शादी की मियाद बस सात साल हो!

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
परेशान मत होइए। यह अभी तक महज एक सुझाव है और वो भी किसी भारतीय का नहीं, बल्कि जर्मनी के बवेरिया प्रांत की राजनेता गैब्रिएल पॉली का। गैब्रिएल अपने प्रांत में क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) के प्रमुख पद की प्रत्याशी हैं। यह चुनाव अगले हफ्ते होना है। सीएसयू जर्मनी की सत्ताधारी पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स (सीडीयू) से जुड़ी हुई पार्टी है।
गैब्रिएल पॉली का कहना है कि ज्यादातर शादियां बस इसीलिए चलती रहती हैं क्योंकि लोगों को लगता है कि वे इस रिश्ते में सुरक्षित हैं। इस नज़रिये की बुनियाद ही गलत है और शादियों की मियाद सात साल तय कर दी जानी चाहिए। मियां-बीवी अगर राजी-खुशी तैयार हों तभी इसे आगे बढ़ाना चाहिए नहीं तो इस रिश्ते को खुद-ब-खुद खत्म मान लिया जाना चाहिए। गैब्रिएल ने खुद अपनी ही पार्टी पर परंपरागत रूढ़िवादी पारिवारिक मूल्यों को प्रश्रय देने का आरोप लगाया है।
गैब्रिएल ने इसी साल 26 जून को अपना 50वां जन्मदिन मनाया है और अब तक दो बार उनका तलाक हो चुका है। आपको बता दें कि गैब्रिएल कुछ-कुछ हमारे सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसी नेता हैं। अक्सर कुछ न कुछ ऐसा करती रहती हैं जिस पर बवाल मचता रहता है। उनकी ही बगावत के चलते दस साल से बवेरिया प्रांत के प्रमुख रहे एडमंड स्टॉयबर को इसी साल जनवरी में इस्तीफा देना पड़ा था। इसके फौरन बाद गैब्रिएल पॉली ने एक मैगज़ीन के लिए रबर के आपत्तिजनक दस्ताने पहनकर फोटो खिंचवाई, जिस पर काफी बवाल मचा।
शादी पर उनके ताज़ा प्रस्ताव से भी बवेरिया ही नहीं, पूरी जर्मनी में विवाद शुरू हो गया है। पूरा ईसाई जगत भी इससे सकते में है। वैसे गैब्रिएल का प्रस्ताव यूरोप के समाज के एक सच की ही झलक पेश करता है। जर्मनी में शादियों की औसत उम्र दस साल से ज्यादा नहीं है। एक अध्ययन के मुताबिक पिछले चालीस सालों में पूरे यूरोप में जहां शादियों की दर में कमी आई, वहीं तलाक की संख्या कई गुना बढ़ गई है। अविवाहित माताएं और सिंगल पैरेंट भी अब समाज में साफ जगह बना चुके हैं।
लेकिन एक बात है कि जर्मनी या पूरे यूरोप में जोड़े जब तक साथ रहते हैं, तब तक पूरी तरह एक दूसरे को समर्पित होते हैं। यह समर्पण खत्म हो जाता है तो वे अपना रिश्ता भी तोड़ देते हैं। अपने समाज में विवाहेतर संबंधों की हकीकत से तो आप वाकिफ ही होंगे। प्रेमी या प्रेमिका के साथ मिलकर पति या पत्नी की हत्या करने की कोई न कोई की खबर हर दिन अखबार के कोने में पड़ी रहती है।

Comments

सुझाव अच्छा है ... भारत भी अपनाए तो हमारे लिए कई विकल्प सामने आ सकते हैं ... मजाक एक तरफ, सर ऐसे फैसले तानाशाही की मिसाल बन सकते हैं ... लिहाजा अगर मर्जी से हों तो ठीक है ... ऐसा कानून कतई नहीं बनना चाहिए।
भैया रघुराज जी, पिछली बार चेहरा मिलाने वाली आपकी पोस्ट में कमेण्ट में गम्भीरता दिखा कर मुझे लगा था कि कहीं आप नाराज न हो गये हों - सो बाद में आ कर लीपापोती कर गया था.
कुछ वैसा ही इस पोस्ट पर कमेण्टियाने में हो रहा है.
यहां सात साल का नियम तो तब चले जब हमें रोटी बनानी आती हो और पत्नी को नौकरी करनी! यहां तो ज्यादातर लोग-लुगाई एक दूसरे के पूरक हैं.
शादी की मियाद बस सात साल ही होती है लेकिन विवाह की मियाद उम्र भर होती है।
Udan Tashtari said…
उनकी समझ से तो सात साल भी बढ़ा चढ़ा कर ही रखी है. :)

कैसे काटेंगे इतना लम्बा समय.
चलिये, कहीँ तो सात-जन्मों की बात होती है और यहाँ तो सात साल की। बस संस्कृतियों के साथ इकाई का फेर है। शायद कहीं पर इकाई कुछ और भी हो!

एक सुझाव और - कृपया इस आलेख का एलाइनमेंट बायीँ और कर लें, जस्टिफ़ाइड होने से फ़ायरफॉक्स में सही नहीँ दीखता।
राजीव भाई, आपका सुझाव फौरन मानते हुए मैंने टेक्स्ट का लेफ्ट एलाइनमेंट कर दिया है।
और ज्ञानदत्त जी, मैं तो इसी से गदगद था कि आपने मेरे लेख पर कमेंट किया। वैसे भी आप बड़े और अनुभवी हैं। फिर आपने तो अच्छा और सही ही लिखा था और आज भी बेहद मार्के की व्यावहारिक बात उठाई है। शुक्रिया...
पुरुष और नारी जीवन रूपी गाड़ी के पहिये माने जाते हैं। सरकारी हिसाब से भारत में गाड़ियों की लाइफ सात साल मानी जाती है। कुछ इसी तरह का हिसाब-किताब होगा इस बयान में भी। :)सात साल में खलास !
पुरुष और नारी जीवन रूपी गाड़ी के पहिये माने जाते हैं। सरकारी हिसाब से भारत में गाड़ियों की लाइफ सात साल मानी जाती है। कुछ इसी तरह का हिसाब-किताब होगा इस बयान में भी। :)सात साल में खलास !

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