आज आ रही है पहले गुरु की याद
वाकई मंगज जी पूरा मगज खा जाते थे। अपने ज्ञान से आक्रांत करते थे। लेकिन जीवन, समाज, भाषा-साहित्य और राजनीति से मेरी जो भी जान-पहचान है, उसके लिए मैं मंगज जी का ऋणी हूं। फिजिक्स, मैथ्स, स्टैट्स में बीएससी करना मेरे कोई काम नहीं आया, मैथ्स में एमएससी करना भी मेरे कोई काम नहीं आया। आज मैं जो कुछ भी थोड़ा-बहुत कमाकर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा हूं, उसके लिए भी मैं मंगज जी का ऋणी हूं। हालांकि मेरे मां-बाप मानते हैं कि मेरे जैसे आदर्शवादी पढ़ाकू लड़के की ज़िंदगी बिगाड़ने का ज़िम्मेदार सिर्फ और सिर्फ एक शख्स है और वो है मंगज। मंगल जी का असली नाम वो आज तक नहीं जान पाए हैं। मऊनाथ भंजन में मंगज जी के गांव के नजदीक कोई मंगई नाम की नदी बहती थी, जिसके आधार पर उन्होंने अपना ये उपनाम रखा था।
स्कूल, कॉलेज या विश्वविद्यालय में वे मेरे औपचारिक शिक्षक नहीं थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ए एन झा हॉस्टल में मेरे चार साल सीनियर थे। साइंस के विद्यार्थी थे। लगातार टॉपर लिस्ट में शामिल रहते थे। एमएससी मैथ्स में पहले नंबर पर विभागाध्यक्ष टी पति के बेटे थे और दूसरा नंबर मंगज जी का था। हिंदी-अंग्रेजी साहित्य में उनकी गहरी दिलचस्पी थी। उनका दायरा कितना विस्तृत था, इसका अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि मैथ्स में एमएससी करने के बाद उन्होंने अंग्रेज़ी में एमए किया और वहां भी उन्होंने सेकंड पोजीशन हासिल की।
हां, मंगज जी पुलिस के पचड़े से काफी डरते थे। मुझे याद है जब हम लोग नुक्कड़ नाटक करके क्रांति की बातें करते थे तो अभी काफी बड़े ओहदे पर पहुंच चुके पुलिस अधिकारी और उस समय सीआईडी से जुड़े विभूति नारायण राय मंगज जी कमरे में आए। हम सभी लोगों को बुलाया और बताया कि हमारे नाम नक्सली के रूप में दर्ज हो गए हैं, आईबी के लोग हमारी हर हरकत पर निगाह रखते हैं। इसके बाद मंगज जी घबरा गए और कंप्टीशन की तैयारी में जुट गए। पीसीएस दिया, वह भी शायद हिंदी और अंग्रेजी विषय लेकर...और पहले ही अटेम्प्ट में पूरा उत्तर प्रदेश टॉप कर गए। फिर आईएएस क्लियर किया और इनकम टैक्स अफसर बन गए।
उनसे मेरी पहली मुलाकात हुई तो मैं नैनीताल के एक रेजिडेंसियल पब्लिक स्कूल का प्रोडक्ट और टॉपर होने के नाते काफी गुरूर से भरा हुआ था। उन्होंने पूछा कि मेरे स्कूल की क्या खासियत है। मैंने कहा – वहां छात्रों को ऑल-राउंडर बनाते हैं। बस्स, इसी पर भड़क गए मंगज जी। बोले – अरे मास्टर के सपूत, आल राउंडर होना तुम्हें क्या दिला देगा। कल जब बड़े होगे, नौकरी के बाज़ार में उतरोगे तो वे चंद हुनर, वो ज्ञान काम आएगा, जिसमें तुम्हारी दिलचस्पी होगी, जिसमें तुम्हें महारत हासिल होगी। ज़माना स्पेशलाइजेशन का है।
फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि गीता पढ़ी है, कामायनी पढ़ी है। संयोग से मुझे दोनों ही किताबों की शुरुआती लाइनें याद थीं। फिर क्या था। मंगज जी को मेरे अंदर कोई स्पार्क नज़र आया और उन्होंने मुझे अपना चेला बना लिया। इसके बाद तो अगले कुछ ही दिनों में उन्होंने साहित्य, हिंदी भाषा का इतिहास, भक्ति आंदोलन, समकालीन राजनीति, भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन और न जाने कहां-कहां की क्रांतियों का आंखों देखा हाल मुझे सुना डाला। चार-पांच साल तक ये सिलसिला चला। उनके प्रभाव में आकर मैंने आईएएस बनने का इरादा छोड़ दिया। हालांकि आईएएस बनने के बाद मंगज जी ने हॉस्टल में आकर हम लोगों (हॉस्टल के दो लोग और थे उनकी चेला मंडली में) को समझाया कि वो हमारी सोच को बदलने के गुनहगार हैं, इसलिए चाहते हैं कि हम सब कुछ भूलकर अब अपना करियर बनाएं। मैंने और मेरे एक सहपाठी ने कहा – मंगज जी, आपके अपराध बोध का कोई मतलब नहीं है क्योंकि हम जहां हैं, अब अपनी सोच और पृष्ठभूमि के चलते हैं।
मंगज जी चले गए। आजकल न जाने कहां हैं। इनकम टैक्स विभाग में होने के बावजूद भ्रष्टाचार नहीं कर सके तो अफसरों के ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में डायरेक्टर हो गए थे। पता चला है कि सीमित तनख्वाह में किसी शहर में बाबुओं-सी जिंदगी जी रहे हैं। न जाने किस्मत भी क्यों इस ईमानदार सच्चे इंसान को परेशान करने से बाज नहीं आ रही है। दो जवान बेटे हैं और दोनों ही मेंटली और फिजिकली रिटार्डेड हैं। अपने जिस छोटे भाई को मंगज जी बड़े प्यार से रखते थे, उसने ही उनके साथ छल किया। आज सोचता हूं, अच्छे लोगों के साथ बुरा ही क्यों होता है, अच्छा-अच्छा क्यों नहीं होता?
स्कूल, कॉलेज या विश्वविद्यालय में वे मेरे औपचारिक शिक्षक नहीं थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ए एन झा हॉस्टल में मेरे चार साल सीनियर थे। साइंस के विद्यार्थी थे। लगातार टॉपर लिस्ट में शामिल रहते थे। एमएससी मैथ्स में पहले नंबर पर विभागाध्यक्ष टी पति के बेटे थे और दूसरा नंबर मंगज जी का था। हिंदी-अंग्रेजी साहित्य में उनकी गहरी दिलचस्पी थी। उनका दायरा कितना विस्तृत था, इसका अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि मैथ्स में एमएससी करने के बाद उन्होंने अंग्रेज़ी में एमए किया और वहां भी उन्होंने सेकंड पोजीशन हासिल की।
हां, मंगज जी पुलिस के पचड़े से काफी डरते थे। मुझे याद है जब हम लोग नुक्कड़ नाटक करके क्रांति की बातें करते थे तो अभी काफी बड़े ओहदे पर पहुंच चुके पुलिस अधिकारी और उस समय सीआईडी से जुड़े विभूति नारायण राय मंगज जी कमरे में आए। हम सभी लोगों को बुलाया और बताया कि हमारे नाम नक्सली के रूप में दर्ज हो गए हैं, आईबी के लोग हमारी हर हरकत पर निगाह रखते हैं। इसके बाद मंगज जी घबरा गए और कंप्टीशन की तैयारी में जुट गए। पीसीएस दिया, वह भी शायद हिंदी और अंग्रेजी विषय लेकर...और पहले ही अटेम्प्ट में पूरा उत्तर प्रदेश टॉप कर गए। फिर आईएएस क्लियर किया और इनकम टैक्स अफसर बन गए।
