान विवेक की तलाश में है जो उसे जटिल से जटिल निजी व सामाजिक उलझन को सुलझाने में सक्षम बना दे। अब मैं अपनी तरफ मुड़ा तो अचंभे से भर गया। दस साल पहले मेरी भी तो यही अवस्था थी। फुरसत मिलते ही सोता था तो सोता ही रहता था। हद से ज्यादा सोने के बावजूद उठता था तो एकाध घंटे बाद ही फिर नींद की ढलवा स्लाइड पर सरक जाता था। फिर भी कभी वह ताजगी नहीं मिली थी जिसकी शिद्द