मालिक इन्हें माफ करना ये मोदी-मुदित हैं
गुजरात विधानसभा के चुनावों में अब बमुश्किल दो महीने बचे हैं। इसलिए नरेंद्र मोदी के पक्ष और विपक्ष में गोलबंदियां तीखी हो गई हैं, बीजेपी के अंदर भी और बाहर भी। हिंदी ब्लॉग जगत में भी इसकी धमक सुनाई देने लगी है। वैसे, मोदी के कौशल की दाद देनी पड़ेगी कि उसने पार्टी और संघ से इतर अपना अलग कल्ट बना लिया है। यहां तक कि दस हिंदी ब्लॉगर भी हैं जो मोदी पर ऐसे मुदित हैं कि मुखालफत में कोई पोस्ट छपते ही अनुनाद करने लगते हैं। मोदी को गुजरात-गौरव मानते हुए विरोधी पर ऐसे टूटते हैं कि पूछिए मत।
वैसे, हज़ार में दस की संख्या कोई मायने नहीं रखती, लेकिन इनके लेखन से पता चलता है कि ये सभी आदर्शवादी हैं, राष्ट्रभक्त हैं, परंपरावादी हैं और धार्मिक होते हुए भी अवाम के व्यापक हितों के प्रति संवेदनशील हैं। इनमें कुछ काफी सीनियर हैं तो कई जूनियर भी। हमारे राष्ट्रवाद के विकास में ही लोचा है तो मुझे समझ में आता है कि इनका राष्ट्रवाद मुस्लिम और पाकिस्तान विरोध पर क्यों टिका हुआ है। लेकिन मुझे कतई समझ में नहीं आता कि ये लोग मोदी के खिलाफ ज़रा-सा लिखते ही भड़क क्यों जाते हैं?
कुछ हितचिंतकों को छोड़ दें तो नहीं लगता कि बाकी किसी को मोदी से कोई नफा-नुकसान होता होगा। फिर भी नरेंद्र मोदी के प्रति ऐसी अंधी आसक्ति क्यों? इसकी एक वजह तो मुझे यह लगती है कि मोदी ने खुद को गुजरात की अस्मिता से नत्थी कर दिया है। गुजरात का विकास क्यों हुआ तो उसके चलते। गुजरात में सबसे ज्यादा निवेश आया तो उसकी वजह से। खुद को उसने गुजरात के गौरव और प्रतीक के रूप में स्थापित कर दिया है। कोई उसके शासन का विरोध करता है तो मोदी का जवाब होता है, “देखो ये लोग कह रहे हैं कि गुजराती बलात्कारी, हत्यारे और गुंडे हैं।” ज़ाहिर है कि अपनी प्रांतीय अस्मिता पर गर्व करनेवाले गुजराती मोदी की इस कुशल कलाकारी के शिकार हो जाते हैं।
गुजरात की एक बड़ी खासियत यह है कि यहां राम से ज्यादा महिमा कृष्ण की है। उत्तर प्रदेश में लोगबाग अभिवादन के लिए जिस तरह जयराम, रामराम या जय श्रीराम बोलते हैं, उसी तरह गुजरात में लोग जय श्रीकृष्ण बोलते हैं। इसी गुजराती आदत को ध्यान में रखते हुए मोदी ने खुद को कृष्णावतार के रूप में भी पेश करने की कोशिश की थी। मोदी को जब लगा कि मियां मुशर्रफ पर निशाना साध कर लोग झांसे में आएंगे तो वैसा किया और जब लगा कि सोनिया के इटालियन मूल को गाली देने से काम बनेगा तो वैसा किया। सचमुच नरेंद्र मोदी जैसा शातिर अवसरवादी राजनेता हमारे समय में कोई दूसरा हो ही नहीं सकता।
उसने अपनी व्यक्तिगत छवि को चमकाने के लिए खुद पर आतंकवादी हमले के नाटक गढ़े, बेगुनाह लोगों का एनकाउंटर करवाया। उसकी चाल कितनी कामयाब रही है कि आज खुद बीजेपी के ही लोग उसे हिटलर, तानाशाह, हिस्ट्री-शीटर बता रहे हैं, सुजलाम सुफलाम योजना में 500 करोड़ डकारने का आरोप लगा रहे हैं, तब भी कोई इन आरोपों पर यकीन करने को तैयार नहीं है।
मोदी ने सितंबर 2001 में केशुभाई की जगह मुख्यमंत्री बनने के बाद से अब तक के छह सालों में राज्य में लोकतांत्रिक संस्थाओं का भट्ठा बैठा दिया है। न वहां कोई लोकायुक्त है, न विधानसभा का उपसभापति। राज्य मानवाधिकार आयोग है, लेकिन उसके सदस्यों की नियुक्ति नहीं की गई है। यही हाल विधि आयोग का है। गुजराती अस्मिता का ढिढोरा पीटने वाले मोदी ने गुजराती साहित्य को प्रोत्साहित करनेवाली संस्था गुजरात साहित्य एकेडमी को तीन साल से अपना अध्यक्ष चुनने की इजाज़त नहीं दी है।
