रेल की फसल तैयार है, लालू अब काटेंगे चारा

लालू चालीसा गाने का वक्त आ गया है। ठीक 28 दिन बाद 26 फरवरी को लालू जी अपना पांचवां और शायद आखिरी रेल बजट पेश करेंगे। बहुत से लोग उम्मीद कर रहे हैं कि लालू इस बार फिर कोई कमाल दिखाएंगे। लेकिन ज़रा संभल के। लालू प्रसाद यादव 23 मई 2004 को रेल मंत्री बनने के बाद से अब तक चार बजट पेश कर चुके हैं। फसल अब पककर तैयार हो चुकी है और लालू इस बार दबे पांव चारा काटने की तैयारी में हैं। इसकी पहली आहट मिली है इस खबर से कि भारतीय रेल अब रेलवे प्लेटफार्म और ट्रेनों से अपने ब्रांडेड पानी, रेल नीर को हटाकर उसकी जगह प्राइवेट कंपनियों के ब्रांडेड पानी बेचने जा रही है। वजह यह बताई जा रही है कि रेल नीर के खराब होने की बहुत सारी शिकायतें मिल रही हैं। सवाल उठता है कि क्या 20,000 करोड़ के सरप्लस में चल रही लालू की रेल शुद्ध पानी भी नहीं बना सकती? जवाब है – बना सकती है। लेकिन औरों का ब्रांडेड पानी बेचने से जो ‘कट’ मिलेगा, वह रेल नीर से नहीं मिल सकता।

लालू की इस बदलती सीरत का एक और नमूना पेश करना चाहूंगा। दो दिन बाद पहली फरवरी से रेल में 90 दिन पहले आरक्षण कराया जा सकता है। अभी तक यह अवधि 60 दिन की है। आप कहेंगे कि इसमें गलत और अनोखा क्या है? पिछले साल फरवरी में भी तो यह सहूलियत दी गई थी, जिसे 15 जुलाई के आसपास वापस ले लिया गया था!! तो, इसी में छिपी है इस सहूलियत की अनोखी बात। फरवरी में अग्रिम आरक्षण को 60 दिन से बढ़ाकर 90 दिन कर देने से भारतीय रेल चालू साल के बजट 550-600 करोड़ रुपए की आमदनी दिखा सकती है। सोचिए, यात्रियों का फायदा दिखाकर लालू जी कैसे रेल की बैलेंस शीट चमकाते हैं।

दिक्कत यह है कि आज कोई भी लालू के खिलाफ सुनने को तैयार नहीं है। उन्होंने जिस तरह भारतीय रेल का कायाकल्प किया है, उस पर आईआईएम, अहमदाबाद से लेकर विदेश तक में भारी-भरकम शोध-पत्र लिखे जा चुके हैं। बताया जा रहा है कि राकेश मोहन समिति ने जुलाई 2001 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में कह दिया था कि “आज भारतीय रेल वित्तीय संकट की कगार पर है। साफ कहें तो रेल घातक दिवालियेपन की तरफ बढ़ रही है और 16 सालों में इसके चलते भारत सरकार पर 61,000 करोड़ रुपए का बोझ आ गिरेगा।” 1999-2000 में भारतीय रेल के पास केवल 149 करोड़ रुपए की बचत थी। लेकिन छह साल बाद स्थिति ये है कि भारतीय रेल ओएनजीसी के बाद सबसे ज्यादा लाभ कमानेवाला दूसरा सरकारी उद्यम बन गया है।

वित्त वर्ष 2005-06 के अंत तक सरकार को लाभांश देने के बाद भारतीय रेल के पास 12,000 करोड़ रुपए की बचत थी। यह रकम 2006-07 के अंत तक 16,000 करोड़ तक जा पहुंची और चालू वित्त वर्ष 2007-08 के अंत तक इसके 16,170 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। जिस भारतीय रेल का परिचालन अनुपात (लाभांश के अलावा मूल्य-ह्रास व पेंशन समेत सारे खर्च और शुद्ध आमदनी का अनुपात) 2000-01 में 98.3 फीसदी था, उसका परिचालन अनुपात 2005-06 में 83.7 फीसदी हो गया। यानी जहां 2000-01 में 100 रुपए की शुद्ध आमदनी में से रेल के पास केवल 1.70 रुपए बचते थे, वही 2005-06 में यह बचत 16.30 रुपए हो गई। साल 2006-07 में परिचालन अनुपात 78.7 फीसदी हो गया, यानी 100 रुपए की आमदनी में से 21.30 रुपए बचने लगे। चालू साल में भी परिचालन अनुपात के लिए 79.6 फीसदी का लक्ष्य रखा गया है, यानी 100 रुपए पर बचत 20 रुपए से ऊपर ही रहेगी।

