
मैं समझ नहीं पाता कि इस शुतुरमुर्गी अदा का मतलब क्या है। इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी के इस दौर में कम से कम आपके कंप्यूटर के आईपी एड्रेस से तो पता चल ही जाता है कि आप मुंबई या पटना से नहीं, गाज़ियाबाद और दिल्ली में बैठकर यह प्रपंच कर रहे हैं और नाम बदल-बदल कर रहे हैं। मैं भी अपने साइटमीटर में दर्ज सूचना और आपकी टिप्पणी के समय के मिलान से इसे आसानी से देख सकता हूं। तकनीक में ज्यादा पारंपत नहीं हूं, वरना आपके चेहरे को भी तार-तार कर देता। आप से बचने का एक तरीका यह है कि मैं एनॉनिमस टिप्पणियों का रास्ता ही बंद कर दूं या टिप्पणियों को मॉडरेशन में डाल दूं। लेकिन न तो मेरे पास मॉडरेशन के लिए पर्याप्त समय है और न ही मैं कुछ लोगों के लिए अपने कान बंद करना चाहता हूं।
फिर मैं आपको बंद करके कर ही क्या सकता हूं। आजकल तो आप एक राजनीतिक परिघटना बन गए हैं। आप जैसे अनाम बेनामियों ने नरेंद्र मोदी तक को नहीं छोड़ा है। जैसे-जैसे गुजरात में विधानसभा चुनावों की तारीख नजदीक आती जा रही है, अनामियों की हरकतें बढ़ गई हैं। वो पैंफलेट निकाल रहे हैं, परचे बंटवा रहे हैं, जिनमें मोदी के दावों की कलई खोली गई है। इनमें लिखी बातों से लगता है कि यह भीतरघातियों का काम है क्योंकि इसमें मोदी सरकार की बड़ी क्लासीफाइड जानकारियां हैं।
इन परचों में ब्यौरेवार तरीके से बताया गया है कि कैसे नरेंद्र मोदी और उनके इर्दगिर्द कुंडली मारकर बैठी मंडली ने निजी स्वार्थो के लिए हिंदू वोटों और संघ परिवार की मेहनत का इस्तेमाल किया है। बीजेपी के कुछ नेताओं का कहना है कि या तो मोदी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बौखला गए हैं या गुजरात में इस बार जनता का राजनीतिक मूड बदल गया है।
हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया में पाठकों के राजनीतिक मूड की बात तो नहीं की जा सकती है। लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि अनामी-बेनामी टिप्पणियां विरोधियों की बौखलाहट को साफ कर देती हैं।
8 comments:
मैं अब तक आपके किसी भी पोस्ट को पढ कर चाहे उससे सहमत होउं या नहीं पर यह मानती थी कि आप मार्क्सवादी विचारधारा के समर्थ हैं। पर आज आपका मेरे नाम को लेकर इस प्रकार का शक करना यह बताता है कि केवल मार्क्सवादी विचारों के तहत लेखन करना ही मार्क्सवादी होना नहीं होता है...मेरा अब तक का अनुभव रहा है कि महिलाओं के प्रति मार्क्सवादियों का नजरिया बहुत लोकतान्त्रिक होता है।
आपके पोस्ट पर अपने नाम पर इस प्रकार का आरोप देख कर मैं समझ गयी हूं कि आपने एक मार्क्सवादी का मुखौटा लगाया है और उसके पीछे एक दकियानूस सांमती चेहरा छुपाया है....क्यों कि आप इस बात को पचा ही नहीं पा रहे हैं कि आपकी इस बौद्धिक, वैचारिक बहस में एक लडकी भाग ले सकती है।
मुझे नहीं पता कि मुझे आपको अपनी पहचान बताने के लिए अपना ई-मेल पता देना चाहिए या फोन नम्बर या कुछ भी नहीं, बल्कि इस तरह के दंभी व्यक्ति के लेखन पर टिप्पणी करना ही छोड देना चाहिए।
अभिव्यक्ति जी, मुझे न तो आपका ई-मेल चाहिए और न ही फोन नंबर। अगर आप सचमुच हैं तो बौखलाने की जरूरत नहीं है। मुझे आप जैसी पूर्वाग्रही शख्स का प्रमाणपत्र भी नहीं चाहिए जो लेखकों को केवल उसके वाद से पहचानता है। मुझे किसी मार्क्सवाद के मुखौटे की जरूरत नहीं है।
और महिलाओं के प्रति पूरा सम्मान मैं करता हूं क्योंकि गार्गी और मैत्रेयी की परंपरा का सम्मान करता हूं। अगर आप सचमुच अभिव्यक्ति ही हैं तो बगैर किसी परवाह के आपको अपना पढ़न-पाठन और चिंतन जारी रखना चाहिए। यह हमारे पूरे समाज और देश के हित में अच्छा रहेगा।
अपने ब्लॉग को अनर्गल प्रलापों, गंदी भाषा, विद्वेषवश की गई टिप्पणियों से बचाने के लिये यदि मॉडरेशन लगाते भी हैं तो उसे कान बंद करना न मानें, मित्र. बढ़ती भीड़ के साथ यह आवश्यक प्रतीत होता है. जरा विचारें.
मैं माफ़ी चाहती हूँ अनिल भाई मैं क्रोध में कुछ ज़्यादा ही अनाप-शनाप बोल गई, उम्मीद है आप अन्यथा न लेंगे।
ये माफीनाम मेरा नहीं है क्योंकि मैने ऐसी कोई टिप्पणी नहीं की है जिसके लिए मुझे माफी मांगनी चाहिए। ये या तो आपके किसी तथाकथित शुभ चिंतक ने या इस प्रकार की बहस में महिलाओं की भागीदारी न सह पाने वाले पुरुषवादी दिमाग की ऊपज है और मैं अपने नाम के इस दुरुपयोग के खिलाफ आपको ब्लैक आउट करती हूं और अब आप ही अभिव्यक्ति नाम देकर लिखवाया करिए लोगों से।
बहुत मजेदार है। इसी तरह की खुराफात ने मुझे कमेण्ट मॉडरेशन पर मजबूर किया!
अनिल भाई
मैं बेनामी टिप्पणियों से पहले डरता था अब स्वागत करता हूँ...
बेनामी का रंग ही अलग होता है....
अभिव्यक्ति जी, आपने तो बड़ी उलझन में डाल दिया। मैं तो वाकई कन्फ्यूज हो गया कि अभी तक आपके नाम से जिसने टिप्पणियां की हैं, वे कौन हैं। मैं अपने किसी शुभचिंतक से दूसरे नाम से क्यों लिखवाऊंगा। मेरा कोई शुभचिंतक इतना छद्म और कायर नहीं है कि उसे अपने नाम से लिखने में परेशानी हो।
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