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Showing posts from February, 2010

किसान और कृषक कैसे एक हो गए!!...

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपने बजट भाषण के अंत में कहा है कि यह बजट आम आदमी का है। यह किसानों, कृषकों, उद्यमियों और निवेशकों का है। इसमें बाकी सब तो ठीक है, लेकिन किसान और कृषक का फर्क समझ में नहीं आया। असल में वित्त मंत्री ने अपने मूल अंग्रेजी भाषण में फार्मर और एग्रीकल्चरिस्ट शब्द का इस्तेमाल किया है। लेकिन वित्त मंत्रालय के अनुवादक बाबुओं ने शब्दकोष देखा होगा तो दोनों ही शब्दों का हिंदी अनुवाद किसान, कृषक और खेतिहर लिखा गया है तो उन्होंने बजट भाषण के हिंदी तर्जुमा में इसमें से एक के लिए किसान और दूसरे के लिए कृषक चुन लिया। वैसे तो फार्मर और एग्रीकल्चरिस्ट का अंतर भी साफ नहीं है क्योंकि अपने यहा फार्मर बड़े जोतवाले आधुनिक खेती करनेवाले किसानों को कहा जाता है और एग्रीकल्चरिस्ट भी वैज्ञानिक तरीके से खेती करनेवाले हुए। हो सकता है कि प्रणब मुखर्जी अपने मंतव्य में स्पष्ट हों क्योंकि जब वे उद्यमियों और निवेशकों के साथ इनका नाम ले रहे हैं तो जाहिर है उनका मतलब बड़े व आधुनिक किसानों से होगा। नहीं तो वे स्मॉल व मार्जिनल फार्मर/पीजैंट कह सकते थे। लेकिन बाबुओं ने तो बेड़ा गरक क

बजट में चलता है लॉबियों का खेल

उदय प्रकाश की एक कहानी है राम सजीवन की प्रेमकथा। इसमें खांटी गांव के रहनेवाले किसान परिवार के राम सजीवन जब दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ने जाते हैं तो वहां कोई लड़की कानों में सोने का बड़ा-सा झुमका या गले में लॉकेट पहनकर चलती थी तो वे बोलते थे कि देखो, वह इतना बोरा गेहूं, सरसों या धान पहनकर चल रही है। ऐसा ही कुछ। मैंने वो कहानी पढ़ी नहीं है। लेकिन इतना जानता हूं कि हम में से अधिकतर लोग शहरों में पहुंचकर किसान मानसिकता से ही सारी चीजों को तौलते हैं। देश का बजट भी इसका अपवाद नहीं है। जैसा अपना या अपने घर का बजट होता है वैसा ही देश के बजट को समझते हैं। अंदर से मानते हैं कि यह जिसे हम देश का बजट मान रहे हैं कि वह असल में सरकार का बजट है। वैसे, बात कुछ हद तक सही भी है क्योंकि सत्तारूढ़ सरकार ही समूचे देश का प्रतिनिधित्व करती है, ऐसा मानने का कोई तुक नहीं है। यहां तो लॉबीइंग का खेल चलता है, ताकतवर समूहों का खेल चलता है, जो देश के भी हो सकते हैं और विदेशी भी। इसीलिए वित्त मंत्री बजट बनाने के कई महीने पहले ही समूहों की राय लेने का क्रम शुरू कर देते हैं। कुछ बैठकें सार्वजनिक त

रेल बजट पर पहली नजर

ममता के रेल बजट पर सांसदों ने कई बार हल्ला-गुल्ला मचाया। लेकिन रेल मंत्री ने अपने बंगाल को उपकृत किया। अवाम को रिझाया। साथ ही उद्योग जगत को भी निराश नहीं किया। उन्होंने न तो मालभाड़ा बढाया है और न ही यात्री किराया। एसी और स्लीपर के किराए पर सर्विस चार्ज घटा दिया गया है। 54 नई ट्रेनें चलाई जाएंगी तो जुलाई 2009 में घोषित 120 में से 117 ट्रेनें इसी मार्च तक चलने लगेंगी। पूरी खबर पढ़े अर्थकाम पर....

पहली अप्रैल से बचत खाते पर रोजाना ब्याज

नए वित्त वर्ष 2010-11 के पहले दिन यानी 1 अप्रैल 2010 से देश के करीब 62 करोड़ बचत खाताधारकों के लिए एक नई शुरुआत होने जा रही है। इस दिन से उन्हें अपने बचत खाते में जमा राशि पर हर दिन के हिसाब से ब्याज मिलेगा। ब्याज की दर तो 3.5 फीसदी ही रहेगी। लेकिन नई गणना से उनकी ब्याज आय पर काफी फर्क पड़ेगा। इस समय महीने की 10 तारीख से लेकर अंतिम तारीख तक उनके खाते में जो भी न्यूनतम राशि रहती है, उसी पर बैंक उन्हें ब्याज देते हैं। इससे आम आदमी को काफी नुकसान होता रहा है। मान लीजिए आपके सेविंग एकाउंट में 10 नवंबर को 1000 रुपए है और 11 नवंबर को आप उसमें एक लाख रुपए जमा करा देते हैं। लेकिन 30 दिसंबर को आप ये एक लाख रुपए निकाल लेते हैं तो आपको इन 51 दिनों के लिए केवल 1000 रुपए पर ही ब्याज मिलेगा क्योकि 10 नवंबर से 30 नवंबर तक आपके बचत खाते में न्यूनतम राशि 1000 रुपए ही थी और उसके बाद 10 दिसंबर से 31 दिसंबर के दौरान भी न्यूनतम राशि 1000 रुपए ही रह गई। जबकि इस दौरान आपके एक लाख एक हजार रुपए बैंक को 49 दिनों के लिए उपलब्ध रहे। यह नियम बैंकों के फायदे में रहा है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि ज्यादातर लोग महीने के खर

क्या हिंदी एक मरती हुई भाषा है?

करीब दो महीने हो गए। जानेमाने आर्थिक अखबार इकोनॉमिक टाइम्स के संपादकीय पेज पर 19 नवंबर को टी के अरुण ने एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था - Hindi an endangered language? इसके प्रमुख अंश मैं पेश कर रहा हूं ताकि हम सभी इन मुद्दों पर सार्थक रूप से सोच सकें। जब हिंदी के प्रखर अनुभवी पत्रकार व संपापक राहुल देव जैसे लोग भारतीय भाषाओं के विनाश पर चिंता जता रहे हों तब समझना ज़रूरी है कि अंग्रेज़ी के शीर्ष पत्रकार हिंदी के भविष्य को लेकर क्या सोचते हैं। इसलिए जरा गौर से देखिए कि अरुण जी की सोच में कितना तथ्य और कितना सच है। उन्होंने पहले कुछ तथ्य पेश किए हैं। जैसे, हिंदी अपेक्षाकृत नई और कृत्रिम भाषा है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने डलहौजी को हिंदी में नहीं, फारसी में पत्र लिखा था। इसके दो सदी बाद जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बेटी को फारसी से मिलती-जुलती अंग्रेजी भाषा में पत्र लिखे, हिंदी में नहीं। आज हिंदी राज्यों में हिंदी कवियों से लेकर उनके घरों की नौकरानियां तक हर कोई अपने बच्चों को अग्रेजी सिखाना चाहता है। हर तरफ अंग्रेजी माध्यम के स्कूल देर से आए मानसून के बाद खर-पतवार को तरह उगते जा रहे हैं। ले