घोषणाएं लुभाती हैं, सच रुलाता है
जो जानते हैं, वो रो रहे हैं और जो अनजान हैं, वो तालियां बजा रहे हैं। चिदंबरम के बजट में घोषित किसानों की कर्ज़माफी पर शहरी लोग वाह-वाह कर रहे हैं, लेकिन विदर्भ के जिन किसानों के नाम पर यह कदम उठाया गया है, वो आज भी आह-आह कर रहे हैं। कैसी विडंबना है!! लालू तो विदूषक हैं, इसलिए उन पर हंसी नहीं आती तो गुस्सा भी नहीं आता। गुस्सा तो शरद पवार पर आता है जो हकीकत जानते हुए भी 60,000 करोड़ रुपए की कर्ज़माफी को ऐतिहासिक कदम बता रहे हैं। शरद पवार को सब इसीलिए नहीं पता है कि वे कृषि मंत्री हैं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि वे खुद महाराष्ट्र के हैं।
चिंदबरम ने ऐलान किया है कि 5 एकड़ तक की जोत वाले सभी किसानों के किसी भी तरह के बैंक से लिए 31 दिसंबर 2007 तक के कर्ज ब्याज समेत माफ किए जा रहे हैं, जबकि 5 एकड़ से ज्यादा जोत वाले किसानों के लिए 75 फीसदी कर्ज चुकाने देने पर बाकी 25 फीसदी कर्ज माफ कर दिया जाएगा। इस योजना से 5 एकड तक के लाभ पाने वाले किसानों की संख्या तीन करोड़ है, जबकि एक चौथाई कर्जमाफी का लाभ एक करोड़ किसानों को मिलेगा।
पहली श्रेणी के किसानों को 50,000 करोड़ और दूसरी श्रेणी के किसानों को 10,000 करोड़ रुपए की कर्ज़माफी केंद्र सरकार दे रही है। कृषि मंत्री कहते हैं कि देश के 76 फीसदी किसानों की जोत दो हेक्टेयर (पांच एकड़) से कम है और बाकी किसानों की संख्या 24 फीसदी है। इस तरह 76 फीसदी किसानों की पूरी कर्ज़माफी और बाकी 24 फीसदी किसानों की एक चौथाई कर्ज़माफी जैसा ऐतिहासिक कदम आज़ादी के बाद किसी भी सरकार ने पहली बार उठाया है।
लेकिन इस ऐतिहासिक घोषणा की चकाचौंध के पीछे का सच यह है कि विदर्भ के खुदकुशी कर रहे किसानों के नाम पर उठाए गए इस कदम का लाभ विदर्भ के किसानों को ही नहीं मिल रहा। कारण नंबर एक, विदर्भ के अधिकांश किसानों के पास पांच एकड़ से ज्यादा ज़मीन है। कारण नंबर दो, विदर्भ के आधे से ज्यादा किसानों ने किसी बैंक से नहीं, बल्कि स्थानीय सूदखोरों से भारी ब्याज़ पर कर्ज ले रखा है, जिन सूदखोरों में कांग्रेस के कुछ नेता भी शामिल हैं।
महाराष्ट्र के कुल 89 लाख किसानों को चिदंबरम की आज की घोषणा का लाभ मिलेगा, जिसमें से केवल नौ लाख किसान ही विदर्भ के हैं। जानकार बताते हैं कि विदर्भ एक वर्षा-आधारित इलाका है और वहां के किसानों की समस्या महज बैंकों के कर्ज़ की माफी से नहीं हल होगी। खुद वित्त मंत्री ने किसानों की कर्ज़माफी की समस्या पर बनी जिस राधाकृष्णन समिति की रिपोर्ट का जिक्र किया था, उसमें कहा गया है कि किसानों को सूदखोरों के चंगुल से निकालने के लिए बैंकों को ‘one time relief’ के तहत किसानों को लंबी अवधि का कर्ज़ देना चाहिए जिसके लिए अलग से ‘Money Lenders Debt Redemption Fund’ बनाना चाहिए जिसकी शुरुआती राशि 100 करोड़ रुपए की होनी चाहिए।
चिदंबरम ने ऐसा कुछ नहीं किया। बस तालियां बजवाने के लिए 60,000 करोड़ रुपए लुटाने की घोषणा कर दी। सवाल यह भी उठता है कि ये 60,000 करोड़ रुपए आएंगे कहां से? अगर यह राशि बैंकों के ही माथे पर मढ़ दी गई तो बैंकों की सारी बैलेंस शीट खराब हो जाएगी और अगर सरकारी खज़ाने से बैंकों के इस कर्ज़ की भरपाई की गई तो यह तो जनता से लिया गया पैसा बैकों की झोली में डालने जैसी बात होगी। आगे की बात विद्वान जानें। मैंने तो एक आम हिंदुस्तानी के नाते अपनी बात रख दी। आप ज्यादा कुछ जानते हों, तो ज़रूर बताएं ताकि मेरे साथ औरों का भी ज्ञानवर्धन हो सके। इति।
