
भारतीय क्रिकेट पर बीसीआईआई के एकाधिकार और राष्ट्रीय भावना को भुनाने की उसकी कोशिशों पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। खुद मैंने सवाल उठाया है। लेकिन पहले मुझे अपना सवाल हवा में छोड़े गए तीर जैसा लगता था। लेकिन जब ज़ी समूह के मालिक सुभाष चंद्रा को राष्ट्रवादी भावना के इस उफान की कीमत समझ में आई तो उन्होंने भी एक नई संस्था बना डाली, इंडियन क्रिकेट लीग, जिसका मुखिया बनाया भारत को विश्व कप दिलानेवाले कप्तान कपिलदेव को। यही नहीं, धीरे-धीरे वो इस लीग से 51 नामी-गिरामी खिलाड़ियों को जोड़ने में कामयाब रहे हैं, जिनमें ब्रायन लारा और इंजमाम उल हक जैसे स्टार शामिल हैं।
बीसीसीआई के अधिकारी भले ही कोर्ट में मामला जाने के बाद कह रहे हों कि यह कोई बिग डील नहीं है, बीसीसीआई का बड़ा नाम है तो उसके खिलाफ हर कोई याचिका करता ही रहता है। लेकिन सच यही है कि आईसीएल के आने की आहट से ही उसके पसीने छूट रहे हैं। आईसीएल की तरफ जानेवाले खिलाड़ियों पर आखें तरेर रहा है तो अपने साथ जुड़े खिलाड़ियों की फीस बढ़ा रहा है। मजे की बात ये है कि वह खुद को नॉन-प्रॉफिट संस्था बताता है। लेकिन जब कोई प्रॉफिट ही नहीं है तो उसने अपने पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया पर करोड़ों के गमन का आरोप कैसे लगा दिया और वो खिलाड़ियों को लाखों रुपए कहां से देता है। अब आईसीएल इसी मलाई में हिस्सा बांटने के लिए आ गया तो बीसीसीआई को जबरदस्त किरकिरी हो रही है। लेकिन खिसियानी बिल्ली की कोई खीझ काम नहीं आ रही।
हां, ये ज़रूर है कि बीसीसीआई के एकाधिकार के खत्म होने से उन करोड़ों भारतीयों का वो भ्रम टूट जाएगा, टीम इंडिया के नाम का वो सहारा छूट जाएगा जिसके जरिए वो जीतने की उमंग में हिलोरे लेने लगते थे। आखिर भारत और भारतीयता की जीत के कितने प्रतीक ही हैं हमारे पास? लेकिन झूठी तसल्लियों और झूठे प्रतीकों में फंसे रहने से अच्छा है कि हम खुलकर सच का मुकाबला करें। सचमुच बाज़ार इतनी बुरी चीज़ नहीं है, जितना हम समझते हैं। यह बाज़ार में मची होड़ ही है जो सालों-साल से भारतीय राष्ट्रवाद की भावना को मजे से भुनाने वाले प्राइवेट क्लब के मंसूबों पर पानी फेरने जा रही है।
6 comments:
आप का तीर हवा मे नही था जनाब बिलकुल ठीक था वैसे भी अब BCCI एक राजनीतिक अखाड़ा ज़्यादा बन गया है और इसका असर टीम इंडिया पर अब साफ दिखने लगा है
क्रिकेट, बीसीसीआई या आईसीएल से मेरा लेना देना नहीं. पर प्रसन्नता इसपर है कि मोनोपोली टूटने की सम्भावना बनती है!
मजे की बात ये है कि वह खुद को नॉन-प्रॉफिट संस्था बताता है। लेकिन जब कोई पैसा ही नहीं है तो उसने अपने पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया पर करोड़ों के गमन का आरोप कैसे लगा दिया और वो खिलाड़ियों को लाखों रुपए कहां से देता है।
अनिल जी, यह कहाँ लिखा है कि non-profit संस्थाओं के पास पैसा नहीं होता और वे भूखे-नंगे होते हैं? non-profit संस्थाएँ वे होती हैं जो अपने किसी आर्थिक लाभ के लिए धंधा नहीं करती। अक्सर ऐसी संस्थाएँ no profit no loss पर धंधा करती हैं, यानि कि जितना वो कमाती हैं उसमें से कुछ अपने लिए रखने के स्थान पर सारी कमाई लागत में लगाती हैं। यहाँ अगर BCCI का उदाहरण ले रहे हैं तो इस तरह से देख सकते हैं कि खेलों से होने वाली कमाई को वे खिलाड़ियों(जिनसे कमाई हो रही है) की फीस, मातहतों के वेतन और अन्य खर्चों में लगाती हैं।
अब अपनी समझ तो यही कहती है कि non-profit संस्थाएँ ऐसी होती हैं और जहाँ तक मेरा अनुमान है यह सही है पर मैं कोई दावा नहीं करता कि जो मैंने कहा वह शत् प्रतिशत सत्य है।
"टीम इंडिया किसकी? इसकी या उसकी?"
जो ज्यादा रुपल्ली टिकाएगा उसकी। अधिक जानकारी के लिए हमरी पोस्ट का भी नज़ारा लिया जाए।
अनिलजी देखिये पैसा तो सबको चाहिये जो भी हो खिलाड़ियों को खेलने का मौका मिलना चाहिये, ये जानकर आश्चर्य है की छ्ब्बीस साल के बंगाल के खिलाड़ी को खेलने का मौका कम ही मिला है पर अभी से उसके नाम के पहले वेटरन शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है जबकि चो खिलाड़ी ४से ६ एक दिनी मैच ही खेल पाया है... और उसको भी खेलने का मौका भी नही मिल रहा है वो खिलाड़ी आई सी एल मे जाने के बाद दर के मारे फिर से वापस अपनी पुरानी स्थिति में लौट गया है.. पर खिलाड़ी इस पूरे मामले को कैसे लें उन्हें समझ नहीं आ रहा है.फिर भी आपने बीसीसीआई असलियत जो सामने रखी है उससे लगता यही है कि आईसीएल भी मजबूत स्थिति में है.. और ICC और BCCI के आपसी रिश्ते अभी तक भारतीय जनता को वाकई पता नहीं है अगर जान गई तो फिर तो मोहभंग की स्थिति पैदा हो जायेगी जो दुखद है
VIMAL VERMA
बीसीसीआई एक क्रिकेट क्लब है जो आजकल क्रिकेट कम और पैसे कमाने का जरिया बन गया है। इस लिये बीसीसीआई आईसीएल से घबरा रही है कि उनका एकतरफा दबदबा और कमाई खत्म हो जायेगी। पैसा इतना कमा रहे हैं कि खेल पर उनका ध्यान हीं नहीं है। इसका ठोस उदाहरण है विश्व कप के सुपर 8 में भारत का नहीं पहुंचना। बीसीसीआई को अपने खर्च और कमाई का व्यौरा जारी करना चाहिये क्योकिं क्रिकेट किसी क्लब का मामला नहीं रहा बल्कि यह देश की धड़कन से जुड़ गया है।
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