हिंदी ब्लॉगिंग के डीह बाबा, ब्रह्म और करैले
शुरू में ही हाथ जोड़कर विनती है कि बुरा मत मानिएगा। आदत से मजूबर हूं। छोटा था तो साथ के बच्चों को चिकोटी काटने की आदत थी। कभी-कभी आदतन बड़ों को भी चिकोटी काट दिया करता था। एक बार तो बुजुर्ग विधवा अध्यापिका जी को चिकोटी काटने जा ही रहा था कि मां ने ऐसी आंखें तरेरीं कि तर्जनी और अंगूठा एक साथ में मुंह में चले गए। बड़ा हुआ तो ये आदत लोगों को बेवजह छेड़ने में तब्दील हो गई। प्रमोद इसके भुक्तभोगी रहे हैं। बल्कि उन्होंने ही बताया, तब मुझे पता चला कि मैं ऐसा भी करता हूं। अब ब्लॉगर बन गया हूं तो नए सिरे से चिकोटी काटने को मन मचल रहा है। नादान समझकर माफ कर देंगे, ऐसी अपेक्षा है।
तो असली बात पर आया जाए। जो लोग बचपन से लेकर शहरों में पले-बढ़े हैं, उन्हें डीह बाबा, देवी माई का चौरा या बरम (ब्रह्म) देवता की बात नहीं समझ में आएगी। लेकिन गांवों के लोग इन भुतहा ताकतों से अच्छी तरह वाकिफ होंगे। डीह बाबा अक्सर गांव की चौहद्दी पर बिराजते हैं। अगर आप गांव से बाहर कहीं जा रहे हों और गलती से उन्हें नमन करना भूल गए तो वो आपको रास्ता भटका देते हैं। जाना होता है यीरघाट तो आप पहुंच जाते हैं बीरघाट।
देवी भाई के चौरे की भी बड़ी महिमा होती है। खासकर जब दुपहरी गनक रही हो और आप उनके चौरे के पास से गुजरें तो बड़ी सावधानी बरतनी होती है। उनकी शान में आपने कुछ हेठी कर दी तो रास्ते में वो सियार पर सवार होकर आपको डराएंगी। फिर चेचक से लेकर हैजा तक होने ही आशंका रहती है। बरम बाबा तो खैर बेहद खतरनाक होते हैं। इसी श्रेणी में पानी में डूबकर मरे अविवाहित नौजवान भी आते हैं जो बुडुवा कहलाते हैं। इनके निवास स्थान के पास भी नहीं फटकना चाहिए, नहीं तो अनर्थ हो जाता है। और, करैला उन लोगों को कहते हैं जो ज़रा-सा चिढ़ाते ही बिदक जाते हैं।
तो, ब्लॉगिंग करते हुए भी मैं अपनी पुरानी गंवई सतर्कता का पूरा पालन करता हूं। सुबह लिखना पूरा करते ही पहले डीह बाबा की वंदना करके आता हूं। दफ्तर जाने की जल्दी न हुई और इन श्रेणी के ब्लॉगरों ने कुछ लिखा होता है तो ज़रूर उस पर टिप्पणी करता हूं। मेरे लिए हिंदी ब्लॉगिंग के प्रमुख डीह बाबा हैं – ज्ञानदत्त पांडे, संजय बेंगाणी, फुरसतिया, जीतू, मसिजीवी, समीरलाल, सागरचंद नाहर, नुक्ताचीनी वाले देवाशीष। अगर गलती से इनके लिखे पर टिप्पणी न कर पाया तो दिन भर मुझे डर सताता रहता है कि आज ज़रूर मेरे साथ कुछ ऊंच-नीच हो सकती है। इसी श्रेणी में कुछ गुरु टाइप ब्लॉगर जैसे रवि रतलामी, ई-पंडित, सृजन शिल्पी, स्वप्नदर्शी, काकेश वगैरह भी आते हैं। लेकिन इनसे मुझे कोई भय नहीं लगता। पहले मैं शास्त्री जी को भी डीह बाबा मानता था, लेकिन अब उनसे भयमुक्त हो गया हूं।
अब ब्लॉगरों की सबसे खतरनाक बरम बाबा वाली श्रेणी, जिनसे पास भी फटकने से मैं बचता हूं। इनमें से कुछ लोगों की खासियत है कि वे लोग दिन भर में किलो-किलो लिखते हैं और कुछ दूसरी वजहों से आतंकित करते हैं। पीपीएन, भड़ास, अविनाश वाचस्पति, पंकज अवधिया, अफलातून, अरुण पंगेबाज, जनमत, दखल की दुनिया आदि-इत्यादि के लिखे से मैं भयभीत रहता हूं। इंकलाब वाले सत्येंद्र भी इतनी लंबी पोस्ट लिखते हैं कि उन्हें भी मैं बरम बाबा की श्रेणी में रखता हूं। ऐसे कुछ और भी हैं जिनके ब्लॉग पर जाकर मैं घबरा जाता हूं और दोबारा वहां जाने की हिम्मत नहीं पड़ती।
