
उनकी शिकायत यह है कि अभी ढाई हफ्ते पहले ही भारतीय हॉकी टीम ने एशिया कप बेहद शानदार अंदाज में जीता है। टीम ने इस टूर्नामेंट में 57 गोल किए जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। लेकिन देश के इस राष्ट्रीय खेल के लिए महज जुबानी शाबासी दी गई, जबकि 20/20 विश्व कप जीतनेवाली क्रिकेट टीम पर करोड़ों न्योछावर किए जा रहे हैं। कर्नाटक सरकार की हालत ये है कि उसने हॉकी टीम को जीतने की बधाई तक नहीं दी है, जबकि क्रिकेट टीम के सदस्यों को पांच-पांच लाख रुपए का ईनाम देने की घोषणा की है।
हॉकी टीम के राष्ट्रीय कोच कार्वाल्हो ने सवाल उठाया है कि हमारे हॉकी खिलाड़ियों के साथ इस तरह का सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है और राष्ट्रीय खेल होने के बावजूद हमारे नेता क्रिकेट के प्रति इतने आसक्त क्यों हैं?
कार्वाल्हो का सवाल बड़ा वाजिब है। आपको भी इसका जवाब सोचना पड़ेगा। मेरे पास तो इस सवाल का मोटामोटी जवाब यह है कि जहां गुड़ होता है, चीटियां उधर ही भागती हैं, जहां कमाई है, उधर ही सब टूट पड़ते हैं। क्रिकेट मे कमाई हैं तो नेताओं से लेकर कंपनियां तक उधर ही टूटी पड़ी हैं। ये तो भला हो सहारा ग्रुप का, जिसने कुछ साल पहले न जाने क्या सोचकर भारतीय हॉकी टीम को स्पांसर कर दिया।
3 comments:
आह!! सच में दुखद घटना . हमें हॉकी को भी उतना ही तवज्जो देना चाहिए
हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है इस ओर विशेष ध्यान देने की जरुरत है।
बताईये हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है..और हॉकी के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार असल में इन लोगो में खेल भावना रंच मात्र भी बची नही है. सब साले जितने लम्बे समय तक कुर्सी पकड़ कर माल छापना चानते है. जिन्होने ऑलम्पिक में सोना दिलाया था आज वाकई भीख मांगकर गुज़ारा कर रहे है.. जिन्होने हॉकी के लिये अपना जीवन कुर्बान कर दिया वो दर दर की ठोकरे खा रहे है.. हॉकी के साथ इतना सौतेला व्यवहार की मैच खेलने के लिये रोज़ १०० रू मिलते है उससे वो क्या खेलेगा और क्या निचोडे़गा.मेरा भी समर्थन है इन हॉकी खिलाड़ियो को.
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