ब्लॉगिंग से निजात मिले तो नौकरी चल जाए!!!
बड़ी मुसीबत है। मैं अपनी नौकरी से इतना प्यार करता हूं। फिर भी लोगबाग कहते हैं कि मियां क्यों अपनी energy waste कर रहे हो। बेहद ईमानदारी से बताऊं तो सच यही है कि मैं सालों से मेहनत किए जा रहा हूं। इसलिए किए जा रहा हूं क्योंकि मुझे ऐसा करना अच्छा लगता है। खाली-पीली कमाई के लिए थोड़े ही 10-12 घंटे की नौकरी करता हूं? देखिए न मेरे जैसे लोगों के नौकरी-प्रेम का अंदाज-ए-बयां! (एनीमेटेड तस्वीर पर ज़रूर क्लिक करें)
वैसे, दिक्कत बस इतनी है कि मुझे अपने बॉस की छाया से भी डर लगता है। कहते हैं न कि बॉस के अगाड़ी और घोड़े के पिछाड़ी कभी नहीं पड़ना चाहिए। नियमित दफ्तर तो जाता हूं। छुट्टियां भी बेहद कम लेता हूं। अब देखिए न। पिछले साल की मेरी आठों कैजुअल लैप्स हो गईं। लेकिन किसी भी सूरत में बॉस की नजर से बचता हूं। बॉस का शाम को एक बार आना तय रहता है। लेकिन हरचंद कोशिश रहती है कि वो आएं, इससे पहले ही अपुन कहीं धीरे से खिसक लें। (एनीमेटेड तस्वीर पर ज़रूर क्लिक करें)
चलिए। मज़ाक-मज़ाक में काफी कुछ कह गया। वैसे, जिस तरह से नौकरीपेशा लोग ब्लॉगिंग में उतर रहे हैं और अपने ब्लॉग पर जहां से मिले, वहां से शादी से लेकर कंप्यूटर तक के विज्ञापन लगा देते हैं, उससे मुझे लगता है कि इनमें से ज्यादातर लोग या तो अपनी नौकरी से ऊबे हुए हैं, या नौकरी से मिलने वाले पैसे उनके लिए कम पड़ रहे हैं। खैर, जो भी हो। दोनों ही स्थितियों से मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है। मैं भी उसी दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं जब हिंदी में ऑनलाइन लिखना आय का नियमित और अच्छा साधन बन जाएगा।
सोमवार को नौकरी के पहले दिन के लिए आज इतना ही।
वैसे, दिक्कत बस इतनी है कि मुझे अपने बॉस की छाया से भी डर लगता है। कहते हैं न कि बॉस के अगाड़ी और घोड़े के पिछाड़ी कभी नहीं पड़ना चाहिए। नियमित दफ्तर तो जाता हूं। छुट्टियां भी बेहद कम लेता हूं। अब देखिए न। पिछले साल की मेरी आठों कैजुअल लैप्स हो गईं। लेकिन किसी भी सूरत में बॉस की नजर से बचता हूं। बॉस का शाम को एक बार आना तय रहता है। लेकिन हरचंद कोशिश रहती है कि वो आएं, इससे पहले ही अपुन कहीं धीरे से खिसक लें। (एनीमेटेड तस्वीर पर ज़रूर क्लिक करें)
चलिए। मज़ाक-मज़ाक में काफी कुछ कह गया। वैसे, जिस तरह से नौकरीपेशा लोग ब्लॉगिंग में उतर रहे हैं और अपने ब्लॉग पर जहां से मिले, वहां से शादी से लेकर कंप्यूटर तक के विज्ञापन लगा देते हैं, उससे मुझे लगता है कि इनमें से ज्यादातर लोग या तो अपनी नौकरी से ऊबे हुए हैं, या नौकरी से मिलने वाले पैसे उनके लिए कम पड़ रहे हैं। खैर, जो भी हो। दोनों ही स्थितियों से मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है। मैं भी उसी दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं जब हिंदी में ऑनलाइन लिखना आय का नियमित और अच्छा साधन बन जाएगा।
सोमवार को नौकरी के पहले दिन के लिए आज इतना ही।
Comments
हम तो नौकरी छोड़कर बैठे थे, आराम से कुछ और काम करने के लिए..ब्लॉग में फँस गए.
घुघूती बासूती
नीरज
तर नौकरी करने वाले लोगों की यही हालत है।
ज्यादा-तर नौकरी करनेवालों का... :)
इनीमेटेड चित्र बढ़िया बनाये आपने, क्यों ना एक ट्यूटोरियल पोस्ट हो जाये?
और सागर भाई, दो साल पहले सीएनबीसी आवाज़ में था तो वहां किसी ने ये दोनों एनीमेटेड तस्वीरें मेल में भेजी थीं। सो मौका देखकर उन्हें ही मैंने इस्तेमाल कर लिया। अपुन को कहां आएगा इस तरह का एनीमेशन। हां, कभी आपने सीखने की विधि बता दी तो ज़रूर सीख लूंगा।
शुक्रिया...