पढ़ब-लिखब की ऐसी-तैसी...

एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2005 में उत्तर प्रदेश के सज़ायाफ्ता मुजरिमों में से 1048 ग्रेजुएट हैं। इसके बाद 651 ग्रेजुएट मुजरिमों के साथ पंजाब दूसरे और 559 ग्रेजुएट मुजरिमों के साथ मध्य प्रदेश तीसरे नंबर पर है। पोस्ट ग्रेजुएट अपराधियों में भी उत्तर प्रदेश 187 के आंकड़े के साथ पहले नंबर पर है, जबकि मध्य प्रदेश के लिए यह आंकड़ा 180, राजस्थान के लिए 130 और छत्तीसगढ़ के लिए 124 का है।
अगर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट विचाराधीन कैदियों की बात करें तब भी उत्तर प्रदेश सबसे ऊंचे पायदान पर विराजमान है। वहां के विचाराधीन कैदियों में 2029 ग्रेजुएट और 388 पोस्ट ग्रेजुएट हैं। बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और दिल्ली में ग्रेजुएट विचाराधीन कैदियों की संख्या क्रमश: 922, 858, 664 और 654 है। पोस्ट ग्रेजुएट विचाराधीन कैदियों में दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर पर क्रमश: मध्य प्रदेश (199), झारखंड (178) और राजस्थान (134) आते हैं।

साक्षरता और पढ़े-लिखे अपराधियों के आंकड़ों को आमने-सामने रखकर देखें तो उत्तर प्रदेश की बड़ी विकट तस्वीर सामने आती है। एक तरफ उत्तर प्रदेश के लोग राष्ट्रीय औसत से भी कम पढ़े-लिखे है, दूसरी तरफ जो सबसे ज्यादा पढ़ लिख गए हैं, उनमें पूरे देश की तुलना में सबसे ज्यादा अपराधी निकल रहे हैं। ज़ाहिर है कि उत्तर प्रदेश के पढ़े-लिखे नौजवानों के सामने नौकरी के मौके बेहद कम हैं। और, फिर वह निकल पड़ रहा है अपराध के रास्ते पर।
यह ऐसी क्रूर सच्चाई है, जिसको शायद मायावती की सरकार ज्यादा तवज्जो न दे। इसलिए इस उलटबांसी का जवाब हमें और आपको तलाशना होगा। देश का सबसे बड़ा राज्य अध्ययन का एक मॉडल पेश कर रहा है, एक गुत्थी पेश कर रहा है। इसका व्यावहारिक और तर्कसंगत समाधान निकालना हमारा और आपका दायित्व है।
Comments
एक एक करके देश के महान राज्य हर ओर से क्षय दिखा रहे है. अनुसंधान भरे लेख के लिये आभार
-- शास्त्री जे सी फिलिप
प्रोत्साहन की जरूरत हरेक् को होती है. ऐसा कोई आभूषण
नहीं है जिसे चमकाने पर शोभा न बढे. चिट्ठाकार भी
ऐसे ही है. आपका एक वाक्य, एक टिप्पणी, एक छोटा
सा प्रोत्साहन, उसके चिट्ठाजीवन की एक बहुत बडी कडी
बन सकती है.
आप ने आज कम से कम दस हिन्दी चिट्ठाकरों को
प्रोत्साहित किया क्या ? यदि नहीं तो क्यो नहीं ??
जब शिक्षा का यह स्तर है तो उसके आंकड़ों को क्या सहेजना!