अब ब्लॉगिंग के करैलों की बात। इस श्रेणी में तीन खास नाम हैं जिनके नाम मैं नहीं लेना चाहता हूं क्योंकि वे अभी इसी वक्त भड़क सकते हैं। इनमें से एक पोंगापंथी हैं और दो अलग-अलग छोर की अतिवादी विचारधारा के हैं। वैसे तो मैं भरसक बचता हूं। लेकिन यदा-कदा इन्हें छेड़ने से खुद को रोक नहीं पाता। मेरी इस हरकत पर कुछ लोग मजे भी लेते हैं। जैसे दिल्ली के मेरे एक टीवी पत्रकार मित्र एक शाम थोड़ा तरन्नुम में थे तो इनमें से एक ब्लॉगर को चिह्नित करते हुए फोन पर बोले, “मैं तो कल्पना करता हूं कि उसकी पोस्ट आगे-आगे भागी जा रही है और उसके ठीक पीछे आपकी पोस्ट उसे दौड़ा-दौड़ा कर रपेट रही है।” ब्लॉगिंग में ऐसे चिढ़कू करैले और भी होंगे, लेकिन उनसे मेरा पाला अभी तक नहीं पड़ा है।
आखिर में देवी मैया के चौरे की बात। तो साफ कर दूं कि मैं बचपन से ही देवी-भक्त हूं। इसलिए उनके खिलाफ कुछ भी कहना ठीक नहीं समझता। हां, इतना बता दूं कि अनीता जी, घुघुती बासूती, बेजी, प्रत्यक्षा, मीनाक्षी जैसी कई ब्लॉगर हैं जिनके लिखे पर मैं टिप्पणी करने की भरसक कोशिश करता हूं। लेकिन कभी-कभी क्या लिखूं, समझ में नहीं आता तो खाली पढ़कर लौट आता हूं।
अंत में बस इतना कि कहा-सुना माफ। भूल-चूक लेनी-देनी।
तो असली बात पर आया जाए। जो लोग बचपन से लेकर शहरों में पले-बढ़े हैं, उन्हें डीह बाबा, देवी माई का चौरा या बरम (ब्रह्म) देवता की बात नहीं समझ में आएगी। लेकिन गांवों के लोग इन भुतहा ताकतों से अच्छी तरह वाकिफ होंगे। डीह बाबा अक्सर गांव की चौहद्दी पर बिराजते हैं। अगर आप गांव से बाहर कहीं जा रहे हों और गलती से उन्हें नमन करना भूल गए तो वो आपको रास्ता भटका देते हैं। जाना होता है यीरघाट तो आप पहुंच जाते हैं बीरघाट।
देवी भाई के चौरे की भी बड़ी महिमा होती है। खासकर जब दुपहरी गनक रही हो और आप उनके चौरे के पास से गुजरें तो बड़ी सावधानी बरतनी होती है। उनकी शान में आपने कुछ हेठी कर दी तो रास्ते में वो सियार पर सवार होकर आपको डराएंगी। फिर चेचक से लेकर हैजा तक होने ही आशंका रहती है। बरम बाबा तो खैर बेहद खतरनाक होते हैं। इसी श्रेणी में पानी में डूबकर मरे अविवाहित नौजवान भी आते हैं जो बुडुवा कहलाते हैं। इनके निवास स्थान के पास भी नहीं फटकना चाहिए, नहीं तो अनर्थ हो जाता है। और, करैला उन लोगों को कहते हैं जो ज़रा-सा चिढ़ाते ही बिदक जाते हैं।
