जेट एयरवेज का काम करवाया प्रधानमंत्री ने
जिन लोगों को गफलत है कि हमारी चुनी हुई सरकारें और उनके मुखिया जनता और राष्ट्रीय हितों के लिए ही काम करते हैं, उन्हें अब अपनी गफलत दूर कर लेनी चाहिए। ताज़ा सबूत है प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का चीन दौरा। प्रधानमंत्री इस समय चीन की यात्रा पर हैं और कल भी चीन में ही रहेंगे। उनके दौरे के एजेंडे में सीमा विवाद को सुलझाने से लेकर आर्थिक और व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करना शामिल है। लेकिन आज मैं यह जानकर दंग रह गया है कि इस दौरे में पहली कामयाबी यह मिली है कि भारत की निजी एयरलाइन जेट एयरवेज को मुंबई से सैन फ्रांसिस्को की उड़ान को शांघाई से ले जाने की इजाज़त मिल गई है। बदले में भारत ने चीन के कार्गो कैरियर ग्रेट वॉल एयरलाइन को मुंबई और चेन्नई तक उड़ान भरने की अनुमति दे दी है।
पहले भारत ने सुरक्षा कारणों के चलते चीनी कार्गो एयरलाइन की इन उड़ानों पर आपत्ति जताई थी और जेट एयरवेज का मुंबई-शांघाई-सैन फ्रांसिस्को उड़ान का आवेदन साल भर से लंबित पड़ा था। गौरतलब है कि इन डील में शामिल दोनों एयरलाइंस के चरित्र पर सवाल उठ चुके हैं। चीनी एयरलाइन पर आरोप लगा था कि उसकी प्रवर्तक कंपनी ने ईरान को मिसाइल तकनीक देने में मदद की है जिसके लिए उसे अमेरिका ने ब्लैक लिस्ट कर दिया था। इसी तरह जेट एयरवेज पर लंबे समय पर आरोप लगते रहे हैं कि इसमें अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम और छोटा शकील की काली कमाई लगी हुई है। संसद तक में इस पर बहस हो चुकी है।
अभी महीना भर पहले ही 7 दिसंबर 2007 को सुप्रीम कोर्ट में जेट एयरवेज के मालिक नरेश गोयल और दाऊद व छोटा शकील के बीच के रिश्तों का मामला सुनवाई के लिए आया था। जानेमाने वकील और पूर्व कानून मंत्री शांतिभूषण ने याचिकाकर्ता की तरफ से दलील दी थी कि भारत सरकार में संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर बताया था कि खुफिया एंजेसिंयों के मुताबिक नरेश गोयल के रिश्ते दाऊद इब्राहिम और छोटा शकील से रहे हैं। इसलिए सरकार को एफआईआर दर्ज कराके इसकी जांच सीबीआई से करानी चाहिए। इसके खिलाफ जेट एयरवेज ने वकील और पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने दलील दी कि इस मामले की जांच हो चुकी है और अमेरिका तक ने जेट एयरवेज को क्लीन-चिट दे दी है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जेट एयरवेज और नरेश गोयल के खिलाफ दायर याचिका को पूरी तरह खारिज कर दिया।
लेकिन मेरा कहना है कि इसके बावजूद जेट एयरवेज एक दागी कंपनी है और आम लोगों को आज भी लगता है कि इसमें अंडरवर्ल्ड का पैसा लगा हुआ है। ऐसी सूरत में क्या हमारे स्वच्छ छवि वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जेट एयरवेज का पक्ष लेना शोभा देता है? क्या उन्हें चीन जैसे महत्वपूर्ण देश के दौरे पर जेट एयरवेज जैसी दागी कंपनी के व्यावसायिक हितों को पूरा करने में मदद करनी चाहिए थी? आपको बता दूं कि इस दौरे में प्रधानमंत्री के साथ गए उद्योगपतियों के प्रतिनिधिमंडल में नरेश गोयल भी शामिल हैं।
वैसे, आप कह सकते हैं कि सरकारें हमेशा से पूंजीपतियों की सेवा करती हैं। अगर प्रधानमंत्री ने ऐसा किया तो गलत क्या किया? लेकिन मेरा कहना है कि इस हकीकत के बावजूद हम में से बहुत लोग आज भी इसी भ्रम में रहते हैं कि सरकार जिनके वोटों से चुनकर आती है, उन्हीं की सेवा करती है, जबकि राजनीति के व्यवहार में ऐसा कतई नहीं होता। राजनीतिक पार्टियों को वोट चाहिए तो वोट बटारने के नोट भी चाहिए होता है जिसे उन्हें निहित स्वार्थों वाली कंपनियां मुहैया कराती हैं। जो कंपनियां पाक-साफ होती हैं, उन्हें सरकार से खास मदद की दरकार नहीं होती। इसलिए वो चुनाव सुधार की बात करती है, पार्टियों को चेक से रकम देने की वकालत करती है। लेकिन जालसाज और दागी कंपनियां आज भी अपना काला धन राजनीति की कर्मनाशा नदी में बहाती रहती है।
