
चीनी प्रधानमंत्री के मुताबिक दोनों देशों का विकास एक दूसरे का पूरक है। यह दोनों की समृद्धि और ताकत हासिल करने का मौका देगा, न कि एक दूसरे के लिए खतरा पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि इस साल जब भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चीन की यात्रा पर आएंगे तो उनका जबरदस्त स्वागत किया जाएगा। इस ‘बिग इवेंट’ के लिए अभी से तैयारियां शुरू हो गई हैं।
दिक्कत ये है कि भारतीय जनमानस में चीनी नेताओं के बयानों को अब भी संदेह की निगाह से देखा जाता है, क्योंकि हिंदी-चीनी भाई-भाई का सबक पूरा देश 1962 में युद्ध के रूप में झेल चुका है। लेकिन हालात हमेशा एक-से नहीं रहते।
(कल पढ़िए – न्यूक्लियर डील पर नीर-क्षीर)
3 comments:
तीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.
यात्रा पूरी कर चुके? चीन भाई-भाई कह रहा है और आप लाइ-लाइ खेल रहे हैं? क्यों? इसीलिए कि आज के ज़माने में 'दोस्त दोस्त ना रहा, प्यार प्यार ना रहा.. ज़िन्दगी हमें तेरा ऐतबार ना रहा'?
चीन का डर हमें नहीं है डर है तो अमेरिका से। अमेरिका पीठ पर कभी भी छूरा मार सकता है और अपनी प्रचार टोली के माध्यम से यह प्रचार भी करवा सकता है कि भारत ने गलती की थी, जैसा इराक के साथ हुआ। इतिहास पर नज़र डाले तो अमेरिका उसे जरुर मारता है जो उसका दोस्त हो और भविष्य में उसे किसी न किसी रुप में चुनौती देने की ताकत रखता हो। कोल्ड वार के समय इराक अमेरिका के साथ था अमेरिका ने ही इराक को युद्धक सामन दिया और तेल की लालच में रसायन हथियार के नाम पर इराक को तबाह कर दिया। ओसामा को अमेरिका ने ही हथियार मुहैया कराया था और अब ओसामा को मारने के लिये अमेरिका ने ही अभियान छेड़ रखा है। यदि 1962 में चीन ने भारत पर हमला किया था तो अमेरिका की मदद और शह पर पाकिस्तान ने भारत पर कई बार हमला कर चुका है। अमेरिका किसी भी हाल में भारत,ऱुस और चीन के बीच गठबंधन नहीं होने देना चाहता है। जहां तक चीन का सवाल है तो वो भारत के लिये खतरा पैदा नहीं हो सकता क्योकि दोनो का ध्यान बाजार पर है और सामरिक मामले में भारत की स्थिति 1962 वाली नहीं रही । भारत चीन की राजधानी तक मार करने की क्षमता रखता है।
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