मोदी, भाजपा व संघ को भारत से इतनी दुश्मनी क्यों?
हाल ही में मैंने मध्य-पूर्व देशों की पुरानी सभ्यता व मिथकों पर केंद्रित एक किताब पढ़कर खत्म की है – From the Ashes of Angels: The forbidden Legacy of a Fallen Race। इसके लेखक है Adrew Collins। महंगी किताब है पेपरबैक में करीब 2000 रुपए और हार्डकवर 20,000 रुपए से ज्यादा। जर्मनी में रहने के दौरान सस्ते में सेकंड-हैंड किताबों की एक दुकान से खरीद ली थी।
इसे पढ़ने पर पता चला कि कानून निर्माता मनु से लेकर कंस, देवकी व कृष्ण, अहिरावण, गरुण, विष्णु और समुद्र मंथन, महाप्रलय व सुमेर पर्वत जैसी घटनाओं, जगहों व चरित्रों से जुड़े ब्राह्मणी या हिंदू मिथक ईरान, इराक, मिस्र, सीरिया, अजरबैजान व इस्राइल जैसे देशों में प्रचलित मिथकों से लिए गए हैं। इनका वास्ता यहूदी, पारसी, ईसाई व बाद के मुस्लिम धर्म के साथ ही तमाम छोटे-छोटे सम्प्रदायों की मान्यताओं से है। इनमें यह भी है कि उनके यहां के सिद्ध व शक्तिशाली लोग ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की कंदराओं में जाकर रहते व साधना करते थे। तब के फारस या ईरान में अयरयाना वैजह (Airyana Vaejah) नाम की एक जगह भी थी, जहां से संभवतः आर्य शब्द निकला होगा।
दूसरी तरफ भारत की मूल संस्कृति में मिथकों का नितांत अभाव रहा है। भारत अनीश्वरवादी समाज था। सिंधु घाटी की खुदाई में कहीं कोई मंदिर वगैरह नहीं मिला है। हड़प्पा की खुदाई में मिला सबसे बड़ा मकान तीन मंजिला है और वह किसी कारीगर का बताया जाता है। हमारे यहां जो भी पुराण लिखे गए. वे सभी ईस्वी की शुरुआत के आसपास या उसके काफी बाद लिखे गए। भारत के ऋषि-मुनि तक हिमालय की कंदराओं या गुफाओ में नहीं, बल्कि अरण्य या जंगलों में जाकर रहते और साधना करते थे। मध्य-पूर्व के मिथकों के अनुसार अहुर बड़े सभ्य व सज्जन लोग थे, जबकि देव बेहद दुष्ट, दुर्जन व व्यभिचारी थे। इनके बीच हुए संघर्षों में बार-बार देवों को पराजित कर बाहर धकेला गया। लगता है वही देव या देवता भागते-भागते ईसा-पूर्व 1800 के आसपास पहले अफगानिस्तान पहुंचे। देव या देवता बने रहे। साथ ही पुरोहिती का काम करनेवालों ने वेदों के कर्मकांडों को एकट्ठा करके ब्राह्मण ग्रंथों की रचना की और बाद में उनका प्रचार-प्रसार करने के कारण खुद ब्राह्मण (यह शब्द मूलतः अब्राहम से निकला है) कहलाने लगे।
देव और ब्राह्मण युद्ध में पराजित भगाए गए लोग थे तो उनके साथ स्त्रियां नहीं थी। कद-काठी में बड़े थे। चमड़ी का रंग मध्य-पूर्व के विदेशियों जैसा गोरा था। मंत्र-तंत्र के सारे फ्रॉड में माहिर थे। उत्तर भारत में पहुंचने पर उन्होंने ऐसी शानपट्टी बघारी होगी कि भोले-भाले भारतीय उन्हें भरपूर भाव देने लगे। यहां तक कि हज़ार सालों में वे हमारे समाज में इतने स्थापित व समाहित हो गए कि बुद्धवाणी तक में देव व ब्रह्माओं का नाम अलग से और काफी सम्मान से लिया गया है। लेकिन इस दौरान ये देव व ब्राह्मण अग्नि, सूर्य पूजा, यज्ञ, पशु हिंसा व व्यभिचार का प्रकोप फैला चुके थे तो भारत के सभ्य व शांत श्रमणों को इनसे बौद्धिक स्तर पर लड़ना पड़ा।
तब तक भारत दो प्रमुख समुदायों – ब्राहमण व श्रमण में बंट चुका था। अरिया सभ्य, सज्जन व बुद्धिमान लोगों को कहा जाता था, जबकि अनरिया असभ्य, दुर्जन व मूर्ख लोगों को कहा जाता था। शायद वही से आज का अनाड़ी शब्द निकला होगा। देव व ब्राह्मण खुद को अरिया या आर्य से भी महान प्रचारित व स्थापित करने में सफल रहे।
आज जिस तरह भाजपा व संघ के लोग बड़ी बेबाकी से झूठ बोल लेते हैं, उसका भी उत्स मध्य-पूर्व के एक सम्प्रदाय में मिलता है। असल में ईरान के उत्तर-पश्चिमी पहाड़ी इलाके में एक कबीला हुआ करता था जिसका नाम था मेडिया। इसमें पुरोहिती का काम करनेवाली जाति या समुदाय को मागी कहा जाता था। मागी लोग झूठ के अनुयायी थे और झूठ बोलना उनका सबसे बड़ा जीवन ‘मूल्य’ था। क्या सदियों से बहता चला आया वही डीएऩए या संस्कार नहीं है जिसके दम पर मोदी, कोई भी संघी या भाजपाई बड़े से बड़ा झूठ बेहिचक सार्वजनिक मंच से बोल लेता है। भारत का संस्कार तो हमेशा मरते दम तक सत्य बोलने और उसी का पक्ष लेने का है।
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