अरे माया! जिसने उठाया, उसी को भुलाया?
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आपको बता दूं कि इस समय उत्तर प्रदेश में कृषि भूमि पर 12.5 एकड़ की सीलिंग सीमा लागू है। सवाल उठता है कि जब पहले से ये प्रावधान है कि औद्योगिक मकसद के लिए कोई कितनी भी कृषि ज़मीन खरीद सकता है तो नई नीति में सीलिंग सीमा से ऊपर ज़मीन खरीदने पर छूट की बात क्यों और किसके लिए की गई है? आखिर कौन हैं जिनको मायावती की सरकार 12.5 एकड़ से ज्यादा कृषि भूमि खरीदने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती है?
खुद उ.प्र. सरकार के मुताबिक इस समय राज्य के लगभग 90 फीसदी किसान लघु या सीमांत श्रेणी के हैं और इनकी माली हालत काफी खस्ता है। 1991-92 के अनुमानों के मुताबिक 60 फीसदी किसानों के पास ढाई एकड़ से कम ज़मीन है, जबकि भूमिहीन किसानों की संख्या 11.24 फीसदी है। सरकार मानती है कि इसके बाद के 15 सालों में छोटी जोतों की संख्या और बढ़ गई होगी
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इन भूमिहीन या लघु व सीमांत किसानों की ज्यादातर आबादी दलित या अति पिछड़ी जातियों से आती है और यही लोग मायावती का मुख्य आधार हैं। इन किसानों में से शायद ही किसी की औकात होगी कि वे 12.5 एकड़ से ज्यादा जमीन खरीद सकें। ज़ाहिर है कि मायावती अपने मूलाधार से बाहर के लोगों के लिए ज़मीन खरीदना आसान बना रही हैं और जिन्होंने इन्हें भारी बहुमत से सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाया, उन्हें ही ठेंगा दिखा रही हैं।
कितनी अजीब बात है कि इसी सरकार ने इस साल के बजट में किसान हित योजना के तहत दलित और पिछड़े लोगों के कब्ज़े वाली सात लाख हेक्टेयर ऊसर, बंजर और बीहड़ ज़मीन को ऊर्वर बनाने की बात कही थी, ग्रामसभा और सीलिंग से बाहर निकली अतिरिक्त ज़मीन को गरीब भूमिहीन लोगों में बांटने की बात कही थी। लेकिन नई कृषि नीति में इसका कोई जिक्र नहीं है। उल्टे बड़े किसानों को सीलिंग से ज्यादा ज़मीन हथियाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
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आखिर मायावती सरकार किसको लुभाना चाहती है? जब केंद्र सरकार और उसके योजनाकार कृषि की 4 फीसदी सालाना विकास दर का ख्वाब पाल रहे हैं, तब माया सरकार ने उत्तर प्रदेश में कृषि के 5.7 फीसदी सालाना विकास का लक्ष्य तय किया है। आखिर मायावती के पास कौन-सी जादू की छड़ी आ गई है कि जिस लक्ष्य को हासिल करने में बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों के छक्के छूट रहे हैं, उससे करीब दो फीसदी ज्यादा विकास दर वो चुटकी बजाकर हासिल करने का दावा कर रही हैं? मुझे तो यही लगता है कि हमें फिलहाल यही सोचकर संतोष रखना पड़ेगा कि माया महाठगिनी हम जानी।...समाप्त
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पुनः आभार..