Saturday 7 July, 2007

मतीन बन गया जतिन

जतिन गांधी का न तो गांधी से कोई ताल्लुक है और न ही गुजरात से। वह तो कोलकाता के मशहूर सितारवादक उस्ताद अली मोहम्मद शेख का सबसे छोटा बेटा मतीन मोहम्मद शेख है। अभी कुछ ही दिनों पहले उसने अपना धर्म बदला है। फिर नाम तो बदलना ही था। ये सारा कुछ उसने किसी के कहने पर नहीं, बल्कि अपनी मर्जी से किया है। नाम जतिन रख लिया। उपनाम की समस्या थी तो उसे इंदिरा नेहरू और फिरोज खान की शादी का किस्सा याद आया तो गांधी उपनाम रखना काफी मुनासिब लगा। वैसे, इसी दौरान उसे ये चौंकानेवाली बात भी पता लगी कि इंदिरा गांधी के बाबा मोतीलाल नेहरू के पिता मुसलमान थे, जिनका असली नाम ग़ियासुद्दीन गाज़ी था और उन्होंने ब्रिटिश सेना से बचने के लिए अपना नाम गंगाधर रख लिया था।
वैसे, आपको बता दें कि मतीन के लिए धर्म बदलना कोई बहुत ज्यादा सोचा-समझा फैसला नहीं था। यह एक तरह के झोंक में आकर उठाया गया अवसरवादी कदम था। हां, इतना जरूर है कि वह अपनी पहचान को लेकर लंबे अरसे से परेशान रहा करता था। वह सोचता - ये भी कोई बात हुई कि पेशा ही उसकी पहचान है। एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर। इत्ती-सी पहचान उसके लिए काफी तंग पड़ती थी। हिंदुस्तानी होने की पहचान जरूर है। लेकिन हिंदुस्तानी तो एक अरब दस करोड़ लोग हैं। वह उनसे अलग कैसे है? ऐसा नहीं है कि उसे अपने हिंदुस्तानी होने पर नाज़ नहीं है। वह आंखें बंदकर के देखता तो उसके शरीर में छत्तीसगढ़ के पठार, झारखंड के जंगल, उत्तराखंड की पर्वत श्रृंखलाएं और पश्चिम बंगाल का सुंदरवन लहराते लगता, उसकी धमनियों में वेस्टर्न घाट के झरने बहते लगते। मगर, आंखें खोलने पर वह खुद को एकदम रीता, ठन-ठन गोपाल महसूस करता। यह उसके अंदर की सतत बेचैनी थी, जिसे लेकर वह उधेड़बुन में लगा रहता, उसी तरह जैसे मध्यकाल में या उससे पहले कोई योगी या संत अपने स्व को, अहम् को लेकर परेशान रहा करता होगा।
लेकिन उसे झटका तब लगा, जब वह लंदन से तीन महीने की छुट्टी लेकर घर आ रहा था। उसके फ्लाइट पकड़ने के दो दिन पहले ग्लासगो में धमाके हो गए और उसकी चमड़ी का रंग, उसके चेहरे की दाढ़ी और उसका मुस्लिम नाम उसके लिए मुसीबत का सबब बन गया। मतीन को हीथ्रो एयरपोर्ट पर चेक-इन से पहले ही ब्रिटिश पुलिस ने शक के आधार पर हिरासत में ले लिया। फिर तो हर तरफ खबर चल गई कि मतीन मोहम्मद शेख कट्टर आतंकवादी है।
उधर, कोलकाता में मां परेशान थी। बाप परेशान था। मदरसे के मौलवी परेशान थे। कॉलेज के गुरु परेशान थे। पड़ोसी और दोस्त भी हैरान थे कि शांत, मितभाषी, पढ़ाकू और औसत से काफी तेज दिमाग वाला मतीन आंतकवादी कैसे हो सकता है। वह सदाचार, शिष्टाचार और जीवन में नैतिकता का कायल था, लेकिन, मौलवी साहब भी बताते हैं कि, वह कट्टर धार्मिक कभी नहीं रहा, बल्कि वह तो जब से साइंस और गणित की पढ़ाई कर रहा था, तभी से धार्मिक मान्यताओं पर सवाल उठाता रहा था। फिर, जब वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया, तब तो उसने हर दिन नमाज पढ़ना भी छोड़ दिया। बस, मन किया तो जुमे के दिन खानापूरी कर दी, वरना वो भी नहीं।
लंदन में हुआ यह कि ब्रिटिश पुलिस ने मतीन मोहम्मद शेख का पासपोर्ट जब्त कर लिया। तेरह दिन तक पूछताछ की। आखिरकार उसकी कंपनी और भारतीय उच्चायोग की ढेर सारी गुजारिशों और सफाइयों के बाद उसे छोड़ा गया। लेकिन भारत में कदम रखने पर भी मतीन की मुश्किलें कम नहीं हुईं। मुंबई एयरपोर्ट से बाहर निकला तो यहां भी उसकी दाढ़ी उसके लिए नयी सांसत लेकर आ गई। टैक्सीवाले से जरा-सी कहासुनी हो रही थी कि पुलिस ने उसे धर दबोचा। दादर थाने ले गई। दस बजे से लेकर शाम चार बजे तक हवालात में बंद रखा। वो तो दिल्ली से अब्बू के मिनिस्टर दोस्त का फोन आया, तब जाकर उसे छोड़ा गया। नहीं तो वह मुंबई के एंटी टेररिस्ट स्क्वैड के लिए लोकल ट्रेन में धमाकों का एक और अभियुक्त बन ही चुका था।
इस तरह होते-हवाते वह कोलकाता पहुंचा तो हफ्ते दस दिन तक सदमे में रहा। बस, खाता-पीता और आई-पॉड पर गाने सुनता। शहर से बाहर गारुलिया कस्बे के पास भागीरथी नदी से किनारे उसकी तीन मंजिला पुश्तैनी कोठी थी। उसने कोठी के सबसे ऊपर के कमरे में खुद को कैद कर लिया। कभी-कभी देर रात तक खुली छत पर टहलता रहता। अम्मी बड़ी परेशान हो गईं तो उसने उन्हें समझा दिया कि अब सब ठीक हो चुका है। नौकरी की थकान बची है, वह भी उतर जाएगी। लेकिन सदमे से निकलते ही उस पर हिंदू बनने का भूत सवार हो गया और एक दिन वह इसी मसले को लेकर अपने अब्बू से भिड़ गया। जारी...