उनसे मेरी पहली मुलाकात हुई तो मैं नैनीताल के एक रेजिडेंसियल पब्लिक स्कूल का प्रोडक्ट और टॉपर होने के नाते काफी गुरूर से भरा हुआ था। उन्होंने पूछा कि मेरे स्कूल की क्या खासियत है। मैंने कहा – वहां छात्रों को ऑल-राउंडर बनाते हैं। बस्स, इसी पर भड़क गए मंगज जी। बोले – अरे मास्टर के सपूत, आल राउंडर होना तुम्हें क्या दिला देगा। कल जब बड़े होगे, नौकरी के बाज़ार में उतरोगे तो वे चंद हुनर, वो ज्ञान काम आएगा, जिसमें तुम्हारी दिलचस्पी होगी, जिसमें तुम्हें महारत हासिल होगी। ज़माना स्पेशलाइजेशन का है।
फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि गीता पढ़ी है, कामायनी पढ़ी है। संयोग से मुझे दोनों ही किताबों की शुरुआती लाइनें याद थीं। फिर क्या था। मंगज जी को मेरे अंदर कोई स्पार्क नज़र आया और उन्होंने मुझे अपना चेला बना लिया। इसके बाद तो अगले कुछ ही दिनों में उन्होंने साहित्य, हिंदी भाषा का इतिहास, भक्ति आंदोलन, समकालीन राजनीति, भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन और न जाने कहां-कहां की क्रांतियों का आंखों देखा हाल मुझे सुना डाला। चार-पांच साल तक ये सिलसिला चला। उनके प्रभाव में आकर मैंने आईएएस बनने का इरादा छोड़ दिया। हालांकि आईएएस बनने के बाद मंगज जी ने हॉस्टल में आकर हम लोगों (हॉस्टल के दो लोग और थे उनकी चेला मंडली में) को समझाया कि वो हमारी सोच को बदलने के गुनहगार हैं, इसलिए चाहते हैं कि हम सब कुछ भूलकर अब अपना करियर बनाएं। मैंने और मेरे एक सहपाठी ने कहा – मंगज जी, आपके अपराध बोध का कोई मतलब नहीं है क्योंकि हम जहां हैं, अब अपनी सोच और पृष्ठभूमि के चलते हैं।
मंगज जी चले गए। आजकल न जाने कहां हैं। इनकम टैक्स विभाग में होने के बावजूद भ्रष्टाचार नहीं कर सके तो अफसरों के ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में डायरेक्टर हो गए थे। पता चला है कि सीमित तनख्वाह में किसी शहर में बाबुओं-सी जिंदगी जी रहे हैं। न जाने किस्मत भी क्यों इस ईमानदार सच्चे इंसान को परेशान करने से बाज नहीं आ रही है। दो जवान बेटे हैं और दोनों ही मेंटली और फिजिकली रिटार्डेड हैं। अपने जिस छोटे भाई को मंगज जी बड़े प्यार से रखते थे, उसने ही उनके साथ छल किया। आज सोचता हूं, अच्छे लोगों के साथ बुरा ही क्यों होता है, अच्छा-अच्छा क्यों नहीं होता?
Comments
आपके गुरुवर की स्थिति मन को कचोट गई।
मुझे अपनी लिखी एक कहानी याद आ गई-'आम नहीं आये':
http://udantashtari.blogspot.com/2007/07/blog-post_25.html
Guru jee se mila kyon nahi jata?unake suputra ko supatra banaane me Shishya ka kam sam hi sahi yogdaan kyon nahi hota ? Aahaa choo-choo-choo,Oh ya Fir ek pal ke
liye maoun rah kar ham kyon apane kartavya ka etishri samajh lete hai?
Aaj Desh ki Deh me Aatma ko Sancharit karne wale har Guru ko kasht hai.Upchaar shishya ke haath
hai.
Saarthak post ke liye Thanks a lot. bolane ka man kar raha hai.Jaari rahe ! kaamana hai.