लेकिन इन तथ्यों पर गौर करने के बजाय मोदी के हितचिंतक ब्लॉगर उनकी प्रशस्ति में पोस्ट पर पोस्ट लिखे जा रहे हैं। लगता है कि बाकी नौ ब्लॉगरों को मोदी ने जैसे अफीम सुंघा रखी हो। ऐसे में मैं यही प्रार्थना करता हूं कि हे प्रभु, इन्हें माफ करना क्योंकि ये जो कुछ कर रहे हैं, नशे में कर रहे हैं। ये देख नहीं पा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी कितना कुटिल और काइयां है। जिस दुष्ट को शहद में डुबोकर मांसाहारी लाल चीटियों के झुंड के हवाले कर दिया जाना चाहिए, उसी के बचाव के लिए ये लोग रक्षा-पंक्ति बना रहे हैं। ये भ्रमित भावुक, धर्मभीरु और राष्ट्रभक्त लोग हैं। इसलिए मालिक, इन्हें माफ करना।
वैसे, हज़ार में दस की संख्या कोई मायने नहीं रखती, लेकिन इनके लेखन से पता चलता है कि ये सभी आदर्शवादी हैं, राष्ट्रभक्त हैं, परंपरावादी हैं और धार्मिक होते हुए भी अवाम के व्यापक हितों के प्रति संवेदनशील हैं। इनमें कुछ काफी सीनियर हैं तो कई जूनियर भी। हमारे राष्ट्रवाद के विकास में ही लोचा है तो मुझे समझ में आता है कि इनका राष्ट्रवाद मुस्लिम और पाकिस्तान विरोध पर क्यों टिका हुआ है। लेकिन मुझे कतई समझ में नहीं आता कि ये लोग मोदी के खिलाफ ज़रा-सा लिखते ही भड़क क्यों जाते हैं?
कुछ हितचिंतकों को छोड़ दें तो नहीं लगता कि बाकी किसी को मोदी से कोई नफा-नुकसान होता होगा। फिर भी नरेंद्र मोदी के प्रति ऐसी अंधी आसक्ति क्यों? इसकी एक वजह तो मुझे यह लगती है कि मोदी ने खुद को गुजरात की अस्मिता से नत्थी कर दिया है। गुजरात का विकास क्यों हुआ तो उसके चलते। गुजरात में सबसे ज्यादा निवेश आया तो उसकी वजह से। खुद को उसने गुजरात के गौरव और प्रतीक के रूप में स्थापित कर दिया है। कोई उसके शासन का विरोध करता है तो मोदी का जवाब होता है, “देखो ये लोग कह रहे हैं कि गुजराती बलात्कारी, हत्यारे और गुंडे हैं।” ज़ाहिर है कि अपनी प्रांतीय अस्मिता पर गर्व करनेवाले गुजराती मोदी की इस कुशल कलाकारी के शिकार हो जाते हैं।
गुजरात की एक बड़ी खासियत यह है कि यहां राम से ज्यादा महिमा कृष्ण की है। उत्तर प्रदेश में लोगबाग अभिवादन के लिए जिस तरह जयराम, रामराम या जय श्रीराम बोलते हैं, उसी तरह गुजरात में लोग जय श्रीकृष्ण बोलते हैं। इसी गुजराती आदत को ध्यान में रखते हुए मोदी ने खुद को कृष्णावतार के रूप में भी पेश करने की कोशिश की थी। मोदी को जब लगा कि मियां मुशर्रफ पर निशाना साध कर लोग झांसे में आएंगे तो वैसा किया और जब लगा कि सोनिया के इटालियन मूल को गाली देने से काम बनेगा तो वैसा किया। सचमुच नरेंद्र मोदी जैसा शातिर अवसरवादी राजनेता हमारे समय में कोई दूसरा हो ही नहीं सकता।
उसने अपनी व्यक्तिगत छवि को चमकाने के लिए खुद पर आतंकवादी हमले के नाटक गढ़े, बेगुनाह लोगों का एनकाउंटर करवाया। उसकी चाल कितनी कामयाब रही है कि आज खुद बीजेपी के ही लोग उसे हिटलर, तानाशाह, हिस्ट्री-शीटर बता रहे हैं, सुजलाम सुफलाम योजना में 500 करोड़ डकारने का आरोप लगा रहे हैं, तब भी कोई इन आरोपों पर यकीन करने को तैयार नहीं है।
