आम हूं, इसीलिए इतना खास हूं
आम आदमी हूं। अपने ही नहीं, औरों के भी भगवान से डरता हूं। क्या पता कब किसी मंदिर के इष्टदेव बुरा मान जाएं, मज़ार में बैठा पीर-औलिया किसी बात पर खफा हो जाए, किसी पेड़ में बसा देव नाराज़ हो जाए। इसीलिए हर किसी को आंख बंद करके प्रणाम करता हूं। अपना क्या जाता है! हां, किसी से कुछ कहने में, मांगने में ज़रा-सा भी नहीं डरता। बाबूजी कहा करते थे – अरे कोई भीख नहीं देगा तो तुमड़ी तो नहीं फोड़ देगा। इसलिए बेहिचक अपनी बात कह दिया करो। तो उनकी ये बात हमने आज तक गांठ बांध रखी है।
भूतों से डरता हूं। इतना बड़ा हो जाने के बाद भी अंधेरे में अकेले जाने से घबराता हूं। सपने में भी भूत-पिशाच, डाइन-चुड़ैल दिख जाए तो हनुमान चालीसा या गायत्री मंत्री का जाप करने लगता हूं। आज में जीता हूं, आनेवाले कल से डरता हूं, बीते हुए कल को याद करता हूं। वैसे तो सभी पर यकीन करता हूं, लेकिन कहीं कोई ऊंच-नीच न हो जाए, कोई ठग न ले, इस बात से हमेशा भयभीत रहता हूं। मैं नहीं जानता ऐसा क्यों है। लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि अंग्रेजों ने दो सौ सालों तक आम हिंदुस्तानियों को दबाकर रखा और हमारे बाप-दादा खास तो थे नहीं। वो भी डरते थे तो मैं भी दब्बू हूं। ऐसा होना तो लाज़िमी था।
ओमकारा में बिपाशा के बीड़ी जलइले पर जिया हो करेजा कहकर चिल्ला सकता हूं, मुंह में अंगूठा और तर्जनी डालकर सीटी बजा सकता हूं। गोविंदा से लेकर अक्षय कुमार की फिल्में देखकर मगन हो सकता हूं। धर्मेद्र से लेकर अमिताभ और शाहरुख पर लट्टू हूं। माधुरी से लेकर शिल्पा शेट्टी पर फिदा हूं। लोकसभी टीवी से लेकर दूरदर्शन का कृषि-दर्शन तक देख सकता हूं, बाकी सीरियलों की तो बात ही क्या। जिस फिल्म को देखकर पसंद कर लूं, हिट हो जाती है और जिसे देखकर बोर हो जाऊं, समझिए उसका फ्लॉप होना तय है। फिर भी रामू अपनी आग मुझसे नहीं, प्रेस और समीक्षकों से पास करवाते हैं। इसीलिए कि मैं आम और वो लोग खास हैं।
क्या करूं आम आदमी हूं। दूसरे का दुख देखा नहीं जाता। गवने में अपनी बीवी की विदाई के वक्त उसको रोता देख मैं भी रो पड़ा था। लोकल ट्रेन में हर भिखारी को जेब में पड़े दस-बीस रुपयों में से भी एक-दो का सिक्का दे देता हूं क्योंकि लगता है कि उसके भी तो पेट में दो दाना जाना चाहिए। मेरा क्या है? मैं तो अच्छा-खासा हूं। भगवान ने सही-सलामत दो हाथ और पैर दे रखे हैं। फिर दिलवाला हूं, दिमागदार हूं। ऐसा कोई मूरख थोड़े ही हूं। सोचता ही नहीं कि भिखारियों, अपाहिजों, दीन-दुखियों और बेसहारा लोगों को सहारा देने का काम पब्लिक से टैक्स लेनेवाली सरकार का है।
आम आदमी हूं। इसीलिए किसी के भी अंदर तक पैठ सकता हूं। उसका भाव, उसकी भावना समझ सकता हूं। अटक से लेकर कटक तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हूं। छोटा होते हुए भी इतना विराट हूं, इसलिए खास हूं। अब तो कांग्रेस पार्टी के मैनिफेस्टो से लेकर टाइम मैगजीन के कवर पर आ चुका है, इसीलिए इतना खास हूं।
