याकूब को सज़ा-ए-मौत : अच्छा नहीं लगा


आज याकूब को जज प्रमोद कोडे ने जब फांसी की सज़ा सुनाई तो वह एक बार फिर बिफर पड़ा। वह पूरा फैसला सुने बगैर ही चिल्लाने लगा, ‘हे परवरदिगार इस बंदे को माफ कर देना क्योंकि ये नहीं जानता कि ये क्या कर रहा है। मैं इस अदालत में अब एक मिनट भी नहीं रह सकता।’ ये कहते हुए याकूब कोर्ट से बाहर निकल गया। पुलिस वालों ने उसे किसी तरह संभाला। अब उसे पुणे की यरवदा जेल ले जाया जाएगा और इससे पहले उसे अपने बचे-खुचे रिश्तेदारों से भी मिलने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
धमाकों की मुख्य साजिश रचनेवाले टाइगर मेमन और अयूब मेमन फरार है, जबकि यूसुफ मेमन, ईशा मेमन और रुबीना मेमन को उम्रकैद की सज़ा दी गई है। याकूब ने पिछले साल सितंबर में दोषी करार दिए जाने के बावजूद कहा था कि उसे कानून पर पूरा भरोसा है और इसमें देर है पर अंधेर नहीं है। लेकिन अब उसका कानून से पूरा भरोसा उठ गया है। उसे लगता है कि कानून दो आंख कर रहा है क्योंकि उसी के बराबर इल्जाम वाले उसके सहयोगी मूलचंद शाह को इसी टाडा कोर्ट ने फांसी की नहीं, उम्रकैद की सज़ा सुनाई है।

कुछ लोग कह सकते हैं कि याकूब मेमन चालाक है और वह जान-बूझकर ईसामसीह जैसी बातें बोल रहा है। लेकिन हम सभी को जरूर सोचना चाहिए, जिस देश में दंगों को लेकर बराबर क्रिया-प्रतिक्रिया की बात की जाती है, उस देश में 1992 के मुंबई दंगों की प्रतिक्रिया में किए गए सीरियल बम धमाकों के दोषियों को तो सज़ा दी जा रही है, लेकिन इन दंगों में हज़ार से ज्यादा लोगों को बेरहमी से मौत के घाट उतारने वालों के खिलाफ अभी तक कार्रवाई की ही बात की जा रही है, जबकि श्रीकृष्णा आयोग नौ साल पहले ही पूरी जांच के बाद सारा सच सामने ला चुका है।
शायद याकूब को मिली मौत की सज़ा पर मुझे इसलिए भी दुख हो रहा होगा क्योंकि उसकी और मेरी दोनों की उम्र 45 साल की है और दोनों ही दिमाग से ज्यादा दिल से सोचते हैं। फिर भी हमारे कानून की दो आंखें हैं, शायद इस बात से आप भी नहीं इनकार कर पाएंगे।
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