मोदी ने सितंबर 2001 में केशुभाई की जगह मुख्यमंत्री बनने के बाद से अब तक के छह सालों में राज्य में लोकतांत्रिक संस्थाओं का भट्ठा बैठा दिया है। न वहां कोई लोकायुक्त है, न विधानसभा का उपसभापति। राज्य मानवाधिकार आयोग है, लेकिन उसके सदस्यों की नियुक्ति नहीं की गई है। यही हाल विधि आयोग का है। गुजराती अस्मिता का ढिढोरा पीटने वाले मोदी ने गुजराती साहित्य को प्रोत्साहित करनेवाली संस्था गुजरात साहित्य एकेडमी को तीन साल से अपना अध्यक्ष चुनने की इजाज़त नहीं दी है।
लेकिन इन तथ्यों पर गौर करने के बजाय मोदी के हितचिंतक ब्लॉगर उनकी प्रशस्ति में पोस्ट पर पोस्ट लिखे जा रहे हैं। लगता है कि बाकी नौ ब्लॉगरों को मोदी ने जैसे अफीम सुंघा रखी हो। ऐसे में मैं यही प्रार्थना करता हूं कि हे प्रभु, इन्हें माफ करना क्योंकि ये जो कुछ कर रहे हैं, नशे में कर रहे हैं। ये देख नहीं पा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी कितना कुटिल और काइयां है। जिस दुष्ट को शहद में डुबोकर मांसाहारी लाल चीटियों के झुंड के हवाले कर दिया जाना चाहिए, उसी के बचाव के लिए ये लोग रक्षा-पंक्ति बना रहे हैं। ये भ्रमित भावुक, धर्मभीरु और राष्ट्रभक्त लोग हैं। इसलिए मालिक, इन्हें माफ करना।
Comments
आर्थिक मुद्दे पर "मुर्दाबादी" संस्कृति के पोषक हैं। इनकी आर्थिक नीतियों को अघोषित रूप में पालन करने के कारण भारत पचासों वर्ष पीछे चला गया। इन्होने देश में लाखों उद्योग-धन्धे और कल-कारखाने बन्द करवाये।
आज जब न्यायपालिका सक्रिय है, अपराधियों को दण्ड दिया जा रहा है, तो यह इन्को फूटी आँख भी नहीं सुहाता। इन्होने न्यायपालिका के विरुद्ध ही बोलना आरम्भ कर दिया है।
पर भारत के लोग इन भारत-द्रोहियों को अच्छी तरह पहचानते हैं। वे इनकी दाल कभी नहीं गलने देंगे।
समाजवादीयों ने तथा धर्मनिरपेक्षतावादीयों ने जो उत्तरप्रदेश से लेकर बंगाल तक स्वर्ग उतार कर रख दिया है उससे गुजरात को सबक लेना चाहिए और चुनाव सामने है. सत्ता लालू, पासवान, मायावती जैसे उद्धारको को सौंप देनी चाहिए.
मुगल काल से ही ऐसा कभी नहीं हुआ की गुजरात में लगातार पाँच सालो में कोई दंगाफसाद न हुआ हो, मगर अब नहीं होते, क्यों? क्योंकि दंगाई या तो मार दिये गये है या जेलों में बन्द है.
अगर हिन्दुत्व का कार्ड चल रहा होता तो विश्वहिन्दु परिषद नाराज न हुई होती.
वैसे व्यंग्य अच्छा है, और गुजरातीयों को आइना दिखाने के लिए साधूवाद उन लोगो को जिन्होने दो-दो बार मुख्यमंत्रियों को सत्ता से हटाया बिना चुनावों के. ऐसी प्रजा मूर्ख नहीं हो सकती.
मोदी समर्थक तो बहुत बाद में शुरु हुए है ब्लॉग जगत में, आसन्न चुनावों को ध्यान में रखते हुए मोदी विरोधी ब्लॉग ने तो पहले ही लेख श्रृंखला शुरु कर दी थी जो कि जारी ही है!
संजय बेंगानी जी, गुजरात की जनता को मैं कहीं से मूर्ख नहीं मानता। लेकिन वह सभी भारतीयों की तरह भावुक है और हिंसा व विभाजन की राजनीति करनेवाले नेता उसकी इसी भावुकता का फायदा उठाते हैं। खैर, दिसंबर में यह जनता अपना फैसला सुना ही देगी। ...और, गुजरात में पांच सालो में कोई दंगाफसाद नही हुआ है तो इसकी वजह ये जरूर होगी कि दंगाई या तो मार दिये गये है या जेलों में बन्द है। साथ ही यह भी कि दंगे करनेवाले ही अब सरकार में मंत्री-संत्री बने बैठे हैं।
सृजन जी, असल में 10 नहीं, मोदी से मुदित कुल 11 हिंदी ब्लॉगर हैं। एक का नाम गिनने से रह गया था।
बिल्कुल सही फरमा रहे हैं। किसी की प्रतिबद्धता की सटीक पहचान कर लेना और किसी को अपने नजरिए से बने खांचे में फिट कर लेना कितना सहज है!