सुनो भाई! बोलो मत, यहां सब स्वचालित है
तरकश से तीर निकल चुका है। हिंदी चिट्ठाकारों के स्वर्ण कलम 2007 पुरस्कारों के लिए नामांकन का काम पूरा हो गया। दस महिला ब्लॉगरों और दस पुरुष ब्लॉगरों के नाम सामने हैं। दस महिलाओं में से एक रचना जी ने अपना नाम वापस लेने का ऐलान किया है क्योंकि उन्हे लगता है कि ब्लॉगरों को महिला-पुरुष में नहीं बांटा जाना चाहिए और दूसरे, खुद उनकी मां इसमें से एक पुरस्कार की प्रायोजक हैं। खैर, संजय भाई ने उनकी सुन ली और उनका नामांकन हटा लिया। साथ ही उन्होंने किसी भी हमले से खुद को बचाते हुए साफ कर दिया है कि, “हमारे हाथ में कुछ नहीं है, पूरी प्रक्रिया स्वचालित है।”
नामांकित की गई महिला ब्लॉगरों की सूची पर किसी को शायद ऐतराज नहीं हो सकता। लेकिन चिट्ठाकारों ने ही जिन दस पुरुष ब्लॉगरों को नामांकित किया है, उनमें गजब का दिलचस्प विन्यास है। सारथी जी और ज्ञानदत्त जी वरिष्ठ ब्लॉगर हैं। काकेश और पुराणिक व्यंग्यकार हैं। शब्दावली और रेडियोवाणी की अपनी विशेषज्ञता है। ये सभी छह ब्लॉग राजनीतिक रूप से पूरी तरह तटस्थ हैं। वैसे तटस्थता भी एक तरह की राजनीति होती है। बाकी नामांकित किए गए चार ब्लॉगों में भी गजब की समान छटा है। परमेंद्र की महाशक्ति (जो हमसे टकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा), मोहिंदर कुमार के दिल का दर्पण (सिर्फ एक खबर है अनजान सफर है), कमलेश मदान का सुनो भाई साधो (अब तक छप्पन – 2007 में 55 पोस्ट, 2008 में एक) और संजय गुलाटी का ज्योतिष परिचय (संचित कर्म जीवन में मिलने वाले दोराहे हैं)। अभी तक इन चारों ब्लॉगों को मैंने देखा ज़रूर था। लेकिन कभी गौर से पढ़ा नहीं था।
दिलचस्प बात ये है कि ये चारों भी घनघोर अराजनीतिक ब्लॉग हैं। यानी हिंदी ब्लॉगिंग की ‘स्वचालित’ प्रक्रिया भी हमारे टेलिविजन न्यूज़ चैनलों की तरह अराजनीतिक होती जा रही है। मीडिया अध्ययन से जुड़ी संस्था सीएमएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक जहां साल 2005 में न्यूज़ चैनलों ने 23.1 फीसदी समय राजनीतिक खबरों को दिया था, वहीं साल 2007 में यह समय घटकर 10.09 फीसदी रह गया है। लेकिन मीडिया की नाभिनाल तो बाज़ार से जुड़ी हुई है, इसलिए जो बिकता है, उसे वही दिखाने की मजबूरी का निर्वाह करना पड़ता है। मगर, हिंदी ब्लॉगिंग में यह कैसी स्वचालित मजबूरी चल रही है कि हम राजनीति से इतना परहेज करने लगे हैं। या इसके पीछे भी कोई निहित राजनीति है?
