वफादारों का सैलाब आएगा, लेकिन धीरे-धीरे
एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल अप्रैल तक दुनिया भर में इंटरनेट पर सक्रिय ब्लॉगों की संख्या करीब 1.55 करोड़ पर पहुंच चुकी थी। ये वो ब्लॉग हैं जो तीन महीने में कम से कम एक बार अपडेट किए जाते हैं। मुझे लगता है कि अब तक ऐसे सक्रिय ब्लॉगों की संख्या कम से कम दो करोड़ तक पहुंच गई होगी। गौरतलब है कि साल 2005 तक सक्रिय ब्लॉगों की संख्या 30 लाख के आसपास थी। दो-ढाई साल में करीब पांच गुना, छह गुना की वृद्धि यही दिखाती है कि दुनिया भर में अभिव्यक्ति का जबरदस्त विस्फोट हो रहा है। इन ब्लॉगों पर निजी किस्से-कहानियों और प्रेम जैसे भावुक मसले तो होते ही है, राजनीति से लेकर समाज, साहित्य, तकनीक, खेल, कला और पाक-कला तक पर लिखा जा रहा है।
सवाल उठता है कि इतने सारे ब्लॉगों के बीच अपने ब्लॉग को लोकप्रिय कैसे बनाया जाए? कौन-सी बातें हैं जो किसी ब्लॉग को ब्लॉग के ग्लोब में मची धक्कमधुक्की में अलग पहचान देती हैं? दो साल पहले अमेरिका में तमाम ब्लॉगरों से बात करके इस पर एक रोचक लेख लिखा गया था। उसी की कुछ बातें पेश कर रहा हूं।
फैनब्लॉग्स अमेरिका में कॉलेज़ फुटबॉल प्रेमियों का ब्लॉग है। फी़डबर्नर से ही 18361 पाठकों ने इसे सब्सक्राइब कर रखा है। Forbes.com ने इसे किसी एक खेल के प्रति समर्पित सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग करार दिया है। फैनब्लॉग्स को बनानेवाले दो लोगों में से एक केल्विन डोनाह्यू के मुताबिक ब्लॉग अपनी विशिष्टता और जोश-ओ-जुनून के चलते सफल होते हैं। उनका कहना है कि ब्लॉग पर बार-बार आनेवाले पाठक धीरे-धीरे उसे अपना समझने लगते हैं और उससे उनकी एक तरह की वफादारी हो जाती है। कोई उस ब्लॉग पर अगर इधर-उधर की टिप्पणी कर देता है तो वो उससे कायदे से निपटते हैं।
पाठकों की इस वफादारी को पाने के लिए बस ज़रूरी यह है कि आप जिस विषय पर भी लिखें, डूबकर लिखें, उसमें आपकी गहरी दिलचस्पी होनी चाहिए। आप वो लिखें जिसमें आपको वाकई मजा आता हो और लिखने में थोड़ा अपनापन घोलना भी ज़रूरी है। केल्विन कहते हैं कि फैनब्लॉग्स के लगातार बढ़ते जाने की वजह ये है कि कॉलेज फुटबॉल के प्रेमियों में इसका अच्छा-खासा आधार है और ये सभी लोग धीरे-धीरे इस ब्लॉग के समर्पित पाठक बन गए हैं।
ज्यादातर ब्लॉगर मानते हैं कि पाठकों की टिप्पणियों का ब्लॉग की लोकप्रियता में अहम रोल है। चुटीले कार्टूनों के लिए प्रसिद्ध अमेरिकी ब्लॉग Soxaholix के कर्ताधर्ता हार्ट ब्राखेन (टूटा दिल) कहते हैं, “टिप्पणियां करनेवाले ब्लॉग में एक तरह का सामुदायिक पहलू ले आते हैं जो उसके निजी दायरे को व्यापक बना देता है। टिप्पणियों से आपको पता चलता है कि किस चीज़ का असर हो रहा है और किसका नहीं। और, इससे आपको अपना लेखन जारी रखने की प्रेरणा भी मिलती है।” Soxaholix के रोज़ के पाठकों की औसत संख्या 2000 के आसपास है और किसी-किसी दिन यह 12,000 तक भी चली जाती है।
