भगत सिंह जीना नहीं चाहते थे : महात्मा गांधी
एक अच्छी खबर ये है कि केंद्र सरकार ने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भगत सिंह पीठ बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, हालांकि अभी तक इसके लिए फंड जारी नहीं किया गया है। जेएनयू में भारतीय भाषा विभाग के प्रमुख प्रो. चमनलाल के मुताबिक भगत सिंह पीठ 1857 से शुरू हुई बगावत की प्रतीक होगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि 28 सितंबर से पहले पीठ के लिए फंड मिल जाएगा क्योंकि उसी दिन से भगत सिंह का जन्म शताब्दी समारोह आयोजित किया जाने वाला है।
एक दिलचस्प बात चमनलाल ने बताई कि दो लाख से ज्यादा लोगों ने भगत सिंह की फांसी की सज़ा के खिलाफ तत्कालीन वाइसराय लार्ड माउंटबेटन को लिखित अर्जी दी थी। पूरे देश में जगह-जगह लोगों ने उनकी फांसी की सजा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। कांग्रेसी नेताओं का एक तबका भी भगत सिंह को फांसी दिए जाने के खिलाफ था। लेकिन इसमें महात्मा गांधी शामिल नहीं थे। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी पर चढ़ाए जाने के छह दिन बाद गांधी जी ने यंग इंडिया में एक लेख लिखा था। खुद ही देख लीजिए उसके कुछ चुनिंदा अंश...
एक दिलचस्प बात चमनलाल ने बताई कि दो लाख से ज्यादा लोगों ने भगत सिंह की फांसी की सज़ा के खिलाफ तत्कालीन वाइसराय लार्ड माउंटबेटन को लिखित अर्जी दी थी। पूरे देश में जगह-जगह लोगों ने उनकी फांसी की सजा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। कांग्रेसी नेताओं का एक तबका भी भगत सिंह को फांसी दिए जाने के खिलाफ था। लेकिन इसमें महात्मा गांधी शामिल नहीं थे। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी पर चढ़ाए जाने के छह दिन बाद गांधी जी ने यंग इंडिया में एक लेख लिखा था। खुद ही देख लीजिए उसके कुछ चुनिंदा अंश...
भगत सिंह जीना नहीं चाहते थे। उन्होंने माफी मांगने से इनकार कर दिया। यहां तक कि अपील भी दाखिल नहीं की।...उन्होंने असहायता के चलते और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हिंसा का सहारा लिया। भगत सिंह ने लिखा था, “मुझे युद्ध करते हुए गिरफ्तार किया गया है। मेरे लिए फांसी का फंदा कोई मायने नहीं रखता। मुझे तोप के मुंह में रखकर उड़ा दो।” इन नायकों ने मौत के डर को जीत लिया था। आइये हम उनकी बहादुरी को शत्-शत् प्रणाम करें। लेकिन हमें उनके काम की नकल नहीं करनी चाहिए।...हमें कभी भी उनकी गतिविधियों का प्रतिपालन नहीं करना चाहिए।शायद महात्मा गांधी के इन्हीं विचारों के चलते आज भी लोग मानते हैं कि अगर दो लाख लोगों और कुछ कांग्रेसी नेताओं की आवाज़ में गांधी जी ने अपनी आवाज़ मिला दी होती तो भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को असमय मौत के गाल में नहीं समाना पड़ता।
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