
लिखनेवाले अजय जैन खुद एक ब्लॉगर हैं। उनका कहना है कि हमें अपने ब्लॉग पर दूसरों का लिंक बहुत उदारता से देना चाहिए। बिना यह सोचे कि सामनेवाले ने तो हमारा लिंक दिया नहीं तो हम क्यों दें? हम उससे कम थोड़े ही हैं! लेकिन यह अहंकार ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में बाधा है, उनके बीच स्वीकार्य होने की रुकावट है। हमें सोचना चाहिए कि का रहीम प्रभु को घट्यो जो भृगु मारी लात। अजय जैन बताते हैं कि जब भी हम किसी और का लिंक देते हैं तो वह कभी न कभी हमारे ब्लॉग पर आता ही है। इस तरह हमें एक विजिटर मिल जाता है और फिर उस निर्दयी का दिल कभी न कभी तो पसीजेगा तो वह भी आपका लिंक दे देगा।
आप कहेंगे और मेरा भी ये सवाल है कि हम तो उन्हीं का लिंक दे सकते हैं जिन्हें पसंद करते हैं, अपने जैसा समझते हैं, फिर हम बाकी लोगों का लिंक क्यों दें? मुझे लगता है कि हम ब्लॉगरोल में श्रेणियां बना सकते हैं। अपनी पसंद के ब्लॉग अलग श्रेणी में, हिंदी ब्लॉगिंग दुनिया के पुरोधा अलग श्रेणी में, तकनीकी ज्ञान वाले अलग आदि-इत्यादि। फिर भी कुछ लोग कट जाएं तो कटने दीजिए क्योंकि इतनी उदारता भी ठीक नहीं कि बिच्छू को अपने हाथ पर बैठा कर रखा जाए।
एक सवाल यह भी है कि ब्लॉग में जगह की सीमा है तो हम आखिर कितनों का लिंक दे सकते हैं? तो इस मुश्किल को सागरचंद नाहर जी ने सुलझा दिया। उन्होंने लिंक की रोलिंग व्यवस्था का जो तरीका सुझाया है, वह बेहद दिलचस्प है। हालांकि अभी तक इसे मैं लागू नहीं कर पाया हूं, लेकिन फुरसत मिलते ही ज़रूर इस नई जानकारी से अपने ब्लॉग का लुक बदलूंगा। वैसे, ब्लॉग का साफ-सुथरा लुक भी बहुत मायने रखता है। मिंट के लेख में बहुत सारी और भी बातें हैं। हालांकि संदर्भ अंग्रेजी के ब्लॉगों का है, लेकिन इससे हम भी अपने काम की चीजें निकाल सकते हैं।
16 comments:
हे उदारमना इस बिच्छू के ब्लॉग को भी अपने ब्लॉगरोल में स्थान दें. :)
यह विचार बहुत बार व्यक्त किया जाता रहा है. कई बार कोशिश हुई है. पहले अक्षरग्राम से एल तैयार स्क्रिप्ट भी मिलती थी. उसे लगा लो, सबके ब्लॉग उसमें आ जाते थे, हाँ साँप बिच्छू के भी :)
कई दिनों से मैं भी सोच रहा था कि अपने पसंद के ब्लॉग्स को ब्लॉगरोल में डालूँ लेकिन समयाभाव में मामला टलता ही जा रहा है.चलिये आपने चेताया तो जल्दी ही इस काम को अंजाम देते हैं.वैसे हम "आपके अपने से" नहीं लगते लेकिन आप हमारी पसंद में शामिल हैं.टिपियाने से समझ में आता होगा लेकिन जल्दी ही ब्लॉगरोल में भी दिखेंगे.
