
नए वित्त वर्ष 2008-09 में लालू ने भारतीय रेल की 37,500 करोड़ रुपए की सालाना योजना में से 7874 करोड़ रुपए (योजना खर्च का 21 फीसदी) बजट समर्थन से जुटाने का प्रावधान रखा है। इससे पहले साल 2007-08 में 31,000 करोड़ के योजना खर्च का 24.55 फीसदी हिस्सा (7611 करोड़ रुपए) बजट समर्थन से जुटाया गया था। लालू ने अपने पहले 2004-05 के के रेल बजट में सालाना योजना व्यय का 55 फीसदी हिस्सा बजटीय समर्थन से जुटाया था। साल 2005-06 में यह हिस्सा 47 फीसदी और साल 2006-07 में 32 फीसदी था। बड़ा वाजिब-सा सवाल है कि जिस रेल ने चार सालों में 68,778 करोड़ रुपए का लाभांश पूर्व कैश सरप्लस कमाया है, वह अपने सालाना खर्च का पूरा इंतज़ाम खुद क्यों नहीं कर ले रही?
जानकार लोग इसका जवाब यूं देते हैं कि इन चार सालों में रेल ने केंद्र सरकार को 15,898 करोड़ रुपए का लाभांश भी दिया है। साल 2007 में अगर उसने केंद्र सरकार से 7611 करोड़ रुपए लिए हैं तो उसे 4500 करोड़ से ज्यादा का लाभांश भी दिया है। नए साल 2008-09 में वह अगर सरकार से 7874 करोड़ रुपए लेगी तो उसे 4636 करोड रुपए लाभांश के तौर पर लौटाएगी भी। यह वैधानिक इंतज़ाम जैसा है जिसमें भारतीय रेल केंद्र सरकार से पैसे लेती है और उसे सालाना 7 फीसदी की दर से ब्याज़ देती है। लेकिन लाभांश तो वह पैसा है जो 100 फीसदी इक्विटी के एवज़ में भारतीय रेल को अपनी मालिक भारत सरकार को देना ही है। फिर वह उसी से उधार क्यों लिए जा रही है? हमारे लालूजी शायद इसका जवाब नहीं देना मुनासिब नहीं समझते।
वैसे भारतीय रेल के कैश सरप्लस का राज़ मुझे आज बिजनेस स्टैंडर्ड के प्रमुख संपादक ए के भट्टाचार्य के लेख से समझ में आया। भट्टाचार्य उदाहरण देकर बताते हैं कि 2005 में जहां 10 लाख टन माल ढुलाई से रेल की अनुमानित आमदनी 53 करोड़ रुपए थी, वहीं लालू यादव की अगुआई में क्षमता के बेहतर इस्तेमाल से इसकी ढुलाई लागत 13 करोड़ रुपए पर ले आई गई। इससे हर दस लाख टन पर रेलवे की शुद्ध आमदनी 40 करोड़ रुपए हो गई। इस तरीके पर अमल करके भारतीय रेल ने साल 2004-05 में 7000 करोड़ रुपए का कैश सरप्लस कमाया जो अब बढ़ते-बढ़ते 25000 करोड़ तक पहुंच गया है। खैर, जो भी हो। लालू ने रेल के ऊपर जादू की छड़ी तो घुमाई ही है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। लेकिन लालू ने कुछ हेराफेरी भी की है।
चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए
लालू ने एसी-1 के किराए में 7 फीसदी और एसी-2 के किराए में 4 फीसदी कमी का ऐलान किया है। लेकिन इसके साथ दो शर्तें जोड़ दी हैं। एक, इसकी आधी ही कमी पीक सीजन में मिलेगी। यानी इसका पूरा लाभ साल भर में केवल तीन महीने – फरवरी, मार्च और अगस्त में मिलेगा। दो, यह कमी लोकप्रिय ट्रेनों पर लागू नहीं होगी। रेलवे बोर्ड अभी ‘लोकप्रिय’ ट्रेनों की परिभाषा तैयार कर रहा है। लेकिन बताते हैं कि इस सूची में करीब 450 एक्सप्रेस और मेल ट्रेनें शामिल हैं, जिनमें राजधानी और शताब्दी तो आराम से आ जाएंगी।
इसके अलावा लालू ने द्वितीय श्रेणी के अनारक्षित किराए में 5 फीसदी कमी की घोषणा की है। इससे 100 किलोमीटर तक के सफर पर एक रुपए और 500 किलोमीटर तक के सफर पर 5 रुपए कम लगेंगे। लेकिन उन्होंने उस सेफ्टी सरचार्ज को विकास शुल्क के नाम पर अब भी जारी रखा है, जिसे मार्च 2007 में ही खत्म हो जाना चाहिए था और जिसके खिलाफ प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर संसद की स्थाई समिति तक एतराज़ जता चुकी है। इसके तहत हर रेल यात्री से एक से लेकर 100 रुपए वसूले जाते हैं। ऐसे में किराए में दो-चार रुपए कमी का क्या मतलब रह जाता है?
स्केच साभार: ब्रेन चिमनी
2 comments:
अनिल जी,बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सिर्फ राजनीतिक बयान दे रहें हैं। आंकड़ों का भ्रम जाल बनाने से नीतीश कुमार रेल मंत्री लालू यादव को चुनौती नहीं दे सकते। उनके कार्यकाल में रेल मंत्रालय को एक सफेद हाथी कहा जाता था। कोई भी आंकड़े रेल मंत्रालय को लाभ की स्थिति में नहीं ला सका। सफेद हाथी के कारण एनडीए सरकार प्राइवेट सेक्टर को सौपने के लिये माहौल बनाने में जुटी थी रेलवे को फायदे में लाना दूर की बात थी। लालू यादव ने रेलवे को फायदे में लाया। देश भर में रेलवे-विकास के काम देखने को मिल रहे हैं। बहरहाल, अभी रेलवे में सुधार की काफी गुंजाइश है ।इसलिये नीतीश कुमार ने जो कहा है राजनीति दृष्टि से अच्छा है लेकिन वास्तिवकता सामने है।
लालू शब्दों के मायाजाल में माहिर हैं. जितना दिखता है ,उतना होता नहीं. जो दिखाना चाहिये ,वह छुपा रहता है.
ब्रेन चिमनी का स्केच बहुत भाया.
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