125 साल पुरानी मांग है शिक्षा का अधिकार

वाकई आज मैं यह पढ़कर आश्चर्यचकित रह गया कि देश में शिक्षा के अधिकार की मांग 125 साल पुरानी है। समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले ने 19 अक्टूबर 1882 को ब्रिटिश सरकार द्वारा शिक्षा पर बनाए गए हंटर कमीशन को एक ज्ञापन दिया था, जिसमें उन्होंने बच्चों के लिए सार्वभौमिक शिक्षा के अधिकार की मांग की थी। देश की आजादी के 60 साल बाद हालत ये है कि साल 2002 में संविधान संशोधन के बाद 6 से 14 साल के बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार तो बना दिया गया, लेकिन इसे अभी तक गजट में नोटिफाई नहीं किया गया है।

शुक्रवार को शिक्षण हक्क अभियान के कार्यकर्ताओं ने महात्मा फुले के योगदान को याद करने के लिए मुंबई के आज़ाद मैदान में प्रदर्शन किया। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि सरकार ने 2002 के संविधान संशोधन में 6 साल तक के बच्चों को शिक्षा के अधिकार से बाहर छोड़ दिया है। ऊपर से पांच साल भी इसे नोटिफाई न करने से साफ हो जाता है कि महात्मा फुले की तस्वीरों और मूर्तियों पर माला चढ़ाने वाले हमारे नेता उनकी बातों का कितना आदर करते हैं।

Comments

Asha Joglekar said…
बिलकुल सही कहा आपने । महात्मा फुले हों या महात्मा गांधी,इनके पुतले हमारे तथाकथित नेताओं के लिये हार टांगने की खूंटी से ज्यादा महत्व नही रखते । केंद्रीय सरकार शिक्षा को प्रदेश सरकार की जिम्मेवारी बता कर अपना पल्ला झाड़ लेती है और प्रदेश सरकार बजट का रोना रोकर । और तो और अगर आप फूछ कर देखें तो पता चलेगा कि आधे से ज्यादा शिक्षा मंत्रियों को पता भी नही होगा कि ऐसा कोई संशोधन पास हुआ है।
अभी भी परिस्थितियाँ परिपक्व नजर नहीं दीखतीं। शायद अधिकार दो प्रकार से मिलते हैं - कानून से और व्यक्ति की जागृति से। जागृति में कमी परसिस्ट कर रही है।

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