विज्ञापन में 10:10 ही क्यों बजाती हैं घड़ियां
विज्ञापन की घड़ियों में हमेशा 10 बजकर 10 मिनट ही क्यों हुए रहते हैं, ये सवाल मुझे इंटरमीडिएट से ही परेशान किए हुए हैं। उस समय फिजिक्स की फाइनल परीक्षा में बाहर से आए अध्यापक ने मुझे परेशान करने के लिए तीन सवाल पूछे थे। पहला तो यही घड़ी के 10:10 बजे वाला। दूसरा एवरेडी की बैटरी पर 9 के अंदर से बिल्ली क्यों जाती है। और तीसरा बिजली की वोल्टेज हमेशा 11 के मल्टीपल में ही क्यों होती है जैसे 110, 220, 440, 11000 वोल्ट। आखिरी सवाल का जवाब मैंने बता दिया। दूसरे सवाल पर धुप्पल मारा। लेकिन पहले सवाल का जवाब नहीं बता पाया।
आज सुबह जब मैंने अपनी पहली पोस्ट पब्लिश की तो संयोग से ठीक उस वक्त 10:10 बजे थे। तभी सालों पुराना ये सवाल मेरे दिमाग में फिर उठ गया। आपके पास इसका जवाब हो तो जरूर बताएं। बरसों की पाली फालतू उलझन सुलझ जाएगी।
Comments
10:10"20 का फन्डा इतना जबरदस्त है कि यदि घड़ी डिजिटल हो तब भी टाइम यही होगा.
The consensus
of opinion (confirmed by Timex) is that clock and watch hands in
advertisements are typically set at 10:10 so that the company's logo
will be well-displayed. In addition, this position of the hands
resembles a smile.
"Q: WHEN YOU SEE AN AD WITH A CLOCK IN IT THE HANDS ARE ALWAYS
POSITIONED AT 10:10?
A: WE CALLED TIMEX FOR YOUR ANSWER AND IT SAYS THE HANDS ON A CLOCK
ARE PLACED AT TEN-TEN BECAUSE IT'S A CREATIVE STANDARD INDUSTRY.
TIMEX SAYS THE HANDS ON TIMEPIECES ARE PLACED AT TEN-TEN SO THE
COMPANY LOGO ON THE FACE WILL BE FRAMED AND NOT BLOCKED BY THE HANDS.
TIMEX SAYS THE INDUSTRY STANDARD USED TO BE EIGHT-TWENTY BUT THAT
LOOKED TOO MUCH LIKE A FROWN AND CREATED AN UNHAPPY LOOK.
TIMEX SAYS IN ITS ADS, THE CLOCK HANDS ARE PLACED AT TEN-NINE AND
THIRTY SIX SECONDS, EXACTLY."
घुघूती बासूती
कहना ये चाह रहा हूं कि ये जो एक सवाल आपको इंटरमीडिएट से परेशान किए हुए था...इत्तेफ़ाकन इसका जवाब मुझे इंटरमीडिएट में ही पता चला गया था। काश... मुझसे आपका साबका पहले पड़ गया होता!
वैसे समील लाल जी ने आपके सामने के इस यक्ष प्रश्न का हल दे दिया है। वजहें वहीं हैं। पर इसके पीछे एक सिद्दांत है।
दरअसल एडवर्टाईजिंग में 'पेज मेकिंग' के लिए 'थ्योरी आॅफ आई मूवमेंट' का बड़ा महत्व है। इस थ्योरी के तहत ये माना गया है कि किसी भी फ्रेम (सतह या पेज भी) पर हमारी आँखें 'z' की तरह मूव करती है। यानि हमारी नज़रें पन्ने के बांयी तरफ से दायीं तरफ जाती हैं फिर बायीं तरफ तिरछी नीचे को आती हैं और फिर दायीं तरफ जाती हैं। इसलिए फ्रेम बनाते समय ये ध्यान रखा जाता है कि वो ऐसा बने जिससे नज़रों की 'नैचुरल' मूवमेंट में फिट हो ताकि आंखो को सुहाना लगे। इसी आधार पर तस्वीर, टेक्स्ट, पंच लाईन और लोगो को लगाया जाता है।
जब हम घड़ी देखते हैं तो सबसे पहले हम ये जानना चाहते हैं कि कितना बजा है। लिहाज़ा हमारी नज़र सबसे पहले घंटे की सूई पर जाती है। फिर नज़र मिनट की सूई ढूंढती है।
10:10 पर हालत ये होती है कि बायीं तरफ घंटे की सूई मिलती है। z के हिसाब से नज़र मूव करती है कि दायीं तरफ मिनट की सूई दिख जाती है। मिनट से नज़रे पर बायीं तरफ सरकती हुई नीचे आती है तो वहां कंपनी मार्का या लोगो होता है। कई घड़ी कंपनिया अपना मार्का ज़ेड के ऊपरी डंडे की लाईन पर ही रखते हैं।
अगर मेरी जानकारी दुरुस्त नहीं है तो कोई भी इसे ठीक कर सकता है।
आखिर में आप से गुज़ारिश है कि आप अपने बाकी के दो सवाल का जवाब बता दें ताकि हमारी भी ज्ञानवर्धन हो सके।
उत्तर की अभिलाषा में
मनीष
मुझे तो लगता था (और लगता भी है) कि पहली वरीयता यह है कि तीनों सुइयाँ, (यदि तीन भी होँ) तब तीनों लगभग समान कोण पर हों - अर्थात् एक दूसरे से 360/3 = 120 अंश के आस-पास।
Timex के उत्तर से तो यही लगता है -
पहले भी प्रचलन 08:20:00 दिखाने का था जिसमें प्रत्येक सुई दूसरी से 120 अंश पर होती।
बाद में इसे लगभग पूरा पलट दिया गया
क्योंकि
8:20 की रूप रेखा उदासी के संकेत को इंगित करती थी (जैसा Timex ने बताया) तब इसे पलट कर 10:20 कर दिया गया। इससे सांकेतिक रूप भी प्रसन्नता का हो गया और लगभग 120 अंश का कोण भी बरकरार रहा, लोगो भी 12 बजे के आस पास हो तो स्पष्ट रूप से दिखाने की सहूलियत भी।
यह मेरा कयास ही है!
1.1 वोल्टता वाली जानकारी भी अच्छी रही, तथा उमाशंकर जी की टिप्प्णियाँ भी।
इसलिए