फिल्मों पर बहस से जुडा अमेरिका का एक लोकप्रिय ब्लॉग रहा है MilkPlus ... इसके लेखक डेनियल कस्मैन भी मानते हैं कि टिप्पणियां किसी ब्लॉग में ताज़गी और बहस का माहौल बनाने में मददगार होती हैं। इसी तरह ब्लॉग पब्लिशर Gawker Media के मैनेजिंग एडिटर लॉकहार्ट स्टील कहते हैं कि जब किसी ब्लॉग के नियमित पाठक बन जाते हैं तो उनसे आपको बराबर ऐसी टिप्स और स्टोरीज़ मिलती हैं कि आपका आधा काम बन जाता है। बस आपको उसे पोस्ट में तब्दील भर कर देना होता है।
लेकिन ब्लॉग इस मुकाम तक पहुंचे कि उसे कामयाब बनाने में पाठकों की मदद मिलने लगे, इससे पहले ब्लॉगर को महीनों या सालों तक इंतज़ार करना पड़ता है। उसी के बाद जाकर उसके नियमित पाठक बन पाते हैं। जहां कुछ ब्लॉगरों को यकीन रहता है कि ब्लॉग शुरू करने के चंद दिनों बाद ही वो नियमित टिप्पणी करनेवालों को खींच लेगें, वहीं फैनब्लॉग्स के दूसरे संस्थापक पीट होलि़डे की राय में ऐसा नहीं होता। 1989 की हॉलीवुड फिल्म फील्ड ऑफ ड्रीम्स के एक संवाद को थोड़ा बदलकर वो कहते हैं कि अगर आप दिल से कोई चीज़ बनाते हैं तो लोग ज़रूर उसे देखने आएंगे... धीरे-धीरे।
सवाल उठता है कि इतने सारे ब्लॉगों के बीच अपने ब्लॉग को लोकप्रिय कैसे बनाया जाए? कौन-सी बातें हैं जो किसी ब्लॉग को ब्लॉग के ग्लोब में मची धक्कमधुक्की में अलग पहचान देती हैं? दो साल पहले अमेरिका में तमाम ब्लॉगरों से बात करके इस पर एक रोचक लेख लिखा गया था। उसी की कुछ बातें पेश कर रहा हूं।
फैनब्लॉग्स अमेरिका में कॉलेज़ फुटबॉल प्रेमियों का ब्लॉग है। फी़डबर्नर से ही 18361 पाठकों ने इसे सब्सक्राइब कर रखा है। Forbes.com ने इसे किसी एक खेल के प्रति समर्पित सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग करार दिया है। फैनब्लॉग्स को बनानेवाले दो लोगों में से एक केल्विन डोनाह्यू के मुताबिक ब्लॉग अपनी विशिष्टता और जोश-ओ-जुनून के चलते सफल होते हैं। उनका कहना है कि ब्लॉग पर बार-बार आनेवाले पाठक धीरे-धीरे उसे अपना समझने लगते हैं और उससे उनकी एक तरह की वफादारी हो जाती है। कोई उस ब्लॉग पर अगर इधर-उधर की टिप्पणी कर देता है तो वो उससे कायदे से निपटते हैं।
पाठकों की इस वफादारी को पाने के लिए बस ज़रूरी यह है कि आप जिस विषय पर भी लिखें, डूबकर लिखें, उसमें आपकी गहरी दिलचस्पी होनी चाहिए। आप वो लिखें जिसमें आपको वाकई मजा आता हो और लिखने में थोड़ा अपनापन घोलना भी ज़रूरी है। केल्विन कहते हैं कि फैनब्लॉग्स के लगातार बढ़ते जाने की वजह ये है कि कॉलेज फुटबॉल के प्रेमियों में इसका अच्छा-खासा आधार है और ये सभी लोग धीरे-धीरे इस ब्लॉग के समर्पित पाठक बन गए हैं।
