कसाब का मुकदमा लाइव ब्रॉडकास्ट हो

मुंबई पुलिस की पकड़ में आए पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब के खिलाफ खुली अदालत में मुकदमा चलाया जाना चाहिए। इसमें प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को बुलाया जाए। साथ ही टीवी चैनलों को इसके लाइव ब्रॉडकास्ट की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि पूरा देश, पूरी दुनिया जान सके कि हकीकत क्या है। इससे हम लश्करे तैयबा और दूसरे आतंकवादी संगठनों और उनके आकाओं को बेनकाब कर सकते हैं। मुकदमा बिना किसी विलंब के हर दिन चलाकर कसाब को भारतीय कानून के मुताबिक सख्त से सख्त सज़ा दी जानी चाहिए।

अगर हम सैकड़ों साल पुराने किसी कबीलाई समाज में रह रहे होते तो शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे का कहना सही था कि कसाब को बिना कोई मुकदमा चलाए वीटी स्टेशन पर ले जाकर फांसी चढ़ा देना चाहिए या गोली मार देनी चाहिए, जहां 26 नवंबर की रात आतंकवादियों की गोलियों से 63 मासूम भारतीय मारे गए थे। लेकिन हम एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं जहां घनघोर अपराधी को भी कानूनी बचाव का हक है। और, अपराधी का कोई देश नहीं होता। जो लोग कह रहे हैं कि कसाब अगर पाकिस्तानी नागरिक न होकर भारतीय होता तो उसे वकील दिया जा सकता था, वे लोग असल में मूर्ख और लोकतंत्र-विरोधी ही नहीं, कायर भी हैं। उनमें लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ने की हिम्मत नहीं है। ये लोग देशभक्त भी नहीं हैं क्योंकि लोकतंत्र के बिना देश को ज्यादा देर तक बचाया नहीं जा सकता। लोकतंत्र चला गया तो भारत को पाकिस्तान बनते देर नहीं लगेगी।

इसलिए दोस्तों, मैं तो यही मानता हूं कि कसाब को वकील जरूर मिलना चाहिए। लेकिन उस पर खुली अदालत में मुकदमा चलाया जाए और मुकदमे की सारी कायर्वाही टीवी चैनलों पर लाइव दिखाई जाए। हमें किसी बाल ठाकरे या उनके गणों के बहकावे में नहीं आना चाहिए क्योंकि वे लोकतंत्र के, हमारी-आपकी की आजादी के, स्वतंत्र वजूद और सोच के कट्टर दुश्मन हैं।

Comments

आप की बात सही है। वकील होने का मतलब बचाने वाला नहीं होता। सिर्फ कानूनी मदद करने वाला होता है। जिस कानून के अनुसार मुकदमा चलना है उस कानून की जानकारी अभियुक्त को नहीं होती। उसी तरह की मदद के लिए उसे वकील की जरूरत होती है। इस जरूरत को हमारे अपने कानूनों ने रेखांकित किया है। वकील हर अभियुक्त को अवश्य मिलना चाहिए।
द्विवेउीजी की बात से सहमत किन्‍तु मुकदमे का जीवन्‍त प्रसारण घातक हो सकता है । ऐसी व्‍यवस्‍था का लाभ उठाने का अवसर अपराधी को अधिक मिलता है । उसकी अतार्किक और ऊल-जुलूल बातें सीधे लोगों तक पहुंचेंगी । जीवन्‍त प्रसारण के दुष्‍परिणाम हम अभी-अभी आतंकी आक्रमण के दौरान देख और भुगत चुके हैं ।
हां, मुकदमें के सम्‍पादित अंश, विस्‍तापूर्वक अवश्‍य दिखाए जाने चाहिए और जल्‍दी से जल्‍दी दिखाए जाने चाहिए ।
Aaditya said…
वैसे न भी हो तो.. इंडीया टीवी कहीं से जुगाड लेगा.. या animation से दिखा देगा :)
आदित्‍य भाई की बात से सहमत हूँ
महाशक्ति
aapke tark aur paksh main meri haan hai ...
जो भी करना हो फटाफट करना होगा. लोगों की यादशक्ति कमजोर होती है. अगर अलगी सरकार कॉंग्रेस की बनी तो कसाब भारत का मेहमान बन कर रहेगा.
hem pandey said…
मुकदमे का लाइव प्रसारण कोई अच्छा सुझाव नहीं लगता. हाँ 'मुकदमा बिना किसी विलंब के हर दिन चलाकर कसाब को भारतीय कानून के मुताबिक सख्त से सख्त सज़ा दी जानी चाहिए |'
लाइव ब्रॉडकास्ट कर तो इस लफण्टर को हीरो बनने का चान्स मिल जायेगा। एक बन्दा जूता फैंक हीरो बन गया है। यह अपनी कसाइयत का कस निकाल हीरो बन लेगा।
मैम बाल ठाकरे से सहमत हूं।
indianrj said…
ये हमारा दुर्भाग्य ही है कि हमारे यहाँ पर फैसला आने में इतना समय लगता है कि "जस्टिस डिलेड इज जस्टिस denied" वाली बात चरितार्थ होती है. इस दौरान उन लोगों के दुःख का क्या जिन्होंने अपना कोई प्रिय खोया हो.
Hari Joshi said…
ये सही है कि अगर लोकतंत्र नहीं बचेगा तो देश भी नहीं बचेगा।
मेरे ख्याल से भी कोई मुकदमा नही करना चाहिये सीधा फ़ाँसी दे देनी चाहिये...
Satyendra PS said…
लाइव टेलीकॉस्ट से क्या आशय है? एक ऐसा आतंकी, जिसके फोटो हथियार के साथ प्रकाशित हो गए, वह अब तर्क दे कि हम बाबरी ढांचे के टूटने, गुजरात में गोधरा के बाद हुए सांप्रदायिक दंगे का बदला लेने के लिए हमला किया गया था, तब उसके समर्थन में ७० प्रतिशत भारतीय खड़े हो जाएंगे और कहेंगे कि यह भाजपा की नीतियों का नतीजा है कि हमले हो रहे हैं। कांग्रेस के आला नेता तो करकरे की हत्या को हिंदूवादी आतंक से जोड़ने में लगे ही हैं। वैसे भी- जो कुछ न्यायपालिका में होता है, उससे तो यही लगता है कि वह अब जेलों में ही बूढ़ा होगा या फिर कहीं आतंकी कोई अपहरण जैसे कारनामें कर उसे छुड़ा ले जाएंगे।
जो होना चाहिए वह अगर होता तो आज इस देश में आतंकवाद ही क्यों होता बंधू?
कसाब के कुकृत्य को सिद्ध करने के लिए अभी भी कुछ किया जाना बाकी है क्या? इसी पिलपिली मानसिकता ने देश का बेड़ा गर्क कर दिया है।

जब पूरा देश एक निष्कर्ष पर पहुँच चुका है तो अब फालतू में नाटक करने से क्या फायदा? क्या दिखाना है? यह कि हम घोंघा बसन्त हैं?

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