Posts

Showing posts from January, 2009

निरर्थक है निरर्थकता का बोध

Image
अपने बहुत सारे पुराने साथियों में देखता हूं कि वे अब भी अजीब किस्म के अपराध-बोध और ग्लानि के भाव के साथ जिए जा रहे हैं कि देश-समाज के लिए जो कभी करने की सोची थी, अब कुछ नहीं कर पा रहे हैं। एकाध धरना-प्रदर्शन में हिस्सेदारी, और कुछ नहीं। बस, नौकरी-चाकरी और बीवी-बच्चे। घर से दफ्तर और दफ्तर से घर। कभी-कभी लगता है कि हमारे सपने भी मर रहे हैं, तब हम पाश की लाइनें याद करके दुखी हो जाते हैं कि सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना। अक्सर सोचने लगते हैं कि अब तक क्या किया, जीवन क्या जिया। कल की बात सोचता हूं तो मैं भी एक चमकीली उदासी से भर जाता हूं। लेकिन उन अनुभवों को अतीतजीविता के आभासी सुख से मुक्त कर सोचता हूं तो लगता है कि बाहरी और आंतरिक संघर्ष वहां भी था, यहां भी है। तब भी था और आज भी है। यह भी लगता है कि हमारी-आपकी ज़िंदगी ही असली और मूर्त है। देश तो महज एक अमूर्तन है। कहीं वह माता बन जाता है तो कहीं पिता। मुश्किल यह है कि यह अमूर्तन हर किसी को हमारी भावनाओं के दोहन का भरपूर मौका दे देता है। कोई हमें तकरीर के तीरों से बेधता है तो कोई भावनात्मक ब्लैकमेल करता है। मुझे लगता है कि पहल

दशानन के चेहरे चिढ़ते बहुत हैं

Image
रावण की लंका सोने की थी। बहुत सारा निवेश आया होगा तभी तो बनी होगी सोने की लंका। उसके हित-मित्र, चाटुकार बड़े मायावी थे। स्वर्ण-मृग बनकर अपने यार के लिए वनवासियों की बीवियों को रिझाकर छल से उठा लिया करते थे। दशानन चिढ़ता बहुत था। निंदा तो छोड़िए, अपनी जरा-सा आलोचना भी बरदाश्त नहीं कर पाता था। इसी बात पर अपने भाई विभीषण को निकाल फेंका। पौराणिक आख्यान गवाह हैं कि रावण का सर्वनाश हो गया। विभीषण को लंका का राजपाट मिला। लंका सोने की ही रही। लेकिन उस सोने पर राजा का ही नहीं, प्रजा का भी हक हो गया। लंका में रामराज्य आ गया। एडोल्फ हिटलर, रहनेवाला ऑस्ट्रिया का। आगे नाथ, न पीछे पगहा। अंदर से बड़ा ही भीरु किस्म का शख्स। अपने अलावा और किसी को कुछ नहीं समझता था। मंच पर ऐसा बमकता था कि लगता था कि धरती और आकाश के बीच उसके अलावा कुछ है ही नहीं। सत्ता लोलुप और शातिर इतना कि पराए मुल्क में जाकर राष्ट्रवाद का नारा दे दिया। यहूदियों को निशाना बनाया। उनके खिलाफ नफरत भड़का कर बाकियों को अपने पीछे लगा लिया। जर्मन लोग उसके दीवाने हो गए। लेकिन जर्मनी के वही लोग आज उससे बेइंतिहा नफरत करते हैं। वहां किसी को हिटलर

नरेन्द्र भाई का एक सद्गुण

Image
संजय भाई ने नरेन्द्र मोदी के दस अवगुण गिनाये तो मुझे लगा कि क्यों न उनका एक सद्गुण गिना दिया जाए। आज ही इंडियन एक्सप्रेस में एक रिपोर्ट छपी है जो बताती है कि वे झूठ बोलने में ज़बरदस्त महारत रखते हैं। उनके सत्य की कलई ख़ुद उन्हीं के सरकारी विभाग ने खोली है। आप भी यह रिपोर्ट पढ़ें और उनके इस सद्गुण की दाद दें। शुक्रिया।

देखो, टूट रही हैं राष्ट्रवाद की सरहदें

Image
बराक ओबामा को अमेरिका का 44वां राष्ट्रपति बनते दुनिया के करोड़ों लोगों ने टीवी पर लाइव देखा। मैंने भी सपरिवार देखा। शायद आपने भी देखा होगा। मेरी पत्नी ने इस समारोह को देखने के बाद सहज भाव से पूछा – क्या मार्केटिंग और नेटवर्किंग के इस युग में ओबामा जैसे साधारण आदमी के रूप में पूरी दुनिया में नई आशा और उम्मीद का पैदा होना चमत्कार नहीं है? यह एक भावना है जो युद्ध और आर्थिक मंदी के संत्रास से घिरे अमेरिका के लोगों में नहीं, सारी दुनिया के लोगों में लहर मार रही है। बराक जब चुने गए थे, तभी हमारे देश में भी पूछा जाने लगा था कि अपने यहां कोई बराक ओबामा नहीं हो सकता। बहुतों के भीतर अपने देश में किसी बराक ओबामा के न होने की कचोट सालने लगी। ओबामा का कहा हुआ वाक्य – yes we can, सबकी जुबान और मानस पर चढ़ गया। इसी माहौल में कुछ मीडिया पंडितों और कॉरपोरेट हस्तियों ने राहुल गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी में भारतीय ओबामा की शिनाख्त शुरू कर दी। सच यही है कि सारी दुनिया के लोग अंदर ही अंदर बराक को अपना नेता मानने लगे हैं। कहने का मौका मिले तो वे कह भी सकते हैं कि अमेरिका का राष्ट्रपति हमारा राष्ट्रपति है। इ