5 comments:

Sanjeet Tripathi said...

सही!!
ऐसे आतंक के माहौल में एक मुस्लिम होने का दर्द!! जो भुगत रहा होगा वही समझ सकता है!!

Gyan Dutt Pandey said...

भैया यह हिन्दू होने का दर्द/मुसलमान होने का दर्द देखने में तो वही सुबुक-सुबुक वादी गाथा चालू हो जायेगी. असल तो भारत ताकतवर होना चाहिये. देश में दम होगा तो कोई भी समृद्ध देश वाला हमारे नागरिक की ऐसी नंगाझोरी नहीं कर पायेगा.

आर्थिक तरक्की और धर्म को तरक्की में दखलन्दाजी न करने देना - यह जरूरी है बनिस्पत हिन्दू/मुसलमान को लेकर सेण्टीमेण्टल होने के.

Anonymous said...

बहूत खूब इन्तेजार रहेगा अगलि कडि का अनिल जी
काश आप जैसी सोच हर हिन्दु और मुस्लमान और अन्य ध्रम वालो कि हो
आमीन

मैथिली गुप्त said...

अनिल जी; इस कथा की सारी किश्तें आज ही पोस्ट कर देते तो बहुत अच्छा होता!
सात-सात-सात, कहां-कोई-साथ की किश्त के लिये सोमवार तक प्रतीक्षा मत कराईयेगा

Udan Tashtari said...

बढिया!!