
कुछ ही महीने पहले जिस कोकाकोला में पेस्टीसाइड पाए जाने का हल्ला मचा था, वह अब अपनी बूंद-बूंद, खुशी-खुशी (little drops of joy) से आपकी आत्मा को तर करने पहुंच गई है। और इसका सारा श्रेय प्रसून जोशी को जाता है। वही प्रसून जोशी जिन्होंने रंग दे बसंती और फना के गाने लिखे हैं। वही प्रसून जोशी जो ठंडा मतलब कोकाकोला से हिट हो चुके हैं। वही प्रसून जोशी जो एक बेहतर कल चाहते हैं हम, इसलिए सच दिखाते हैं का नारा एनडीटीवी इंडिया को दे चुके हैं। प्रसून जोशी यकीनन एक शानदार, लोकप्रिय कवि और गीतकार हैं।
प्रसून जी बीसीसीआई की टीम ‘इंडिया’ के पीछे सारे वतन की हवाओं को तूफान बनाकर चला चुके हैं, करोड़ों दिलों की दुआएं इस पर न्योछावर कर चुके हैं। वह देशभक्ति की भा

यह सही है कि विज्ञापन में अतिशयोक्ति चलती है, अतिरंजना भी चलती है। माध्यम ही ऐसा है कि इसमें चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना पड़ता है। लेकिन इसकी भी एक हद होती है। ऑक्सीरिच अपने पानी में 200% ऑक्सीजन कहकर बेचती है तो उस पर सवाल उठते हैं, फेयर एंड लवली गोरेपन को बेचती है तो उस पर भी आपत्तियां दर्ज की जाती हैं, विम बार के पानी में न घुलने के दावे वाले विज्ञापन पर भी सवाल उठाए जा चुके हैं। इन दावों को जांच कर इन पर रोक लगाने के लिए एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल (एएससीआई) भी बनी हुई है। एएससीआई अश्लील विज्ञापनों के खिलाफ भी कार्रवाई का दावा करती है। ये अलग बात है कि अमूल माचो के विज्ञापन में उसे कोई अश्लीलता नज़र नहीं आई थी।
फिर भी मेरा मानना है कि विज्ञापनों में सच में झूठ को घोलने की कुछ तो सीमा होनी चाहिए। और, खासकर लोगों की आस्था और विश्वास से जुड़ी मासूम भावनाओं को भुनाने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। मगर मुश्किल ये है कि इसे रोकने का कोई ज़रिया हमारे पास नहीं है।
3 comments:
अनिलभाई..ये सब बाज़ारवाद के चोचले हैं.बड़े शहरों की एडवरटाइज़िंग एजेंसिया वाक़ई भावनाओं से खेलने में माहिर होती हैं.उसके काँपीराइटर को पैसा ही इस बात का मिलता है कि वह इंसानी जज़बातों के साथ कितना ज़्यादा खेल सकता है. मैं भी एक एड-एजेंसी चलाता हूँ और भाषा मेरा ख़ास विषय है लेकिन इंसानी ऊसूलों से खेलने को कभी जी नहीं चाहा.दर-असल हम छोटे शहरों वाले लोग एक सीमित दायरे में काम करते हैं जबकि मुंबई,दिल्ली,कोलकाता वालों को अपनी बात पूरे देश से कहनी होती है...दाँव पर लगा होता है पैसा और ब्राँड की साख...तो साहब सारा तामझाम रूपये-पैसे का है...मनुष्यता..भावनाएँ...जज़बात ...ठेंगे से !
sanjay ji ki baat sahi hai
सबसे बुरा दिन
सबसे बुरा दिन वह होगा
जब.........
शास्त्र हर हाल में
आशा की कविता के पक्ष में है
सत्ता और संपादक को सलामी के पश्चात
कवि को सुहाता है करुणा का धंधा
विज्ञापन युग में कविता और ‘कॉपीराइटिंग’ की
गहन अंतर्क्रिया के पश्चात
जन्म लेगी ‘विज्ञ कविता’
यह नई विधा के जन्म पर सोहर गाने का दिन होगा
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पूरी कविता के लिए देखें :
http://anahadnaad.wordpress.com/2006/10/11/poem2-priyankar/
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