लालूजी! दमड़ी कमाओ, पर चमड़ी तो छोड़ो
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भारतीय रेल के इस कदम का मकसद शुद्ध रूप से कमाई करना है। जहां निजी कंपनी से रेलवे को हर महीने 15 लाख रुपए मिलेंगे, वहीं इस समय मुंबई के रेलवे स्टेशनों पर काम करनेवाले करीब 1000 जूता पॉलिश करनेवालों से उसे 75 रुपए के हिसाब से महीने में 75,000 रुपए ही मिलते हैं। लेकिन रेलवे के इस कदम की खबर मिलते ही जूता पॉलिश करनेवालों के बीच हड़कंप मच गया है और इसी गुरुवार को उन्होंने वीटी (छत्रपति शिवाजी टर्मिनस) स्टेशन पर प्रदर्शन करने का फैसला किया है।
दिलचस्प बात ये है कि मुंबई के लोकल रेलवे स्टेशनों पर तकरीबन सभी जूता पॉलिश करनेवाले उत्तर भारतीय हैं और इनमें से भी ज्यादातर लालू यादव के राज्य बिहार के रहनेवाले हैं। 30-40 साल से यही काम कर रहे हैं। बाप का काम बेटा आगे बढ़ा रहा है। दिन में 100-150 रुपए कमाते हैं। इसमें से सामान पर उनका खर्च लगभग 25 रुपए होता है। इस तरह महीने में हर दिन काम करके 3000 रुपए तक कमा लेते हैं और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं।
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लालूजी, क्या इनकी शिकायत वाजिब नहीं है? क्या आपके पास रेलवे की आमदनी का बढ़ाने के और तरीके नहीं हैं? मुंबई में लोकल ट्रेन से सफर करनेवाले लाखों नौकरीपेशा लोगों की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुके कामगारों से रोज़ी का ज़रिया छीनकर आपको क्या मिल जाएगा? अगर ठेका देना ही है तो जूता पॉलिश करनेवालों की को-ऑपरेटिव सोसायटियों में से किसी को दीजिए। इनके पेट पर दूसरों को क्यो लात मारने की इजाज़त दे रहे हैं? आपको यह दावा करने से कोई नहीं रोक सकता कि, “हमने बिना हींग या फिटकरी 20,000 करोड कमाया।” लेकिन दमड़ी कमाने के लिए किसी की चमड़ी तो मत निचोड़िए हुज़ूर!!
Comments
पूरी की पूरी रेलवे को निजी हाथों मे गिरवी रख कर वाहवाही लूटना एक बात है ,और प्रभावकारी योजनाओं को लागू करके भविश्य निर्माण दूसरी.
अगला नम्बर कुलियों का आने वाला है.
क्यों कर आशा ......