दुनिया भर में ऐसा होता रहा है। अमेरिका में तो बड़े उद्योगपति को उठाकर सीधे वित्त मंत्री बना दिया जाता है। अपने यहां भी ऐसा होता रहा होगा, लेकिन शायद इतने खुल्ल-खुल्ला तरीके से नहीं। अभी कुछ दिनों पहले ही वाणिज्य मंत्री कमलनाथ ने अमेरिकी मोटरसाइकिल निर्माता कंपनी Harley Davidson के लिए लॉबीइंग की थी और अब खुद हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक दागी कंपनी जेट एयरवेज का काम करवा रहे हैं। वो अगर इंडियन एयरलाइंस या एयर इंडिया जैसे किसी सरकारी कंपनी का काम करवाते तो बात समझ में आती, लेकिन उन्होंने आखिरकार दिखा ही दिया कि उनकी प्राथमिकता क्या है।
पहले भारत ने सुरक्षा कारणों के चलते चीनी कार्गो एयरलाइन की इन उड़ानों पर आपत्ति जताई थी और जेट एयरवेज का मुंबई-शांघाई-सैन फ्रांसिस्को उड़ान का आवेदन साल भर से लंबित पड़ा था। गौरतलब है कि इन डील में शामिल दोनों एयरलाइंस के चरित्र पर सवाल उठ चुके हैं। चीनी एयरलाइन पर आरोप लगा था कि उसकी प्रवर्तक कंपनी ने ईरान को मिसाइल तकनीक देने में मदद की है जिसके लिए उसे अमेरिका ने ब्लैक लिस्ट कर दिया था। इसी तरह जेट एयरवेज पर लंबे समय पर आरोप लगते रहे हैं कि इसमें अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम और छोटा शकील की काली कमाई लगी हुई है। संसद तक में इस पर बहस हो चुकी है।
अभी महीना भर पहले ही 7 दिसंबर 2007 को सुप्रीम कोर्ट में जेट एयरवेज के मालिक नरेश गोयल और दाऊद व छोटा शकील के बीच के रिश्तों का मामला सुनवाई के लिए आया था। जानेमाने वकील और पूर्व कानून मंत्री शांतिभूषण ने याचिकाकर्ता की तरफ से दलील दी थी कि भारत सरकार में संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर बताया था कि खुफिया एंजेसिंयों के मुताबिक नरेश गोयल के रिश्ते दाऊद इब्राहिम और छोटा शकील से रहे हैं। इसलिए सरकार को एफआईआर दर्ज कराके इसकी जांच सीबीआई से करानी चाहिए। इसके खिलाफ जेट एयरवेज ने वकील और पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने दलील दी कि इस मामले की जांच हो चुकी है और अमेरिका तक ने जेट एयरवेज को क्लीन-चिट दे दी है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जेट एयरवेज और नरेश गोयल के खिलाफ दायर याचिका को पूरी तरह खारिज कर दिया।
लेकिन मेरा कहना है कि इसके बावजूद जेट एयरवेज एक दागी कंपनी है और आम लोगों को आज भी लगता है कि इसमें अंडरवर्ल्ड का पैसा लगा हुआ है। ऐसी सूरत में क्या हमारे स्वच्छ छवि वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जेट एयरवेज का पक्ष लेना शोभा देता है? क्या उन्हें चीन जैसे महत्वपूर्ण देश के दौरे पर जेट एयरवेज जैसी दागी कंपनी के व्यावसायिक हितों को पूरा करने में मदद करनी चाहिए थी? आपको बता दूं कि इस दौरे में प्रधानमंत्री के साथ गए उद्योगपतियों के प्रतिनिधिमंडल में नरेश गोयल भी शामिल हैं।
वैसे, आप कह सकते हैं कि सरकारें हमेशा से पूंजीपतियों की सेवा करती हैं। अगर प्रधानमंत्री ने ऐसा किया तो गलत क्या किया? लेकिन मेरा कहना है कि इस हकीकत के बावजूद हम में से बहुत लोग आज भी इसी भ्रम में रहते हैं कि सरकार जिनके वोटों से चुनकर आती है, उन्हीं की सेवा करती है, जबकि राजनीति के व्यवहार में ऐसा कतई नहीं होता। राजनीतिक पार्टियों को वोट चाहिए तो वोट बटारने के नोट भी चाहिए होता है जिसे उन्हें निहित स्वार्थों वाली कंपनियां मुहैया कराती हैं। जो कंपनियां पाक-साफ होती हैं, उन्हें सरकार से खास मदद की दरकार नहीं होती। इसलिए वो चुनाव सुधार की बात करती है, पार्टियों को चेक से रकम देने की वकालत करती है। लेकिन जालसाज और दागी कंपनियां आज भी अपना काला धन राजनीति की कर्मनाशा नदी में बहाती रहती है।
दुनिया भर में ऐसा होता रहा है। अमेरिका में तो बड़े उद्योगपति को उठाकर सीधे वित्त मंत्री बना दिया जाता है। अपने यहां भी ऐसा होता रहा होगा, लेकिन शायद इतने खुल्ल-खुल्ला तरीके से नहीं। अभी कुछ दिनों पहले ही वाणिज्य मंत्री कमलनाथ ने अमेरिकी मोटरसाइकिल निर्माता कंपनी Harley Davidson के लिए लॉबीइंग की थी और अब खुद हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक दागी कंपनी जेट एयरवेज का काम करवा रहे हैं। वो अगर इंडियन एयरलाइंस या एयर इंडिया जैसे किसी सरकारी कंपनी का काम करवाते तो बात समझ में आती, लेकिन उन्होंने आखिरकार दिखा ही दिया कि उनकी प्राथमिकता क्या है।
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