भूतों से डरता हूं। इतना बड़ा हो जाने के बाद भी अंधेरे में अकेले जाने से घबराता हूं। सपने में भी भूत-पिशाच, डाइन-चुड़ैल दिख जाए तो हनुमान चालीसा या गायत्री मंत्री का जाप करने लगता हूं। आज में जीता हूं, आनेवाले कल से डरता हूं, बीते हुए कल को याद करता हूं। वैसे तो सभी पर यकीन करता हूं, लेकिन कहीं कोई ऊंच-नीच न हो जाए, कोई ठग न ले, इस बात से हमेशा भयभीत रहता हूं। मैं नहीं जानता ऐसा क्यों है। लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि अंग्रेजों ने दो सौ सालों तक आम हिंदुस्तानियों को दबाकर रखा और हमारे बाप-दादा खास तो थे नहीं। वो भी डरते थे तो मैं भी दब्बू हूं। ऐसा होना तो लाज़िमी था।
ओमकारा में बिपाशा के बीड़ी जलइले पर जिया हो करेजा कहकर चिल्ला सकता हूं, मुंह में अंगूठा और तर्जनी डालकर सीटी बजा सकता हूं। गोविंदा से लेकर अक्षय कुमार की फिल्में देखकर मगन हो सकता हूं। धर्मेद्र से लेकर अमिताभ और शाहरुख पर लट्टू हूं। माधुरी से लेकर शिल्पा शेट्टी पर फिदा हूं। लोकसभी टीवी से लेकर दूरदर्शन का कृषि-दर्शन तक देख सकता हूं, बाकी सीरियलों की तो बात ही क्या। जिस फिल्म को देखकर पसंद कर लूं, हिट हो जाती है और जिसे देखकर बोर हो जाऊं, समझिए उसका फ्लॉप होना तय है। फिर भी रामू अपनी आग मुझसे नहीं, प्रेस और समीक्षकों से पास करवाते हैं। इसीलिए कि मैं आम और वो लोग खास हैं।
क्या करूं आम आदमी हूं। दूसरे का दुख देखा नहीं जाता। गवने में अपनी बीवी की विदाई के वक्त उसको रोता देख मैं भी रो पड़ा था। लोकल ट्रेन में हर भिखारी को जेब में पड़े दस-बीस रुपयों में से भी एक-दो का सिक्का दे देता हूं क्योंकि लगता है कि उसके भी तो पेट में दो दाना जाना चाहिए। मेरा क्या है? मैं तो अच्छा-खासा हूं। भगवान ने सही-सलामत दो हाथ और पैर दे रखे हैं। फिर दिलवाला हूं, दिमागदार हूं। ऐसा कोई मूरख थोड़े ही हूं। सोचता ही नहीं कि भिखारियों, अपाहिजों, दीन-दुखियों और बेसहारा लोगों को सहारा देने का काम पब्लिक से टैक्स लेनेवाली सरकार का है।
आम आदमी हूं। इसीलिए किसी के भी अंदर तक पैठ सकता हूं। उसका भाव, उसकी भावना समझ सकता हूं। अटक से लेकर कटक तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हूं। छोटा होते हुए भी इतना विराट हूं, इसलिए खास हूं। अब तो कांग्रेस पार्टी के मैनिफेस्टो से लेकर टाइम मैगजीन के कवर पर आ चुका है, इसीलिए इतना खास हूं।
Comments
नाम आसमान पर लिख देंगे कसम से
गिराएंगे मिलकर बिजलियाँ
लिख लेख कविता कहानियाँ
हिन्दी छा जाए ऐसे
दुनियावाले दबालें दाँतो तले उगलियाँ ।
NishikantWorld
दिल की कलम से नाम आसमान पर
लिख देंगे कसम से