मची है उन्माद की लूट
आज मुंबई की सड़कों पर टीम इंडिया के स्वागत पर जैसा उन्माद दिखा और फिर पवार मार्का नेताओं ने जिस तरह इसे भुनाने की कोशिश की, उस पर मेरी पत्नी से रहा नहीं गया और उन्होंने लिख डाली ये पोस्ट। आप भी गौर फरमाइए। शायद आपको इसमें अपनी भी भावनाओं और सवालों की झलक मिल जाए।
क्रिकेट खेल था। धर्म कब से बन गया?
खेल, उत्साह था। उन्माद कब से बन गया।
********
खिलाड़िय़ों के लिए खेल उन्माद हो तो समझ में आता है।
एक आदमी के लिए खेल, खेल ही रहता तो अच्छा होता।
खुश होता, जीत की खुशिय़ां मनाता और दूसरे दिन काम पर लग जाता।
**********
मैं एक आम आदमी हूं।
सड़कों पर उतरकर भेड़ हो गया, भीड़ का हिस्सा हो गय़ा।
भीड़ बनकर मैंने सोचना बंद कर दिय़ा।
कि मेरी गाढ़ी कमाई से कटा टैक्स कहां जा रहा है।
कि मेरी कामवाली बाई के पास एक छाता तक नहीं और मैंने उसे सौ रुपए की मदद तक नहीं की।
यहां, रैपिड एक्शन फोर्स, नेताओं की सफेद वर्दी, करोडों के इंत़जामात, रुके हुए ट्रैफिक से रुका हुआ व्य़ापार...सबकी क़ीमत मैं सहर्ष उठाऊंगा।
खुशिय़ां जो मनानी है।
उन्माद के सिवा अब कोई खुशी भाती नहीं।
***********
मैं एक य़ुवा लड़की हूं।
कितनी खुश हुई wow! उस मोटे तग़डे नेता के पीछे बैठे य़ुवराज..ओं की कुछ झलक तो मिल जा रही थी।
**************
वैसे राजा-महाराजे का हमें इतना शौक था तो उन बिचारों को उखाड़ क्य़ों फेंका।
रा...ज तिलक कर हम इतने सारे राजे फिर से ला रहे हैं।
उ..इमां, हमारी समझ में कम आता है ज़रा स्पष्ट कीजिएगा तो।
*************
वैसे सुनते हैं क्रिकेट नाम का कोई नया धर्म बाज़ार में आ गया है।
*************
मैं एक रा..जनेता हूं। हा-हा-हा।
मैं एक विज्ञापनकर्ता – प्रायोजक हूं। हा-हा-हा।
करोड़ों लोगो के उन्माद को मैं एक जलसे के एलान भर से खरीद सकता हूं।
बलिहारी खेल क्रिकेट की। लोगों की भावनाओं से खेलने का रामबाणी नुस्खा दिला दिया है। जुलूस निकालवा देंगे।
***************
लोगों, मैं एक जुलूस हूं। इस भीड़ में शामिल मैं बोदा-बंदरराम हूं, न देखूं, न बोलूं, न सोचूं। सोचने की ज़रूरत क्या है, सभी तो यहीं, जुलूस में हैं।
क्रिकेट खेल था। धर्म कब से बन गया?
खेल, उत्साह था। उन्माद कब से बन गया।
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खिलाड़िय़ों के लिए खेल उन्माद हो तो समझ में आता है।
एक आदमी के लिए खेल, खेल ही रहता तो अच्छा होता।
खुश होता, जीत की खुशिय़ां मनाता और दूसरे दिन काम पर लग जाता।
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मैं एक आम आदमी हूं।
सड़कों पर उतरकर भेड़ हो गया, भीड़ का हिस्सा हो गय़ा।
भीड़ बनकर मैंने सोचना बंद कर दिय़ा।
कि मेरी गाढ़ी कमाई से कटा टैक्स कहां जा रहा है।
कि मेरी कामवाली बाई के पास एक छाता तक नहीं और मैंने उसे सौ रुपए की मदद तक नहीं की।
यहां, रैपिड एक्शन फोर्स, नेताओं की सफेद वर्दी, करोडों के इंत़जामात, रुके हुए ट्रैफिक से रुका हुआ व्य़ापार...सबकी क़ीमत मैं सहर्ष उठाऊंगा।
खुशिय़ां जो मनानी है।
उन्माद के सिवा अब कोई खुशी भाती नहीं।
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मैं एक य़ुवा लड़की हूं।
कितनी खुश हुई wow! उस मोटे तग़डे नेता के पीछे बैठे य़ुवराज..ओं की कुछ झलक तो मिल जा रही थी।
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वैसे राजा-महाराजे का हमें इतना शौक था तो उन बिचारों को उखाड़ क्य़ों फेंका।
रा...ज तिलक कर हम इतने सारे राजे फिर से ला रहे हैं।
उ..इमां, हमारी समझ में कम आता है ज़रा स्पष्ट कीजिएगा तो।
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वैसे सुनते हैं क्रिकेट नाम का कोई नया धर्म बाज़ार में आ गया है।
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मैं एक रा..जनेता हूं। हा-हा-हा।
मैं एक विज्ञापनकर्ता – प्रायोजक हूं। हा-हा-हा।
करोड़ों लोगो के उन्माद को मैं एक जलसे के एलान भर से खरीद सकता हूं।
बलिहारी खेल क्रिकेट की। लोगों की भावनाओं से खेलने का रामबाणी नुस्खा दिला दिया है। जुलूस निकालवा देंगे।
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लोगों, मैं एक जुलूस हूं। इस भीड़ में शामिल मैं बोदा-बंदरराम हूं, न देखूं, न बोलूं, न सोचूं। सोचने की ज़रूरत क्या है, सभी तो यहीं, जुलूस में हैं।
Comments
'धर्म' मानने का नतीजा
सामने आ रहा है
और, अब तो
नेता भी 'धार्मिक' हो गए है
सो 'धर्म' और राजनीति
को साथ देखकर
जनता को भी
ख़ूब मज़ा आ रहा है
जनता का पैसा
पहले
महाराज के पास जाता था
आज
युवराज के पास जा रहा है
बधाई.
many thanks!
Shivkumar ji,
aapki instant kavita bahut achchi lagi!thankyuo.
Yunusji,
ekdam thik!netalog dusaron ki aag par roti senkane ka kaun -sa mauka chukte hai.
Aphlatoon and Udan tashtari bhai,
big time dhanyavaad!
Bodhiji,
hausla-aafjai ka shukriya! aapki baat yaad rakhenge!koshish karte rahenge!
Vimalji,
sahi kaha aapne. sirf team India aur vahan bhi jeet hi dharma hai!aapka dhanyavad sir aankho par1
अनेकों लोगों की भावनाओं को शब्द दिये हैं आपने,अपनी काव्याभिव्यक्ति द्वारा.
खिलाडी तो खेल रहा है खेल,
लूट कोई और रहा है श्रेय सारा.
भारतीयम