फोटो साभार: आउटलुक
चिंदबरम ने ऐलान किया है कि 5 एकड़ तक की जोत वाले सभी किसानों के किसी भी तरह के बैंक से लिए 31 दिसंबर 2007 तक के कर्ज ब्याज समेत माफ किए जा रहे हैं, जबकि 5 एकड़ से ज्यादा जोत वाले किसानों के लिए 75 फीसदी कर्ज चुकाने देने पर बाकी 25 फीसदी कर्ज माफ कर दिया जाएगा। इस योजना से 5 एकड तक के लाभ पाने वाले किसानों की संख्या तीन करोड़ है, जबकि एक चौथाई कर्जमाफी का लाभ एक करोड़ किसानों को मिलेगा।
सच यह है कि विदर्भ के खुदकुशी कर रहे किसानों के नाम पर उठाए गए इस कदम का लाभ विदर्भ के किसानों को ही नहीं मिल रहा क्योंकि विदर्भ के अधिकांश किसानों के पास पांच एकड़ से ज्यादा ज़मीन है। दूसरे, विदर्भ के आधे से ज्यादा किसानों ने किसी बैंक से नहीं, बल्कि स्थानीय सूदखोरों से कर्ज ले रखा है।
पहली श्रेणी के किसानों को 50,000 करोड़ और दूसरी श्रेणी के किसानों को 10,000 करोड़ रुपए की कर्ज़माफी केंद्र सरकार दे रही है। कृषि मंत्री कहते हैं कि देश के 76 फीसदी किसानों की जोत दो हेक्टेयर (पांच एकड़) से कम है और बाकी किसानों की संख्या 24 फीसदी है। इस तरह 76 फीसदी किसानों की पूरी कर्ज़माफी और बाकी 24 फीसदी किसानों की एक चौथाई कर्ज़माफी जैसा ऐतिहासिक कदम आज़ादी के बाद किसी भी सरकार ने पहली बार उठाया है।
लेकिन इस ऐतिहासिक घोषणा की चकाचौंध के पीछे का सच यह है कि विदर्भ के खुदकुशी कर रहे किसानों के नाम पर उठाए गए इस कदम का लाभ विदर्भ के किसानों को ही नहीं मिल रहा। कारण नंबर एक, विदर्भ के अधिकांश किसानों के पास पांच एकड़ से ज्यादा ज़मीन है। कारण नंबर दो, विदर्भ के आधे से ज्यादा किसानों ने किसी बैंक से नहीं, बल्कि स्थानीय सूदखोरों से भारी ब्याज़ पर कर्ज ले रखा है, जिन सूदखोरों में कांग्रेस के कुछ नेता भी शामिल हैं।
महाराष्ट्र के कुल 89 लाख किसानों को चिदंबरम की आज की घोषणा का लाभ मिलेगा, जिसमें से केवल नौ लाख किसान ही विदर्भ के हैं। जानकार बताते हैं कि विदर्भ एक वर्षा-आधारित इलाका है और वहां के किसानों की समस्या महज बैंकों के कर्ज़ की माफी से नहीं हल होगी। खुद वित्त मंत्री ने किसानों की कर्ज़माफी की समस्या पर बनी जिस राधाकृष्णन समिति की रिपोर्ट का जिक्र किया था, उसमें कहा गया है कि किसानों को सूदखोरों के चंगुल से निकालने के लिए बैंकों को ‘one time relief’ के तहत किसानों को लंबी अवधि का कर्ज़ देना चाहिए जिसके लिए अलग से ‘Money Lenders Debt Redemption Fund’ बनाना चाहिए जिसकी शुरुआती राशि 100 करोड़ रुपए की होनी चाहिए।
चिदंबरम ने ऐसा कुछ नहीं किया। बस तालियां बजवाने के लिए 60,000 करोड़ रुपए लुटाने की घोषणा कर दी। सवाल यह भी उठता है कि ये 60,000 करोड़ रुपए आएंगे कहां से? अगर यह राशि बैंकों के ही माथे पर मढ़ दी गई तो बैंकों की सारी बैलेंस शीट खराब हो जाएगी और अगर सरकारी खज़ाने से बैंकों के इस कर्ज़ की भरपाई की गई तो यह तो जनता से लिया गया पैसा बैकों की झोली में डालने जैसी बात होगी। आगे की बात विद्वान जानें। मैंने तो एक आम हिंदुस्तानी के नाते अपनी बात रख दी। आप ज्यादा कुछ जानते हों, तो ज़रूर बताएं ताकि मेरे साथ औरों का भी ज्ञानवर्धन हो सके। इति।
फोटो साभार: आउटलुक
Comments
मीडिया की दुर्दशा है और कुछ नहीं. अब तो वह शुद्ध पीआर की तरह व्यवहार करने लगी है. क्रिटिकल होना स्वभाव में ही नहीं रहा.
