Tuesday 21 August, 2007

पवार साहेब तो पू-रे युधिष्ठिर निकले!

शरद पवार देश के कृषि मंत्री हैं। देश की कृषि और किसानों को आगे ले जाने का बोझ उनके कंधों पर है। उनके पास भले ही घोषित तौर पर 3.6 करोड़ की संपत्ति हो, लेकिन उनकी बेटी सुप्रिया सुले के परिवार के पास 41.5 करोड़ की संपत्ति है। पवार साहब की पूरी जायदाद का ब्यौरा खोजने में तो वक्त लगेगा। लेकिन महाराष्ट्र की को-ऑपरेटिव लॉबी के वो पुरोधा हैं और अब भी किसान नहीं तो बड़े फार्मर ज़रूर हैं। इसलिए खेती-किसानी का उनका निजी अनुभव है और इसीलिए इस मुद्दे पर वो जो भी बोलते हैं, उसे सच और केवल सच माना जाता है।
उनका लोकसभा क्षेत्र बारामती है जो महाराष्ट्र के पुणे ज़िले में पड़ता है। वहां के लोग इन्हें साहेब कहते हैं। पिछले हफ्ते पवार साहेब पुणे आए तो सार्वजनिक तौर पर उन्होंने घोषित कर दिया कि अब खेती में कुछ नहीं रखा। यह घाटे का धंधा बन गई है और किसानों को जोतना-बोना जोड़कर दूसरे कामों में हाथ आजमाना चाहिए। एक किसान कृषि मंत्री की ईमानदारी तो देखिए कि उन्होंने यह तक नहीं सोचा कि देश की जिस कृषि को आगे बढ़ाने का बोझ उनके कंधों पर है, उसी कृषि के बारे में उसके मुंह से निकली ऐसी बात उनकी साख पर कितना बट्टा लगाएगी। खैर, विपक्षी कयास लगाने लगे कि पवार साहेब के अश्वत्थामा हतो कहने का अगला हिस्सा क्या है। मगर पवार साहेब उस वक्त चुप रहे।
दिल्ली पहुंचे तो इस वाक्य का अधूरा हिस्सा, नरोवा कुंजरोवा उन्होंने कह डाला। बोले, देश के 82 फीसदी किसानों के पास 2.5 एकड़ से कम ज़मीन है। किसानों का गुजारा इत्ती-सी ज़मीन से नहीं हो सकता और उनके लिए रोज़गार के वैकल्पिक साधनों की ज़रूरत है। लेकिन ये हवा (वैक्यूम) में नहीं हो सकता। ज़मीन का अधिग्रहण तो करना ही पड़ेगा। यानी, पवार साहेब, किसानों (द्रोणाचार्य) को मारने के लिए आधे सच का आधा झूठ आपकी जुबान से निकल ही गया।
शरद पवार ने ये बात मंत्रियों के उस समूह की अध्यक्षता करते हुए कही जो स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (सेज़) के लिए भूमि के अधिग्रहण और किसानों के पुनर्वास की नीति तय करने के वास्ते बनाया गया है। असल में तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने शिकायत की थी कि ज्यादा से ज्यादा उपजाऊ ज़मीन कृषि से इतर कामों में लगाई जा रही है। इसी के जवाब में पवार साहेब ने साफ किया कि खेती करने में रखा ही क्या है। विपक्षियों के कयास सही साबित हो गए। शरद पवार खेती के घाटे का सौदा बन जाने के सच का डंका इसलिए पीट रहे हैं ताकि किसान घबरा कर खुद ही राजी-खुशी अपनी ज़मीन उद्योगपतियों को सेज़ बनाने के लिए देने को तैयार हो जाएं।
द्रोणाचार्य वध के लिए महाभारत में सत्यवादी युधिष्ठिर ने ऐसा ही आंशिक सच बोला था। शरद पवार भी आज यही कर रहे हैं। अंतर ये है कि कृष्ण ने धर्म का नाश करनेवाले कौरवों को पराजित करने के लिए युधिष्ठिर से झूठ बुलवाया था, जबकि आज कृषि मंत्री शरद पवार 82 फीसदी किसानों की बोलती बंद कराने के लिए अपने किसान होने की विश्वसीनता का फायदा उठा रहे हैं।

1 comment:

सागर नाहर said...

इससे ज्यादा की उम्मीद थी भी नहीं कृषि मंत्री से, दरअसल इन दिनों वे तनाव में है इन्डियन क्रिकेट लीग वाले जिस तरह खिलाड़ोयों का अधिग्रहण ( :)) कर रहे हैं। मंत्री महोदय का दिमाग काम नहीं कर रहा।

वैसे आपके चिठ्ठे के पार्श्व में बजता संगीत बहुत ही मजेदार है।