तुम किसकी चाकरी करते हो, कमलनाथ!
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हमारे वाणिज्य मंत्री कंपनी की इसी सहूलियत के लिए प्रधानमंत्री से गुजारिश कर रहे हैं। दिक्कत यह है कि Harley Davidson की सबसे सस्ती बाइक की कीमत 6600 डॉलर है, जबकि अगले साल लांच होनेवाली बाइक की कीमत 17,600 डॉलर से ज्यादा है। 60 फीसदी ड्यूटी लगने के बाद भारत में इनकी कीमत 4 लाख से 12 लाख रुपए तक हो जाएगी। इसलिए कंपनी लगातार लॉबीइंग कर रही है कि ड्यूटी कम से कम कर दी जाए। कंपनी भारत में इन मोटरसाइकिलों को बनाने की सुविधा लगाने को तैयार नहीं है। वह अमेरिका में बनी मोटसाइकिलें आयात करेगी और अगले तीन सालों में 2000 मोटरसाइकिलें भारत में बेचने का उसका लक्ष्य है। कमाल की बात है कि मंत्री कमलनाथ को भी उसने अपनी लॉबीइंग में खींच लिया है।
अब ज़रा कमलनाथ के तर्कों पर गौर कर लीजिए। उनका कहना है कि Harley Davidson अमेरिका और उसकी संस्कृति की प्रतीक है और इसके आयात को आसान बनाने से बहुत गहरा राजनीतिक सिग्नल जाएगा। इससे भारत-अमेरिका की दोस्ती में मजबूती आएगी। उनका कहना है कि Harley Davidson पर आयात शुल्क घटाने का प्रस्ताव इंडो-यूएस ट्रेड पॉलिसी फोरम ने रखा है और अमेरिकी सीनेट में बहुमत के नेता हैरी रीड का वरदहस्त इसके ऊपर है। इसलिए प्रधानमंत्री को शुल्क को घटाने का फैसला कर ही लेना चाहिए। सोचिए, एक मंत्री जब एक मोटरसाइकिल कंपनी के लिए इस हद तक जा सकता है तो भारत-अमेरिका परमाणु संधि पर तमाम मंत्रियों की आवाज़ कितनी तेज़ हो सकती है।
यूपीए सरकार ने इसी साल अप्रैल में 800 सीसी से ज्यादा की मोटरसाइकिलों को देश में आयात किए जाने की इजाज़त दी है। बताया गया कि क्योंकि अमेरिका ने अपने देश में भारतीय आम आयात करने को हरी झंडी दे दी है, इसलिए हमें कुछ न कुछ तो करना ही था। हकीकत ये है कि इस तरह की मोटरसाइकिलें अभी भारत में दोपहिया वाहनों के लिए तय मानक से छह गुना ज्यादा प्रदूषण फैलाती हैं। फिलहाल देश में मोटरसाइकिलें बनानेवाली तीन बड़ी कंपनियां हीरो होंडा, बजाज और टीवीएस हैं। ये सभी 350 सीसी से कम पावर की मोटरसाइकिलें बनाती हैं। इसलिए कमलनाथ का कहना है कि Harley Davidson के आने से इनके धंधे पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
सवाल उठता है कि देश में अमीरों की नई खेप तैयार होने के बाद अगर 800 सीसी से ज्यादा पावर वाली मोटरसाइकिलों का बाज़ार बना है तो उस पर पहला हक अमेरिका या यूरोप की किसी कंपनी को कैसे दिया जा सकता है? जब हमारे आम कारीगर सालों-साल से ऐसी मोटरसाइकिलें असेम्बल करके बना रहे हैं, तब क्या भारतीय कंपनियों में इन्हें बनाने की क्षमता नहीं है? भारतीय निर्यात को बढ़ावा देने का दम भरनेवाले पढ़े-लिखे जानकार वाणिज्य मंत्री कमलनाथ यही साबित करना चाहते हैं कि भारतीय कंपनियां अक्षम हैं। लेकिन जिस तरह उन्होंने एक अमेरिकी कंपनी के लिए लॉबीइंग की है, उससे उनका दलाल चरित्र साफ हो गया है। और आप जानते ही हैं कि दलाल किसी का नहीं होता। उसे सिर्फ अपनी दलाली से मतलब होता है। बाकी वह जो कुछ भी चीख-चीख कर बोलता है, उसका मकसद केवल और केवल अपनी विश्वसनीयता बनाना होता है ताकि दलाली करने के बावजूद लोग उसे पाक-साफ समझते रहें।
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