Tuesday 28 August, 2007

कितने फ्लेक्सिबल हैं हम और हमारे त्योहार

रक्षाबंधन आज है। लेकिन मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में कई भाई-बहनों ने परसों ही राखी मना ली। बहन भाई के घर गई या भाई बहन के घर आ गया। बहन ने भाई को अक्षत-रोली का तिलक लगाया, मिठाई खिलाई। भाई ने 101 या 501 रुपए का लिफाफा दे दिया। पूरी-मिठाई खाने के बाद एक-दो घंटे गपशप हुई और रक्षाबंधन खत्म। जो बाहर से आया था, वो अपने घर चला गया। बहन दूसरे शहर या गांव में है तो उसने हफ्ते भर पहले ही राखी भिजवा दी और भाई ने कोई और नहीं मिला तो अपनी बेटियों से राखी बंधवा ली। ये हैं जीवन-स्थितियों का दबाव।
लेकिन देश-दुनिया का सर्वग्रासी बाज़ार सामूहिकता के एक भी मौके को हाथ से नहीं जाने देता। जैसे ही हमारी सामूहिकता का कोई प्रतीक नज़र आया, बाज़ार उसे पकड़ने के लिए लपक पड़ता है। गणेश पर एनीमेशन फिल्म आनेवाली है तो बाज़ार गणेश की राखियों से पटा पड़ा है, जबकि गणेश और राखी का वैसे कोई लेना-देना नहीं है। इसी तरह पिछले सालों में जादू और हनुमान की राखियों की धूम थी। हालत ये है कि चीन हमारे त्योहारों के लिए पहले से तैयारी कर लेता है। नितांत भारतीय त्योहार रक्षाबंधन में मिल रही हैं मेड-इन चाइना राखियां। ये है बाज़ार का दबाव।
एक बात और। जो भारत से जितना दूर है, उसके अंदर भारतीयता का आग्रह उतना ही प्रबल है। आज अमेरिका और यूरोप में बसे अनिवासी भारतीयों में रक्षाबंधन या दूसरे त्योहारों का उत्साह कहीं ज्यादा नज़र आता है। मॉरीशस से लेकर सूरीनाम जैसे देश हमारे लोकगीतों, लोकभाषाओं और त्योहारों के हमसे कहीं ज्यादा मुरीद हैं। गांवों में चले जाइये। हर दिन की तरह वहां आज भी मायूसी छाई होगी। ये है बदलते वक्त का दबाव।
चलिए मैंने तो नहा-धोकर राखी बंधवा ली। विधि-विधान से रक्षाबंधन मनाने का कर्मकांड तो काफी विस्तृत है। लेकिन आप चाहें तो राखी बंधवाते वक्त ये श्लोक पढ़ सकते हैं –
ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:।
तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।

5 comments:

अभय तिवारी said...

अगली बार.. इस बार हो गया..

Anonymous said...

कितने लचीले हैं हम और हमारी भाषा!

mamta said...

अब बचपन की तरह तो हो नही सकता । वैसे राखी का जोश तो आज भी अपने देश मे कुछ कम नही है।
बाजार का तो खैर कहना ही क्या। उसे तो कमाने से मतलब है।

Udan Tashtari said...

खैर फलेक्सेबिलिटी तो अच्छी बात है. :) अच्छा लगा पढ़कर.

Unknown said...

एक और श्लोक भी है
"येन बध्धो बली राजा दानवेंद्रो महाबलः, तेनत्वामी मपिबंधनामी रक्षे माचल माचलः"