AAp ko pura hak hai ki aap kisi ko bhi mail bheje, lekin itana absolute faisala dene ka huk kisane diya aapko, ki blog bhadas nikalane ka munch nahi hai, aur aakhir aabhi kyo? Itane din se so rahe the, jab bina matlab ki baate kudedan, thook daan, pikdaan, naabdan, gali, muhalla, veshyalay har jagah chhap raha thaa. Kyo kisi ko bura lag gaya agar usaka naam agar kisi hizare se milta hai. Aur waise wo bhi manusya hi hote hai, jab naari aur purush ki baate itani ho sakti hai to unaki kyo nahi?
Behtar hoga agar yeh Budhhik vayabhichar band kar diya jaae.
Blog Takes Failed Marriage Into Fight Over Free Speech
Khair Chhote me baat yeh hai ki agar aap suchita ke itane bade samrthak hai to apana danda har jagah chalaiye, nahi to kahi nahi.
Manisha ji aur yashwant ji free hai court jaane ke liye (Kam se kam mohalla par aaj ke tippani ke baad to jaroor jana chahiye).
Rahi baat Mai agar US me rahta hu To NYT me chhape news padhu, to bhai saheb mere RSS feed par jo bhi news aate hai agar mai unako padhane baithu to din beet jaaye news na khatam ho, to ye meri ichchha hai ki mai NYT padhu, WT padhu ya dainik jagran padhu, mai chahe kuchh bhi padhu lekin mujhe aapane dimag pe pura bharosha to hai hi ki mere liye kya theek hai uska faisala mai khud karu.
Ek aur Baat Agar aapne Praveen Sharma Ji likhane ke jagah Praveen likha hota to behtar hota (yeh baat koi political correctness ke liye nahi likhi gayee hai).
Ant me agar koi vyaktigat kasht huaa ho to chhama prarthi hoon, lekin aasha karta hu vaicharik baato kaa bura nahi maanenge(Maine purana comment aapane aap ko kuchh siddhh karane ke liye nahi likha hai).
रही बात आपकी बात पर किसी तरह की नाराज़गी की, तो इसका रंचमात्र भी सवाल नहीं उठता। आप जैसे साफगोई बरतनेवाले दोस्तों से तो ऊर्जा मिलती है, छूट गए पहलू पर नज़र पड़ती है। वैसे, क्या मैं आपको वाकई इतना असहिष्णु लगता हूं?
Aapka
Praveen
हो सकता है कि कर्जमाफी की यह घोषणा जिन किसानों को अपने लिए तात्कालिक राहत की बात लगे, वे कुछ समय के लिए हालात सुधरने की आस में आत्महत्या की विवशता को कुछ समय के लिए टाल दें। मगर, सरकार और बाजार ने ऐसा माहौल बना दिया है कि किसानों के पास सीमित विकल्प ही बच रहे हैं। या तो वे इसी तरह एक-एक करके आत्महत्याओं के सिलसिले को लाखों-करोड़ों के आंकड़ों में तब्दील करते रहें, या फिर एक साथ लाखों-करोड़ों की तादाद में सरकार पर टूट पड़े और पुलिस की गोलियां खाकर शहीद हो जाए।
जनता द्वारा चुकाए गए कर राजस्व से साठ हजार करोड़ रुपये किसानों की कर्जमाफी के नाम पर बैंकों के हवाले करके कांग्रेस पार्टी अपनी दरियादिली का ढिंढोरा पीटकर यदि सत्ता में वापसी के ख्वाब बुन रही है, तो उसे अगले चुनाव में उन ख्वाबों का हश्र देखने के लिए तैयार रहना चाहिए। किसानों के सिर से ऋणों का बोझ बांटने के लिए देश की करदाता जनता का पैसा जा रहा है और कांग्रेस पार्टी ऐसे प्रचार कर रही है मानो मैडम सोनिया गांधी ने किसानों की बदहाली पर पसीज कर अपनी पुरखों की तिजोरी खोल दी हो।