
आधिकारिक खबरों के मुताबिक एनडीटीवी इंडिया की संपादकीय ज़िम्मेदारियों में भारी फेरबदल किया गया है। मैनेजिंग एडिटर दिबांग को सारी ज़िम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया है। उन्हें कंसल्टेंट भी नहीं बनाया गया है, क्योंकि विनोद दुआ तो पहले से ही कंसल्टेंट हैं और चैनल में दो कंसल्टेंट नहीं हो सकते। एनडीटीवी समूह से लंबे अरसे से जुड़े संजय अहिरवाल को अब हिंदी चैनल का एग्जीक्यूटिव एडिटर बना दिया गया है। साथ ही पहले पटना और अब मुंबई ब्यूरो के इनचार्ज मनीष कुमार को भी एग्जीक्यूटिव एडिटर की ज़िम्मेदारी दी गई है। संजय अहिरवाल अपनी गंभीरता और राजनीतिक साफगोई के लिए जाने जाते हैं, जबकि मनीष कुमार की छवि एक बेहद डायनेमिक पत्रकार की रही है। इसके अलावा दमदार और अनुभवी रिपोर्टर मनोरंजन भारती को चैनल का राजनीतिक संपादक बना दिया गया है।
इन तब्दीलियों से एनडीटीवी इंडिया में नई ऊर्जा डालने की कोशिश की गई है। नहीं तो चार-साढ़े चार सालों से दिबांग की अगुआई में शानदार ब्रांड इमेज के बावजूद ये प्राइम न्यूज़ चैनल लगातार अपनी ऊर्जा खोता जा रहा था। टीआरपी में यह आखिरी पायदान पर पहुंच चुका है। लेकिन इससे भी बड़ी बात ये है कि इसका न्यूज-सेंस भी इन दिनों दूरदर्शनी होता जा रहा था। ज़ाहिर है दिबांग की दबंगई खत्म होने से एनडीटीवी इंडिया में ही नहीं, पूरे हिंदी टेलिविजन न्यूज़ की दुनिया में नई उमंग और तरंग आने की उम्मीद की जा सकती है।
संशोधन : दिबांग ने एनडीटीवी इंडिया से इस्तीफा अभी तक नहीं दिया है। क्यों नहीं दिया है, ये उनकी गैरत पर बड़ा सवाल है। असल में उनको बड़ी शालीनता से फील्ड रिपोर्टिंग में डालने का फैसला किया गया है और रोजमर्रा के सभी कामों से मुक्त कर दिया गया है। इससे ज्यादा साफ संकेत किसी को इस्तीफा देने के लिए कोई और हो नहीं सकता।
नोट : ये सूचना मीडिया पर मेरी सोच की अगली कड़ी का हिस्सा नहीं है।
10 comments:
शानदार ब्रांड इमेज सबसे पुराने और बिज़नेस तथा इंग्लिश चैनल के भरोसे बने संपर्क सूत्रों से हैं।
सवा तीन साल से यूपीए की सरकार है लिहाज़ा तेवर तीखे होने का सवाल कहां उठता है। दूरदर्शनी ता-था-तैय्या होगा ही।
टीआरपी गेन करना एनडीटीवी का उद्देश्य नहीं रहा, यदि इस दौड़ में वो शामिल हो गया तो इमेज का क्या होगा?
पहली बार अपके ब्लोग पर टिपण्णी कर रहा हूँ , ज्यादा समझदार नही हूँ इसलिये कुछ गलत सलत लिख दिया हो तो माफ़ कीजियेगा। दिबांग की गुंडई के बारे मे मैंने भी काफी कुछ सुना है और उनके सताए हुए लोगो के चहरे पर दर्द की वो छाया देखी है जिससे साफ पता चलता है कि डेमोक्रेटिक होने का दावा करना और होने मे कितना बड़ा फर्क है । लोगबाग तो कहते हैं कि टी वी स्क्रीन पर जो दिखता है उसका ठीक उल्टा ही होता है। जैसे किसी से सीधे मुह बात न करना , बात बात पर हर किसी को बुरी भद्दी गालियों से नवाजना। मतलब क्या ये सिर्फ हाथी के दांत ही थे ? जब मैं पत्रकारिता मे आ रहा था तो मेरे बडे भैया ने समझाया था कि पॉवर टेस्ट से जितना हो सके दूर रहना । ये कस्बाई पत्रकारो की मानसिकता होती है और वो इसी टेस्ट मे डूब कर कभी इनको तो कभी उनको हड्काने मे अपनी जिंदगी गुजार देते हैं। पत्रकारिता नही करते। एक और मानसिकता होती है कस्बाई पत्रकारों की, (यहाँ कस्बाई पत्रकारों से मेरा आशय उन पत्रकारों से है जिन्होंने पत्रकारिता को दलाली समझ रखा है और चूंकि उनके बडे बडे लोगो से सम्पर्क होते हैं इसलिये उनमे यह गुरूर भी आ जाता है कि वो भी बडे तोप तोपची हो गए हैं ) अगर उनका जुगाड़ मेंट कही फिट हो जाता है तो वो अपने आपको तोप समझने लगते हैं। लेकिन ये एक ऐसी तोप होती है जिसमे गोला नही होता और अगर होता भी है तो वो तोप की नाल से ढुलक कर गिर जाता है और फिर नुकसान तोप का ही होता है। एन डी टी वी सबसे अच्छा न्यूज चैनल है लेकिन आपकी बात से भी मैं सौ प्रतिशत सहमत हूँ कि ये दूरदर्शन बनता जा रहा था। और बने भी क्यों नही ? जब बात बात पर लोगो को गालियाँ और बे इज्ज़ती मिले तो किसका मन लगेगा काम करने मे ? अगर आपको मिली खबर सही है तो आशा करता हूँ कि आगे से हम लोगो को फिर से वही पहले वाला एन डी टी वी देखने को मिलेगा। तानाशाही मे काम नही होता है सिर्फ गुलामी होती है। और गुलामी हमेशा बिना मन की होती है।
बेगानी शादी मे अब्दुल्ला दिवाना!!!
रंजन बाबू, बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना नहीं हो रहा है। दिबांग की निरंकुश सत्ता के ताबूत में पहली कील मैंने ही ठोंकी थी। इसलिए अपनी चाहत के सही साबित होने पर खुश हो रहा हूं।
ओह, कैसी प्यारी, कितनी दुलारी ख़बर है! मैं दिबांग को जानता भी नहीं, मगर उसके भाड़ में जाने की कामना कर रहा हूं! ऐसी अच्छी ख़बर सबसे पहले सुनाने की बधाई!
दिबांग का चाकर प्रियदर्शन गयो कि नहीं।
वो अपने को बेजोड़ थिंकर समझो है।
बढिया कवरेज किया है भाई दीबांग को । अति का अंत होना आवश्ययक है ।
बधाई !
“आरंभ”
और हां ये राहुल भाई नें जो पत्रकारिता की जानकारी शेयर की है वह भी हमें अच्छी लगी
“आरंभ”
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