लेकिन सवाल उठता है कि लालू जैसे खांटी दागदार राजनेता ने यह करिश्मा किया कैसे? रेलगाड़ी के परिचालन से जुड़े ज्ञानदत्त जी जैसे लोग इसका बेहतर जवाब दे सकते हैं। मैं तो बस सुनी-सुनाई बातें ही बता सकता हूं। धनबाद में कोयले के धंधे से जुड़े एक व्यापारी मित्र के मुताबिक, पहले मालगाड़ियों में बोगी की क्षमता अगर 20 टन होती थी तो उसमें 15 टन ही माल भरा जाता था और ऊपर से दिखाया जाता था केवल 5 या 10 टन। इसके अलावा अक्सर माल से भरी तमाम मालगाड़ियां केवल कागज़ों में दर्ज होती थीं। इससे होनेवाली कमाई रेल मंत्री और रेल राज्यमंत्री से लेकर रेलवे के आला अधिकारियों में बंट जाया करती थी। लालू ने इस भ्रष्टाचार को तो रोका ही, साथ ही मालगाड़ियों को ठूंस-ठूंस कर भरने का आदेश दे दिया। इतने ज़रा-से भ्रष्टाचार को रोकने से भारतीय रेल आज घाटे से सरप्लस में आ गई। सोचिए, अगर ठेकों वगैरह में भी होनेवाले भ्रष्टाचार को रोक दिया जाए तो हमारी रेल कितने फायदे में आ सकती है? ऊपर से बहुत से माफिया लोगों की भी नाभिनाल कट जाएगी।

Comments

Unknown said…
""सोचिए, अगर ठेकों वगैरह में भी होनेवाले भ्रष्टाचार को रोक दिया जाए तो हमारी रेल कितने फायदे में आ सकती है? ऊपर से बहुत से माफिया लोगों की भी नाभिनाल कट जाएगी।""
भाई साहब चुनाव के लिये चन्दे कि जुगाड़ कहाँ से होगी फ़िर? और गुण्डे कौन सप्लाई करेगा?…
अनिल जी आपने बढिया विश्लेषण किया है। तर्क और वितर्क के लिये बहुत सारी बातें कहीं जा सकती है लेकिन यह सच है कि इससे पहले नीतीश कुमार,राम विलास पासवान और राम नाइक जैसे दिग्गज रेल मंत्री हुये लेकिन सभी लोग रेल को सफेद हाथी कह रहे थे। इसी सफेद हाथी कहे जाने वाले मंत्रालय को लालू यादव 20 हजार करोड़ के मुनाफे में ले आये। जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है तो इसके लिये एक मुहिम चलायी जानी चाहिये और सर्वे करानी चाहिये कि देश में जितने नेता हैं उनके आय के साधन क्या हैं? पता चलेगा कि सारे लोग समुद्र में गोता लगा चुके हैं। हवाला कांड इसका बढिया उदाहरण है।
Unknown said…
वैसे ये बात जोरदार है कि चारे का घाटा पाट दिया ! - मनीष
जोरदार पोस्ट है।
१. बिजनेस स्टेण्डर्ड की खबर के बारे में मुझे नहीं पता। पर रेलवे को अपना काम - ट्रेन चलाना करना चाहिये। बाकी कामों के लिये तो और भी दक्ष उद्योगकर्मी हैं।
२. यह सच है कि वैगनों की वहन क्षमता का पूर्ण दोहन अब किया गया है और वह राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी से सिंक्रोनाइज हो गया है। पर इस अच्छे प्रबन्धन के काम को मात्र "भ्रष्टाचार उन्मूलन" जैसे शब्दों से ही निपटाया नहीं जा सकता। :-)
Sanjay Tiwari said…
असल में रेलवे के निजीकरण की शुरूआत हो रही है. शुरूआत में ऐसे छोटे-मोटे कदम उठाये जाएंगे जो धीरे-धीरे बड़े फैसलों में बदलते चले जाएंगे. आप तो जानते ही हैं कि यूरोप वगैरह में पहले ही ऐसा हो चुका है.

Popular posts from this blog

मोदी, भाजपा व संघ को भारत से इतनी दुश्मनी क्यों?

चेला झोली भरके लाना, हो चेला...

घोषणाएं लुभाती हैं, सच रुलाता है