हर साल हम गणपति को स्थापित करते हैं। फिर कुछ दिनों बाद विसर्जित कर देते हैं। लेकिन हमारे आराध्य का इस बार ऐसा हश्र न हो, जैसा इन तीन तस्वीरों में दिख रहा है। सरकार के साथ ही हमें भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
भाग रही है दुनिया, तेजी से बदल रहा है मेरा भारत। ऐसे में कैसे बदलता है वह इंसान जो परम्परा और आधुनिकता के बीच की कड़ी बनना चाहता है, जिंदगी के हर रंग को देखना चाहता है...
उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर ज़िले के एक छोटे से गांव में पैदा हुआ। सरकारी वजीफे पर नैनीताल के एक आवासीय स्कूल में 12वीं तक पढ़ाई की। फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी पहुंचा तो ऐसा ‘ज्ञान’ मिला कि दुखिया दास कबीर है जागै अरु रोवै की हालत में पहुंच गया। सालों बाद भी उसी अवस्था में हूं। मुझे लगता है कि हम एक साथ हजारों जिंदगियां जीते हैं, अलग-अलग अंश में अलग-अलग किरदार। मैं इनमे से हर अंश को अलग शरीर और आत्मा देना चाहता हूं। एक से अनेक होना चाहता हूं।
4 comments:
मुंह की बात छीन ली आपने!!
इन तस्वीरों को देखकर मेरे मुंह से भी बस यही बात निकली थी!
भक्तों के ताप का सामना करने के लिए तैयार हैं क्या
हो सकता है कुछ भक्त इससे नाराज हों। लेकिन, दो चार आस्थावान भक्त भी इसे समझ सके तो, धन्यभाग। भगवान तो, आपसे खुश होंगे ही।
हर्ष जी, भक्तों की भावना को ही ध्यान में रखते हुए एक तस्वीर हटा दी, जबिक बाकी दो को ब्लर कर दिया है।
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