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मोदी, भाजपा व संघ को भारत से इतनी दुश्मनी क्यों?

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अक्सर खुद से बात करता हूं तो बड़ी संजीदगी से सोचता हूं कि मोदी सरकार, भाजपा व संघ को आखिर भारत से इतनी दुश्मनी क्यों है ? आखिर क्यों वे भारत को हर स्तर पर खोखला करते जा रहे हैं ? भारत आज अंदर से जितना विभाजित है, उतना तो शायद बंटवारे के वक्त भी नहीं था। मोदी सरकार ने दो साल पहले अचानक लॉकडाउन लगाकर लाखों मजदूरों को मरने के लिए क्यो छोड़ दिया ? अभी उसने यूक्रेन में फंसे हज़ारों छात्रो को क्यों इस कदर असहाय छोड़ दिया ? आखिर क्यों वह ऊपर से दिखावा करती है, मगर अंदर से तोड़ने का काम करती है ? इसका सबसे बड़ा सबूत है कि नोटबंदी में उसे अर्थव्यवस्था को फॉर्मल बनाने के नाम पर करोड़ों छोटी इकाइयों व उद्यमियों को बरबाद कर दिया। जिस इन्फॉर्मल क्षेत्र या छोटे-छोटे कारोबारियों का योगदान 2016 से पहले तक देश की अर्थव्यवस्था में 80-82 प्रतिशत हुआ करता था, वह अब घटकर मात्र 18-20 प्रतिशत रह गया है। इससे हमारी अर्थव्यवस्था की कमर ऐसी टूटी कि सारा आर्थिक आधार ही चकनाचूर हो गया। असल में मोदी सरकार, भाजपा व संघ के इस भारत-विरोधी चरित्र का स्रोत उस आक्रमणकारी आर्य या ब्राह्मण धारा में है जो हमारे जम्बू द्वीप

क्या होता है मत्यु के समय?

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इसे समझने से पहले थोड़े में यह समझ लें कि मृत्यु है क्या ? मृत्यु लगातार बहती व बदलती नदी जैसी भवधारा का एक मोड़ है , घुमाव है। लगता है कि मृत्यु हुई तो भवधारा ही खत्म हो गई। लेकिन बुद्ध या अरिहन्त हों तो बात अलग है। अन्यथा सामान्य व्यक्ति की भवधारा मरने के बाद भी बहती रहती है। मृत्यु एक जीवन की लीला समाप्त करती है और अगले ही क्षण दूसरे जीवन की लीला शुरू कर देती है। मृत्यु एक ओर इस जीवन का अन्तिम क्षण तो दूसरी ओर अगले जीवन का प्रथम क्षण , मानो सूर्यास्त होते ही तत्काल सूर्योदय हो गया। बीच में रात्रि के अन्धकार का कोई अन्तराल नहीं आया। या यूं कहें कि मृत्यु के क्षण अनगिनत अध्यायों वाली भवधारा की किताब का एक जीवन / अध्याय खत्म हुआ , लेकिन अगले ही क्षण दूसरा अध्याय शुरू हो गया। जीवन के प्रवाह और मृत्यु को ठीक-ठीक समझने समझाने के लिए कोई सटीक उपमा ध्यान में नहीं आती। फिर भी कह सकते हैं कि भवधारा पटरी पर चलने वाली उस रेलगाड़ी के समान है जो कि मृत्यु रूपी स्टेशन तक पहुंचती है। वहां क्षण भर के लिए अपनी गति जरा धीमी कर अगले ही क्षण उसी रफ्तार से आगे बढ़ जाती है। स्टेशन पर गाड़ी पूरे ए

राजनीति के दल्ले कहीं के!

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संसदीय राजनीति हो या मकान की खरीद, शेयर बाज़ार या किसी चीज़ की मंडी, दलाल, ब्रोकर या बिचौलिए लोगों की भावनाओं को भड़काकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। राजनीति में सेवा-भाव ही प्रधान होना चाहिए था। लेकिन यहां भी भावनाओं के ताप पर पार्टी या व्यक्तिगत स्वार्थ की रोटियां सेंकी जाती हैं। इसीलिए इसमें वैसे ही लोग सफल भी होते हैं। जैसे, भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह पेशे व योग्यता से शेयर ब्रोकर हैं। पूर्णकालिक राजनीति में उतरने से पहले वे पीवीसी पाइप का धंधा करते थे। मनसा (गुजरात) में उनका करोड़ों का पैतृक निवास और घनघोर संपत्ति है। मां-बाप बहुत सारी ब्लूचिप कंपनियों के शेयर उनके लिए छोड़कर गए हैं। भावनाओं से खेलने में अमित शाह उस्ताद हैं। अयोध्या में राम मंदिर की शिलाएं भेजने में वे सबसे आगे रहे हैं। 2002 में गोधरा से कारसेवकों के शव वे ही अहमदाबाद लेकर आए थे। सोमनाथ मंदिर के वे ट्रस्टी हैं। बताते हैं कि उनके बहुत सारे मुस्लिम मित्र हैं। अहमदाबाद के सबसे खास-म-खास मुल्ला तो उनके अभिन्न पारिवारिक मित्र हैं। उनके साथ वे शाकाहारी भोजन करते रहते हैं, लेकिन इस बाबत वे सार्वजनिक तौर पर बात नही

शर्म उनको मगर क्यों नहीं आती?

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घरवाले और रिश्तेदार सभी बोलते हैं कि मोदी या भाजपा कुछ भी बोले या करें, उसका विरोध तुम क्यों करते हो ! करना है तो कांग्रेस करे या आम आदमी पार्टी करे। तुम्हें इस विरोध से क्या मिल जाएगा ? मैं कहता नहीं, पर मानता हूं कि यह देश उतना ही मेरा है जितना किसी नेता या ब्यूरोक्रेट का। इसलिए जहां भी देश के साथ धोखा-फरेब किया जा रहा हो, झूठ बोला जा रहा हो, वहां सच को सामने लाना मेरा भी दायित्व बनता है।   मोदी जी ने साल भर पहले पहचान की राजनीति को खत्म करके विकास की राजनीति का दम भरा था। यही वजह है कि भारतीय अवाम के मुखर तबके ने उन्हें वोट देकर दिल्ली की कुर्सी तक पहुंचाया। लेकिन आज उन्हीं मोदी जी ने जब दिल्ली को देश की पहचान से जोड़कर जनता का ‘ आशीर्वाद ’ मांगा तो मन में सहज सवाल उठा कि विकास की राजनीति इतनी जल्दी कहां और क्यों गायब हो गई ? क्या दिल्ली में उसको सत्ता नहीं मिलनी चाहिए जो दिल्ली की समस्याओं को अच्छी तरह समझता है और जिनके समाधान का पूरा ब्लूप्रिंट जिसके पास है ! दूसरों के नारे को चुराने में माहिर मोदी जी ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ वे बिना हल्ला मचाए शांत भाव से क