Tuesday 23 October, 2007

मैंने उसे 35 साल पहले मारा था

यह मेरा नहीं, प्रायश्चित में डूबे सुंदर अय्यर का इकबालिया बयान है। वो सुंदर अय्यर जो नाम से ही नहीं, मन और काम से भी उतने ही सुंदर हैं। उनके मन की सुंदरता कैमरे से होते हुए तस्वीरों में उतर जाती है। इन तस्वीरों का उन्होंने एक ब्लॉग बना रखा है। वैसे तो सुंदर जी दक्षिण भारतीय हैं। लेकिन वो नवाबों के शहर लखनऊ में पले-बढ़े हैं। हिंदी पर उनकी अच्छी पकड़ है, लेकिन मुझे नहीं पता कि अंग्रेज़ी में क्यों ब्लॉग लिख रहे हैं। खैर, तो बात उनके 35 साल पुराने ‘गुनाह’ की। इसका मार्मिक चित्रण उन्होंने शनिवार 20 अक्टूबर को अपनी एक पोस्ट में किया है। तब वो 11-12 साल के रहे होंगे। शाम का वक्त था। वो बगीचे में दोस्तों के साथ खेल रहे थे। वहीं पेड़ की टहनी पर एक बुलबुल चहक रही थी। खेल-खेल में उन्होंने एक छोटा-सा पत्थर उस चिड़िया की तरफ फेंका। और वह चिड़िया तड़प कर ज़मीन पर गिर पड़ी। सुंदर जी, घबरा गए। हाय, उनके हाथों ये कैसा पाप हो गया। उन्होंने वहीं बगीचे के एक कोने में बुलबुल को दफ्न कर दिया। लेकिन सुंदर जी आज भी उस दुर्घटना को याद करके सिहर जाते हैं। और, मुझे उनके भीतर बैठा शुद्धोधन का पुत्र राजकुमार सिद्धार्थ नज़र आ गया, जो इसी तरह घायल पक्षी को देखकर व्यथित हो गया था।

ढलते सूरज के सामने टहनियों पर बैठी चिड़िया का ये जो सुंदर फोटो आप ऊपर देख रहे हैं, इसे सुंदर जी ने पुणे के अपने घर के पास खींचा है। लेकिन चिड़िया को देखकर उन्हे अपना पुराना दुख याद आ गया और फिर लिख डाली उन्होंने एक पोस्ट। सुंदर जी से मेरी गुजारिश है कि वो हिंदी में भी लिखा करें। और हम में से जिसको भी सुंदर तस्वीरों से लेकर सुंदर भावों में दिलचस्पी हो, वे नियमित रूप से सुंदर जी के ब्लॉग पर जा सकते हैं।

8 comments:

who cares... said...

बहुत-बहुत धन्यवाद अनिल जी...क्या कहे...आपने ्बहुत खूबसूरति से मेरा दर्द बांटा है...धन्यवाद
सादर
सुंदर

मीनाक्षी said...

अनिल जी ,
बहुत सुन्दर तरीके से आपने अय्यर जी से परिचय कराया. हमारी समस्या का हल आपकी इस पोस्ट से मिल गया.
बहुत बहुत धन्यवाद

काकेश said...

हम भी सुन्दर जी से निवेदन करेंगे के वो हिन्दी में लिखना प्रारम्भ करें.

Udan Tashtari said...

आपसे सुन्दर जी का परिचय प्राप्त करके अच्छा लगा. आपकी आवाज में हमारा भी निवेदन शामिल समझा जाये.

Gyan Dutt Pandey said...

हिंदी पर उनकी अच्छी पकड़ है, लेकिन मुझे नहीं पता कि अंग्रेज़ी में क्यों ब्लॉग लिख रहे हैं।
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भाषा तो अंग्रेजी भी अच्छी है - रघुराज जी! मेरा मन तो बाई-लिंगुअल ब्लॉग का करता है। बाकी हिन्दी वाले पसन्द नहीं करते!
असल में आप अगर एक भाषा से स्नेह करते हैं तो दूसरी से घृणा कैसे कर सकते हैं? शायद आप भी नहीं करते। अन्यथा अय्यर जी को पढ़ने कैसे पहुंचते?

Batangad said...

सुंदरजी को बहुत अच्छे से जानता हं इसलिए इस पोस्ट से सिर्फ उन बातों की पुष्टि हुई है जो, मैं पहले से जानता हूं। इस तरह की बातें स्वीकार करना साहस का काम है। वैसे सुंदर जी दूसरे भी कई साहस करते रहते हैं। काकेश ने भी कहा है कि सुंदर जी हिंदी में लिखें। कई सालों तक सुंदर जी प्रिंट-टीवी में हिंदी के पत्रकार रहे हैं। फिलहाल उनकी कोशिश कैमरे के जरिए दुनिया देखने और उसे जीने की है। उसमें हिंदी-अंग्रेजी का खास महत्व रह नहीं गया है।

आनंद said...

धन्‍यवाद, आपने एक बहुत ही मार्मिक लेख पढ़ने का मौक़ा दिया। यदि सुंदर जी हिंदी में लिख सकते हैं तो अवश्‍य लिखें। - आनंद

Anonymous said...

सुंदर! ज्ञानजी लिखिये न द्विभाषी ब्लाग्!