काकेश जी, बिलकुल आप अपने जैसे ही लगते हैं। भूल सुधार जल्दी ही कर लूंगा। और संजय जी आप लोग श्रेष्ठजन हैं। आपकी कुर्सी अलग से सजाऊंगा। बस कुछ और तैयारियों में जुटा हूं।
धन्यवाद अनिल जी
आपने बहुत सही कहा और इस बात को अपनाते/मानते हुए अपना पहला ब्लॉगरोल तैयार कर लिया है और साईडबार में लगा भी दिया है। जो कि अभी प्राथमिक स्थिती में है अभी बहुत से लिंक जोड़ने बाकी है।
आपने मैरे जिस लेख का जिक्र इस पोस्ट में किया है वह कुछ ज्यादा ही जटिल और तकनीकी हो गया था। सो मैने उस को काट कर ब्लोगरोल के लिंक की फाइल को अपलोड कर दिया है। यह फाइल मात्र 2Kb की है।
जिस पर राईट क्लिक कर आप फाईल को अपने कम्प्यूटर पर सेव कर सकते हैं, और अपने मनचाहे लिंक जोड़कर अपने चिट्ठे के साईडबार में लगा सकते हैं।
हाँ हमने कई मित्रों की पीठ खुजा दी है अब ........:)
आपकी बात सही है। मेरे चिट्ठे पर पठनीय चिट्ठों की एक लिंक है, जिसे मैं समय-समय पर अपडेट करता रहता हूँ।
ब्लॉगिंग कम्युनिटी का फैलाव ऐसे ही तो होता है। कुछ चिट्ठाकार अपने चिट्ठे के प्रचार-प्रसार के लिए विशेष यत्न भी करते हैं और दूसरे चिट्ठों पर अपने चिट्ठे का लिंक देने के लिए अनुरोध भी करते हैं। यह कुछ हद तक परस्पर सहयोग जैसा मामला भी है। लेकिन कुछ चिट्ठाकार इस मामले में संकीर्णता दिखाते हैं, और दूसरों के लिंक देने के लिए जो मानदंड अपनाते हैं, उसमें गुटबाजी की बू भी आती है।
एक तुरत फुरत ब्लॉगरोल बना दिया है.बहुत कुछ छूट गया है लेकिन जल्दी ही इसे अपडेट करता हूँ.
http://hindiblogdirectory.blogspot.com/
sir
can you please see this blog and give your link here we made this blog after reading your post
thank you
सत्यवचन!!
मैं अपने ब्लॉग मे "मेरी पसंद" को समय समय पर अपडेट करता रहता हूं।
चेताने के लिये धन्यवाद।
मैं एक काम तो करता हूं - अपनी पोस्ट में सयास लिंक देने का यत्न करने लगा हूं।
कुछ लोग कम्प्यूटर के विषय में बहुत कम जानते हैं और कुछ भी बदलाव करने से डरते हैं जैसे कि मैं । बस किसी तरह जैसे चल रहा है चलते रहे की भावना में केवल लेख, कविता पोस्ट कर लेते हैँ । सो भाई लोगो यही कारण है कि मैं लिंक नहीं दे पाती हूँ ।
घुघूती बासूती
हम तो डर रहे थे कि बिना किसी की इजाज़त के उसका लिंक अपने ब्लॉग मे नही डाल सकते लेकिन संजीत जी से पता चला ऐसा कुछ नही है , तो उनकी सहायता से कुछ मोती अपने ब्लॉगरोल मे सजा चुके हैं.
भाई हमने दे दिया है आपका लिंक, आपने देखा कि नहीं. हमसे नाराज़ तो नहीं हैं आप.
अनामदास
बड़े ब्लॉगरोल का एक हल मेरे पास भी है लेकिन काफी प्रयोग करना पड़ेगा, कभी टाइम मिलने पर देखूँगा।
सही कह रहे हैं. ऐसे में डांट पड़ना ही चाहिये. :)
अब सागर भाई वाली स्कीम के तहत कुछ मामला फिट करता हूँ.
कई लिंक तो मैंने पहले से ही दे रखे थे। एक संकोच था कि जिसको जानते चलें उसको जोड़ते चलें। अब फॉर्मूला बदल दिया है। पहले जोड़ता जा रहा हूं उसके बाद जान भी लूंगा। और, बिना इस चिंता के कि दूसरा जोड़ रहा है या नहीं।
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