
लेकिन अच्छा शो कैसे पेश किया जाए? इसके लिए ज़रूरी होता है जो इसे प्रोड्यूस कर रहे हैं उन्हें काम करने की सृजनात्मक आज़ादी दी जाए। असुरक्षा के भाव या दंभ से घिरा कोई संपादक इसकी अनुमति नहीं दे सकता। लेकिन जो नेतृत्व लगातार अपने ऑरबिट की सीमाएं तोड़कर नए ऑरबिट में प्रवेश करता रहता है, उसे ऐसा करने में कोई हिचक नहीं होती। हिंदी न्यूज़ चैनलों में उदय शंकर ने नेतृत्व की ये क्षमता साबित कर दी है। जब आजतक को 24 घंटे का चैनल बनाया जा रहा था तो बड़े-बड़े दिग्गज कह रहे थे कि डेडलाइन पर चैनल को लांच करना संभव नहीं है। उस वक्त उदय शंकर ने ड्राइव लेकर डेडलाइन मीट करने की पहल की। और, ठीक नियत समय पर चैनल ऑन-एयर हो गया।
ये किसी की प्रशस्ति या चमचागीरी नहीं है क्योंकि न तो मैं उदय शंकर को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं और न ही उनसे मुझे कुछ पाने की गरज है। इस शख्स में अगर नेतृत्व की काबिलियत न होती तो मैंनेजमेंट का कोई कोर्स किये बिना महज पत्रकारिता और तथाकथित दादागिरी के दम पर उसे आज स्टार न्यूज़ के सीईओ से उठाकर सीधे स्टार इंडिया का सीओओ नहीं बना दिया जाता। आखिर वॉलस्ट्रीट जनरल को टेकओवर करने वाला मीडिया सम्राट रूपर्ट मरडोक इतना भोला नहीं हो सकता।
काम को बेहतर बनाने के लिए जिम्मेदारियों का विक्रेंद्रीकरण भी जरूरी है। इस समय कुछ चैनल्स ने अपने स्टाफ में वर्टिकल्स की व्यवस्था शुरू की है। काम की एक हायरार्की उन्होंने बनाई है तो प्रोडक्ट भी क्वालिटी वाला होता है। रही बात नाग-नागिन के प्रेम और औघड़, भूत-पिशाच दिखाने की बात तो इसे चैनल मालिकों को सेल्फ रेगुलेशन के ज़रिए रोकना चाहिए। मीडिया में इस या उस ब

आखिरी बात, जिस तरह किसी पहिये का आकार उसकी दर्जनों अरों (स्पोक्स) पर टिका होता है, उसी तरह हर इंसान विभिन्न अरों पर टिका होता है, जो उसके स्वास्थ्य से लेकर आध्यामिक, पारिवारिक और सामाजिक स्थितियों को अभिव्यक्त करते हैं। अगर किसी संपादक को अपने सहयोगी पत्रकारों से सर्वश्रेष्ठ योगदान चाहिए तो उसे उनकी सभी अरों का ध्यान रखना होगा। इसके लिए अखबारों या चैनलों के संपादकीय विभाग में ही एक सीनियर पदाधिकारी को एचआर की भी ज़िम्मेदारी निभानी होगी। पत्रकारिता में ऐसा नहीं चल सकता कि एचआर विभाग किसी दूसरे फ्लोर पर बैठकर महज़ सैलरी स्लिप और मेडिकल इंश्योरेंस के कार्ड बांटने जैसे यांत्रिक काम करता रहे।...समाप्त
8 comments:
कोई तो सांप होगा जो कभी नीचे लाएगा. बस किस्मत (पब्लिक पसंद) को नहीं भाएगा. आपने सत्य कहा .
इस ब्लाग पर उपरोक्त तरीका अच्छा नहीं लगा.
ब्लॉग में लिखनेवाले और पढ़नेवाले अंतरंग दोस्त के माफिक होते हैं। मुझे अपने इन दोस्तों पर इतना भरोसा था कि लगता था वो जो भी टिप्पणी करेंगे, छपने दो, अपने हैं कितना बुरा लिखेंगे। लेकिन किसी एनॉनिमस सज्जन ने भयानक टिप्पणियां लिखकर मेरे इस भरोसे को चकनाचूर कर दिया। मजे की बात ये है कि ये सज्जन या तो एनडीटीवी में काम करते हैं या उससे जुड़े पत्रकारों को अच्छी तरह जानते हैं। ऐसे लोगों का सभ्य समाज से बहिष्कार ज़रूरी है। इसलिए फिलहाल मैं अपने ब्लॉग पर टिप्पणियों में मोडरेशन का ताला लगा रहा हूं। उम्मीद है भले लोग इसे अन्यथा नहीं लेंगे।
गलत टिप्पणी करने वाले वायरस की तरह होते हैं, स्पाम की तरह. इसलिए मोडरेशन बहुत ज़रुरी है.
yeh baat zaroor chapen aur yeh andar kee khabar hai anil bhai ke Dibang ne desk par baithe apne chamchon se kaha hai ke do mahine ruk jao ....main NDTV india saaf kar doonga ...ve jald hee desk par baithe logon ko offer karne waale hain jobs jissse NDTV INDIA KEE REED HIL JAYEGE ...YEH BAAT SACH HAI ....AAP APNE SUTRON SE PATA KAR SAKTE HAIN ..BHAISAHAB
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