आस्था बची रहे, ताकि सजी रहे वोट की दुकान
आडवाणी ने प्रधानमंत्री से कहा। पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने चेतावनी दे डाली। विजय कुमार मल्होत्रा विचलित हो गए। प्रवीण तोगड़िया ने मीडिया से ललकार कर कहा। बीजेपी से लेकर पूरे संघ परिवार ने कहा – रामसेतु करोड़ों हिंदुओं की आस्था से जुड़ा मसला है। इसका फैसला विज्ञान नहीं कर सकता। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रामसेतु पर जो हलफनामा दायर किया है, उसे वह वापस ले ले, नहीं तो उसे इसका खामियाजा चुनावों में भुगतना पड़ेगा, पहले गुजरात में और फिर अगले आम चुनावों में।
जवाब में कांग्रेस महासचिव दिग्विजिय सिंह बोले – ये हलफनामा तो अटल जी की एनडीए सरकार ने ही तैयार किया था। लेकिन कमाल की बात है कि झगड़ा एक दिन में निपट गया। जिस कांग्रेस सरकार ने 1989 में राम जन्मभूमि का ताला खुलवाया था, उसी की अगुआई में बनी यूपीए सरकार ने ऐलान कर दिया कि वह रामसेतु पर दायर हलफनामा वापस ले लेगी। खुद कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने कह दिया है कि सरकार अब सेतु समुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट पर सुप्रीम कोर्ट में पूरक हलफनामा दायर करेगी। वाकई भारतीय राजनीति की महिमा अनंत है, यहां वोटों की राजनीति ही निर्णायक है।
कल सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से दायर हलफनामे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने कहा था, “वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस यकीनन प्राचीन भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण अंग हैं, लेकिन इन्हें ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं माना जा सकता जिनके आधार पर सिद्ध किया जा सके कि इनमें वर्णित चरित्र और घटनाएं यथार्थ हैं।” हलफनामे में यह भी कहा गया था कि जिस एडम्स ब्रिज को रामसेतु कहा जा रहा है, वह असल में समुद्री शैवाल और रेत व चट्टानों से बनी प्राकृतिक संरचना है और यह किसी भी तरीके से ऐतिहासिक या पुरातात्विक महत्व का नहीं है।
बीजेपी और संघ परिवार ने एक बार नासा के हवाले से रामसेतु को मानव-निर्मित बताने की कोशिश की थी। लेकिन एक तो नासा ने ही साफ कर दिया कि उसने अंतरिक्ष यान से एडम्स ब्रिज की तस्वीरें ज़रूर ली हैं, लेकिन वह उसकी किसी भी तरह की व्याख्या के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। दूसरे संघ परिवार ने इसरो और प्रधानमंत्री कार्यालय से जुडे जिस ‘वैज्ञानिक’ पुनीश तनेजा के दम पर रामसेतु को राम की वानर सेना द्वारा निर्मित पुल साबित करने की कोशिश की थी, वह खुद ही पूरा फ्रॉड निकला। किसी तरह संघ ने एक फ्रॉड को शरण देने की ज़लालत से पिंड छुड़ाया। लेकिन उसे यह बात सालती रही कि लोगों की आस्था से जुड़े एक मुद्दे को वह वैज्ञानिक आधार नहीं दे सका। यही वजह है कि अब संघ और बीजेपी के नेताओं में हिम्मत नहीं है कि वे रामसेतु को विज्ञानसम्मत बता सकें। इसीलिए वे इसे करोड़ों हिंदुओं की आस्था का मसला कहने लगे हैं।
इसी आस्था का हवाला देकर संघ परिवार करीब 2600 करोड़ रुपए की लागत से बननेवाली सेतु-समुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट का विरोध कर रहा है। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर देश के पूर्वी और पश्चिमी समुद्री तट के बीच की दूरी 167 किलोमीटर रह जाएगी, जबकि अभी जहाज 780 किलोमीटर का सफर करीब 30 घंटे में तय करते हैं और उन्हें पूरे श्रीलंका का चक्कर काटना पड़ता है।
दिलचस्प बात ये है कि इस प्रोजेक्ट का विरोध वैज्ञानिक समुदाय और पर्यावरणविद भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर यह रामसेतु/एडम्स ब्रिज न रहा होता तो 26 दिसंबर 2004 को आई सुनामी से केरल का पूरा समुद्री तट तबाह हो गया होता। संघ परिवार और बीजेपी का मकसद अगर सचमुच इस देश और इसके बाशिंदों का हित करना होता तो वह वैज्ञानिकों के साथ खड़ा होकर रामसेतु को तोड़े जाने का विरोध करते। लेकिन संघ के राजनीतिक नक़ाब बीजेपी को न तो राम जन्मभूमि से कोई मतलब था और न ही रामसेतु से। वह तो बस करोड़ों हिंदुओं की आस्था पर वोटों की रोटियां सेकना चाहती है।