ज्यादातर ब्लॉगर मानते हैं कि पाठकों की टिप्पणियों का ब्लॉग की लोकप्रियता में अहम रोल है। चुटीले कार्टूनों के लिए प्रसिद्ध अमेरिकी ब्लॉग Soxaholix के कर्ताधर्ता हार्ट ब्राखेन (टूटा दिल) कहते हैं, “टिप्पणियां करनेवाले ब्लॉग में एक तरह का सामुदायिक पहलू ले आते हैं जो उसके निजी दायरे को व्यापक बना देता है। टिप्पणियों से आपको पता चलता है कि किस चीज़ का असर हो रहा है और किसका नहीं। और, इससे आपको अपना लेखन जारी रखने की प्रेरणा भी मिलती है।” Soxaholix के रोज़ के पाठकों की औसत संख्या 2000 के आसपास है और किसी-किसी दिन यह 12,000 तक भी चली जाती है।
फिल्मों पर बहस से जुडा अमेरिका का एक लोकप्रिय ब्लॉग रहा है MilkPlus ... इसके लेखक डेनियल कस्मैन भी मानते हैं कि टिप्पणियां किसी ब्लॉग में ताज़गी और बहस का माहौल बनाने में मददगार होती हैं। इसी तरह ब्लॉग पब्लिशर Gawker Media के मैनेजिंग एडिटर लॉकहार्ट स्टील कहते हैं कि जब किसी ब्लॉग के नियमित पाठक बन जाते हैं तो उनसे आपको बराबर ऐसी टिप्स और स्टोरीज़ मिलती हैं कि आपका आधा काम बन जाता है। बस आपको उसे पोस्ट में तब्दील भर कर देना होता है।
लेकिन ब्लॉग इस मुकाम तक पहुंचे कि उसे कामयाब बनाने में पाठकों की मदद मिलने लगे, इससे पहले ब्लॉगर को महीनों या सालों तक इंतज़ार करना पड़ता है। उसी के बाद जाकर उसके नियमित पाठक बन पाते हैं। जहां कुछ ब्लॉगरों को यकीन रहता है कि ब्लॉग शुरू करने के चंद दिनों बाद ही वो नियमित टिप्पणी करनेवालों को खींच लेगें, वहीं फैनब्लॉग्स के दूसरे संस्थापक पीट होलि़डे की राय में ऐसा नहीं होता। 1989 की हॉलीवुड फिल्म फील्ड ऑफ ड्रीम्स के एक संवाद को थोड़ा बदलकर वो कहते हैं कि अगर आप दिल से कोई चीज़ बनाते हैं तो लोग ज़रूर उसे देखने आएंगे... धीरे-धीरे।
Comments
बाकी विद्वान लोग इस पर चर्चा-बहस करते रहेंगे।
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यह मुझे बिल्कुल सही लगता है। ब्लॉग पर पोस्टों से ज्यादा रोचक और आकर्षक तो टिप्पणियां हैं। आप की दक्षता इसी में है कि कैसे आप ऐसी टिप्पणियां खींच पाते हैं।
पाठक वफादार हो न हो, जागरूक जरूर होना चाहिए. वैसे खुब लिखा है.
अंतिम लाईन बहुत ही पते की हैकि "अगर आप दिल से कोई चीज़ बनाते हैं तो लोग ज़रूर उसे देखने आएंगे... धीरे-धीरे"।
प्रमोद जी घूंघट वाला फोटो तो हमहूं देखना चाहूंगा आपका। बस फोटो खींचाने से पहले जरा शेविंग हो जाए तो बढ़िया रहेगा ;)
उड़नतश्तरी, फुरसतिया, अनामदास, ज्ञानदत्त, घुघूतीबासूती, बेजी और खुद आपकी लेखनशैली में यह बात देखने को मिलती है। बतरस, मिठास, दोस्ताना भाव, किस्सागोई, सेंस ऑफ ह्यूमर आदि जैसे तत्व किसी चिट्ठे में मिलते हों तो पाठक उसी प्रकार खींचे चले आते हैं, जैसे चींटियां चीनी की गंध पाकर कतार बांधकर आ जाती हैं।