तो, ब्लॉगिंग करते हुए भी मैं अपनी पुरानी गंवई सतर्कता का पूरा पालन करता हूं। सुबह लिखना पूरा करते ही पहले डीह बाबा की वंदना करके आता हूं। दफ्तर जाने की जल्दी न हुई और इन श्रेणी के ब्लॉगरों ने कुछ लिखा होता है तो ज़रूर उस पर टिप्पणी करता हूं। मेरे लिए हिंदी ब्लॉगिंग के प्रमुख डीह बाबा हैं – ज्ञानदत्त पांडे, संजय बेंगाणी, फुरसतिया, जीतू, मसिजीवी, समीरलाल, सागरचंद नाहर, नुक्ताचीनी वाले देवाशीष। अगर गलती से इनके लिखे पर टिप्पणी न कर पाया तो दिन भर मुझे डर सताता रहता है कि आज ज़रूर मेरे साथ कुछ ऊंच-नीच हो सकती है। इसी श्रेणी में कुछ गुरु टाइप ब्लॉगर जैसे रवि रतलामी, ई-पंडित, सृजन शिल्पी, स्वप्नदर्शी, काकेश वगैरह भी आते हैं। लेकिन इनसे मुझे कोई भय नहीं लगता। पहले मैं शास्त्री जी को भी डीह बाबा मानता था, लेकिन अब उनसे भयमुक्त हो गया हूं।
अब ब्लॉगरों की सबसे खतरनाक बरम बाबा वाली श्रेणी, जिनसे पास भी फटकने से मैं बचता हूं। इनमें से कुछ लोगों की खासियत है कि वे लोग दिन भर में किलो-किलो लिखते हैं और कुछ दूसरी वजहों से आतंकित करते हैं। पीपीएन, भड़ास, अविनाश वाचस्पति, पंकज अवधिया, अफलातून, अरुण पंगेबाज, जनमत, दखल की दुनिया आदि-इत्यादि के लिखे से मैं भयभीत रहता हूं। इंकलाब वाले सत्येंद्र भी इतनी लंबी पोस्ट लिखते हैं कि उन्हें भी मैं बरम बाबा की श्रेणी में रखता हूं। ऐसे कुछ और भी हैं जिनके ब्लॉग पर जाकर मैं घबरा जाता हूं और दोबारा वहां जाने की हिम्मत नहीं पड़ती।
अब ब्लॉगिंग के करैलों की बात। इस श्रेणी में तीन खास नाम हैं जिनके नाम मैं नहीं लेना चाहता हूं क्योंकि वे अभी इसी वक्त भड़क सकते हैं। इनमें से एक पोंगापंथी हैं और दो अलग-अलग छोर की अतिवादी विचारधारा के हैं। वैसे तो मैं भरसक बचता हूं। लेकिन यदा-कदा इन्हें छेड़ने से खुद को रोक नहीं पाता। मेरी इस हरकत पर कुछ लोग मजे भी लेते हैं। जैसे दिल्ली के मेरे एक टीवी पत्रकार मित्र एक शाम थोड़ा तरन्नुम में थे तो इनमें से एक ब्लॉगर को चिह्नित करते हुए फोन पर बोले, “मैं तो कल्पना करता हूं कि उसकी पोस्ट आगे-आगे भागी जा रही है और उसके ठीक पीछे आपकी पोस्ट उसे दौड़ा-दौड़ा कर रपेट रही है।” ब्लॉगिंग में ऐसे चिढ़कू करैले और भी होंगे, लेकिन उनसे मेरा पाला अभी तक नहीं पड़ा है।
आखिर में देवी मैया के चौरे की बात। तो साफ कर दूं कि मैं बचपन से ही देवी-भक्त हूं। इसलिए उनके खिलाफ कुछ भी कहना ठीक नहीं समझता। हां, इतना बता दूं कि अनीता जी, घुघुती बासूती, बेजी, प्रत्यक्षा, मीनाक्षी जैसी कई ब्लॉगर हैं जिनके लिखे पर मैं टिप्पणी करने की भरसक कोशिश करता हूं। लेकिन कभी-कभी क्या लिखूं, समझ में नहीं आता तो खाली पढ़कर लौट आता हूं।
अंत में बस इतना कि कहा-सुना माफ। भूल-चूक लेनी-देनी।
Comments
हास्य व्यंग्य भी खुब कर लेते है. सुबह सवेरे स्मीत लाने के लिए धन्यवाद.
मुझे तो करैलों के नाम जानने की उत्सुकता हो रही है।
चिकोटी शानदार काटते हो आप!
घुघूती बासूती
आपने दीह बाबा ,बरम बाबा और सभी देवियों का लगाया चक्कर, और हमने बस छू लिया आपका ब्लोग. हो गयी न गणेश परिक्रमा ?
बढिया है, अनील बाबू...
बढ़िया रही यह पोस्ट।
Anyway ha ha ha,
Thanks for making us laugh.
हमारा तो बडा नुक्सान हो गया अनिल. अब हम तुमको कैसे डरायेंगे धमकायेंगे? हमारी दक्षिणा भी शायद अब न दो!!
मुश्किल बडा अब यहाँ से जाना हुआ
अब तो बार बार बारम्बार आना होगा
आपकी भाषा...आपकी शैली का कायल हो गया हूँ एक ही पोस्ट से
धन्यवाद भाई साहब।