Saturday 15 September, 2007

चेला झोली भरके लाना, हो चेला...

संत कबीर का यह दुर्लभ पद पेश कर रहा हूं। मुझे यह न तो किताबों में दिखा और न ही इंटरनेट पर। मेरी पत्नी बताती हैं कि वे जब छोटी थीं तो उनकी मां इसे घर के झूले पर बैठे गा-गाकर सुनाती थी। उन्हीं की मां की डायरी में ये पद लिखा हुआ मिल गया तो मैंने सोचा क्यों न आप सभी से बांट लिया जाए। पद में कबीर की उलटबांसियों जैसी बातें कही गई हैं। मैं हर पद पर चौंक कर कहता रहा – अरे, ये कैसे संभव है। तो आप भी चौंकिए और चमत्कृत होइए। हां, इसमें कोई अशुद्धि हो तो ज़रूर बताइएगा।

गुरु ने मंगाई भिक्षा, चेला झोली भरके लाना
हो चेला झोली भरके लाना...

पहली भिक्षा आटा लाना, गांव बस्ती के बीच न जाना
नगर द्वार को छोडके चेला, दौरी भरके आना
हो चेला झोली भरके लाना...

दूसरी भिक्षा पानी लाना, नदी तलाब के पास न जाना
कुआं-वाव को छोड़के चेला, तुम्बा भरके लाना
हो चेला झोली भरके लाना...

तीसरी भिक्षा लकड़ी लाना, जंगल-झाड़ के पास न जाना
गीली-सूखी छोड़के चेला, भारी लेके आना
हो चेला झोली भरके लाना....

चौथी भिक्षा अग्नि लाना, लोह-चकमक के पास न जाना
धुनी-चिता को छोड़के चेला, धगधगती ले आना
हो चेला झोली भरके लाना...

कहत कबीर सुनो भई साधो
ये पद की जो भिक्षा लावे, वही चतुर सुजाना।
हो चेला झोली भरके लाना...
गुरु ने मंगाई भिक्षा, चेला झोली भरके लाना।।

8 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत साधुवाद इस नायाब और दुर्लभ पद को प्रस्तुत करने के लिये. मैने तो पहली बार ही पढ़ा इसे. आपका आभार.

Anonymous said...

कबीर का यह पद उनकी नायाब शैली में निश्चय ही एक दुर्लभ पद है . कई बार दुनिया को सीधी बात समझाने के लिए 'बरसे कम्बल भीजे पानी' या 'समुंदर लागी आग' जैसी उल्टी दिखने वाली बात -- उलटबांसी -- कहनी पड़ती है .

यह पद पहले भी पढा है . पता नहीं क्यों लग रहा है जैसे आपने कहीं-कहीं कबीर की सधुक्कड़ी भाषा की वर्तनी सुधार कर हिंदीकरण कर दिया है . उसकी कोई ज़रूरत नहीं होनी चाहिए . हज़ारी बाबू तो पहले ही कह गए गए हैं कि कबीर वाणी के 'डिक्टेटर' थे . उन्होंने भाषा से जो चाहा,जैसा चाहा कहलवा लिया . बन पड़ा तो सीधे-सीधे, नहीं तो दरेरा दे कर .

कागद की लेखी से दूर आंखिन की देखी के इस अपने ढंग के अनूठे उस्ताद -- कबीर -- को एडीटर-प्रूफ़रीडर की क्या दरकार !

Anonymous said...

प्रियंकर जी,
ये कुछ दिनों के लिए कम्प्युटर से दूर हैं सो मैं उपस्थित हूं उनकी धर्मपत्नी.
असल में यह हमारे पास जैसे था वैसे ही लिखा है! हमने कोई सुधार नहीं किया. आपको इसका टेढ़ा-मेढ़ापन याद आए/मिल जाए तो लिखिएगा.

Anonymous said...

jjjj

mn said...

thanks

Anonymous said...

pahli bhiksa anna ki lana, ganw basti ke beech na jana.
byahi, kwari ko chhod ke lana, je lawe to chela- jholi bhar ke lana re.
wohi cheej lana chela, guru ne mangayi.

Anonymous said...

pahli bhiksa anna ki lana, ganw nagar ke pas na jana.
byahi, kwanri chhodke lana, je lyave to chela jholi bharke lana re.
wohi cheej lana chela, guru ne
mangayi re.

yah sant kabirji dwara banaya
bhajan hai aor mera pasndida bhi.

Unknown said...

chela se guru kya mangva raha he wo konsi chij he