नामांकित की गई महिला ब्लॉगरों की सूची पर किसी को शायद ऐतराज नहीं हो सकता। लेकिन चिट्ठाकारों ने ही जिन दस पुरुष ब्लॉगरों को नामांकित किया है, उनमें गजब का दिलचस्प विन्यास है। सारथी जी और ज्ञानदत्त जी वरिष्ठ ब्लॉगर हैं। काकेश और पुराणिक व्यंग्यकार हैं। शब्दावली और रेडियोवाणी की अपनी विशेषज्ञता है। ये सभी छह ब्लॉग राजनीतिक रूप से पूरी तरह तटस्थ हैं। वैसे तटस्थता भी एक तरह की राजनीति होती है। बाकी नामांकित किए गए चार ब्लॉगों में भी गजब की समान छटा है। परमेंद्र की महाशक्ति (जो हमसे टकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा), मोहिंदर कुमार के दिल का दर्पण (सिर्फ एक खबर है अनजान सफर है), कमलेश मदान का सुनो भाई साधो (अब तक छप्पन – 2007 में 55 पोस्ट, 2008 में एक) और संजय गुलाटी का ज्योतिष परिचय (संचित कर्म जीवन में मिलने वाले दोराहे हैं)। अभी तक इन चारों ब्लॉगों को मैंने देखा ज़रूर था। लेकिन कभी गौर से पढ़ा नहीं था।
दिलचस्प बात ये है कि ये चारों भी घनघोर अराजनीतिक ब्लॉग हैं। यानी हिंदी ब्लॉगिंग की ‘स्वचालित’ प्रक्रिया भी हमारे टेलिविजन न्यूज़ चैनलों की तरह अराजनीतिक होती जा रही है। मीडिया अध्ययन से जुड़ी संस्था सीएमएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक जहां साल 2005 में न्यूज़ चैनलों ने 23.1 फीसदी समय राजनीतिक खबरों को दिया था, वहीं साल 2007 में यह समय घटकर 10.09 फीसदी रह गया है। लेकिन मीडिया की नाभिनाल तो बाज़ार से जुड़ी हुई है, इसलिए जो बिकता है, उसे वही दिखाने की मजबूरी का निर्वाह करना पड़ता है। मगर, हिंदी ब्लॉगिंग में यह कैसी स्वचालित मजबूरी चल रही है कि हम राजनीति से इतना परहेज करने लगे हैं। या इसके पीछे भी कोई निहित राजनीति है?
Comments
बहुत ही अच्छे सुझाव आये हैं,सम्मान हेतु. प्रयास यह होना चाहिये कि मतदान का प्रतिशत अधिक से अधिक हो.
वैसे मेरी राय में सारे नामांकित ब्लोग्गरों को सम्मानित किया जाना चाहिये.
नामांकन अच्छे लोगों का है, लेकिन जो नामांकित नहीं है, वो भी क्या कम हैं?
आप अपनी बात के ज़रिये दूसरों को ऐसे मुद्दों के बारे में सोचने पर मजबूर करें जिस पर उन्होंने पहले नहीं सोचा. इससे बढ़कर ब्लागिंग का इनाम क्या होगा?
दीपक भारतदीप
1 मुझे 1 किर्तीश भट्ट को दिलाइये
उन्होंने कार्टून बनाये
मैंने नहीं बनाये.
वरिष्ठों को दे रहे हैं
कोई एतराज़ नहीं
भ्रष्टों को नहीं
इसकी खुशी है.
हम भ्रष्ट भी नहीं
वरिष्ट भी नहीं
हमें सांत्वना ही दे दो.
सांत्वना स्वरुप हौसला
ही दे दो, पर कुछ तो
दे दो, जब दे रहे हो
तो नैनो कार ही दो.
Kyonki jaise King khan सर्व प्रिय actor hain lekin sabse achhe nahi.
Reha sawal Sanjay bhai ke tarkash ka to, hume nahi lagta kuch ghapla hai. Tarkash aakhir unhi me se chunega jinhi baakiyon ne namankit kiya hoga.
Oscar bhi bager lobby ke nahi milta, isliye gile shikve bhula ke sabko badhai dijye.
App bahut achha likhte hain, aise hi achha likhte rahiye. :)
और कहाँ आलोक-अगड़म-बगडम और कहाँ काकेश-कुड़कुड़ ...आप भी ना अच्छी टांग खीचते हैं.:-)