मौत की लंबी खुमारी
सुबह से ही आकाश की हालत खराब है। नींद पर नींद आए जा रही है। उठ रहा है, सो रहा है। रात दस बजे का सोया सुबह नौ बजे उठा। लेकिन ग्यारह घंटे की पूरी नींद के बावजूद उठने के पंद्रह मिनट बाद फिर सो गया। इसके बाद उठा करीब सवा ग्यारह बजे। लेकिन मुंह-हाथ धोने और नहाने के बाद भी उसे नींद के झोंके आते रहे। बस चाय पी और सो गया। दो बजे उठकर खाना खाया और फिर सो गया। आकाश को समझ में नहीं आ रहा था कि यह हफ्ते भर लगातार बारह-बारह, चौदह-चौदह घंटे काम करने का नतीजा है या मौत की उस लंबी खुमारी का जो एक अरसे से उस पर सवार थी। मौत की खुमारी बड़ी खतरनाक होती है, आपको संज्ञा-शून्य कर देती है। इसमें डूबे हुए शख्स को मौत की नींद कब धर दबोचेगी, उसे पता ही नहीं चलता। आखिर खुमारी और नींद में फासला ही कितना होता है। कब आप झीने से परदे के उस पार पहुंच गए, पता ही नहीं चलता। आकाश की ये खुमारी कब से शुरू हुई, खुमारी के चलते उसे कुछ भी याद नहीं। याददाश्त भी बहुत मद्धिम पड़ गई है। लेकिन लगता है कि इसकी शुरुआत साल 1982 की गरमियों में उस दिन से हफ्ता-दस दिन पहले हुई थी, जब उसने कुछ लाइनें एक कागज पर लिखी थीं। वह कागज तो पत्त...