वाकई जिसे हम भगवान कहते हैं, आस्था कहते हैं, वही इंसान को सच्चाई तक पहुंचने में सबसे बड़ी बाधा है। लेकिन विडंबना यह है कि इसकी तोहमत माया बेचारी पर मढ़ दी जाती है।
जवाब में कांग्रेस महासचिव दिग्विजिय सिंह बोले – ये हलफनामा तो अटल जी की एनडीए सरकार ने ही तैयार किया था। लेकिन कमाल की बात है कि झगड़ा एक दिन में निपट गया। जिस कांग्रेस सरकार ने 1989 में राम जन्मभूमि का ताला खुलवाया था, उसी की अगुआई में बनी यूपीए सरकार ने ऐलान कर दिया कि वह रामसेतु पर दायर हलफनामा वापस ले लेगी। खुद कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने कह दिया है कि सरकार अब सेतु समुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट पर सुप्रीम कोर्ट में पूरक हलफनामा दायर करेगी। वाकई भारतीय राजनीति की महिमा अनंत है, यहां वोटों की राजनीति ही निर्णायक है।
कल सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से दायर हलफनामे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने कहा था, “वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस यकीनन प्राचीन भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण अंग हैं, लेकिन इन्हें ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं माना जा सकता जिनके आधार पर सिद्ध किया जा सके कि इनमें वर्णित चरित्र और घटनाएं यथार्थ हैं।” हलफनामे में यह भी कहा गया था कि जिस एडम्स ब्रिज को रामसेतु कहा जा रहा है, वह असल में समुद्री शैवाल और रेत व चट्टानों से बनी प्राकृतिक संरचना है और यह किसी भी तरीके से ऐतिहासिक या पुरातात्विक महत्व का नहीं है।
बीजेपी और संघ परिवार ने एक बार नासा के हवाले से रामसेतु को मानव-निर्मित बताने की कोशिश की थी। लेकिन एक तो नासा ने ही साफ कर दिया कि उसने अंतरिक्ष यान से एडम्स ब्रिज की तस्वीरें ज़रूर ली हैं, लेकिन वह उसकी किसी भी तरह की व्याख्या के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। दूसरे संघ परिवार ने इसरो और प्रधानमंत्री कार्यालय से जुडे जिस ‘वैज्ञानिक’ पुनीश तनेजा के दम पर रामसेतु को राम की वानर सेना द्वारा निर्मित पुल साबित करने की कोशिश की थी, वह खुद ही पूरा फ्रॉड निकला। किसी तरह संघ ने एक फ्रॉड को शरण देने की ज़लालत से पिंड छुड़ाया। लेकिन उसे यह बात सालती रही कि लोगों की आस्था से जुड़े एक मुद्दे को वह वैज्ञानिक आधार नहीं दे सका। यही वजह है कि अब संघ और बीजेपी के नेताओं में हिम्मत नहीं है कि वे रामसेतु को विज्ञानसम्मत बता सकें। इसीलिए वे इसे करोड़ों हिंदुओं की आस्था का मसला कहने लगे हैं।
इसी आस्था का हवाला देकर संघ परिवार करीब 2600 करोड़ रुपए की लागत से बननेवाली सेतु-समुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट का विरोध कर रहा है। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर देश के पूर्वी और पश्चिमी समुद्री तट के बीच की दूरी 167 किलोमीटर रह जाएगी, जबकि अभी जहाज 780 किलोमीटर का सफर करीब 30 घंटे में तय करते हैं और उन्हें पूरे श्रीलंका का चक्कर काटना पड़ता है।
दिलचस्प बात ये है कि इस प्रोजेक्ट का विरोध वैज्ञानिक समुदाय और पर्यावरणविद भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर यह रामसेतु/एडम्स ब्रिज न रहा होता तो 26 दिसंबर 2004 को आई सुनामी से केरल का पूरा समुद्री तट तबाह हो गया होता। संघ परिवार और बीजेपी का मकसद अगर सचमुच इस देश और इसके बाशिंदों का हित करना होता तो वह वैज्ञानिकों के साथ खड़ा होकर रामसेतु को तोड़े जाने का विरोध करते। लेकिन संघ के राजनीतिक नक़ाब बीजेपी को न तो राम जन्मभूमि से कोई मतलब था और न ही रामसेतु से। वह तो बस करोड़ों हिंदुओं की आस्था पर वोटों की रोटियां सेकना चाहती है।
वाकई जिसे हम भगवान कहते हैं, आस्था कहते हैं, वही इंसान को सच्चाई तक पहुंचने में सबसे बड़ी बाधा है। लेकिन विडंबना यह है कि इसकी तोहमत माया बेचारी पर मढ़ दी जाती है।
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