दिल खोलकर दिया टैक्स, अब दिखाओ दरियादिली
वित्त मंत्री पी चिदंबरम कल इस वक्त तक साल 2008-09 का आम बजट पेश कर चुके होंगे। अगर पिछले कुछ दिनों से उठे गुबार को सच मानें तो वो कृषि के लिए बड़े पैकेज का ऐलान कर सकते हैं जिसमें छोटे किसानों की कर्जमाफी एक बड़ा कदम होगा। साथ ही मध्यवर्ग को खुश करने के लिए आयकर छूट की सीमा 1.10 लाख रुपए के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 1.25 लाख या 1.50 लाख रुपए कर सकते हैं। सब्सिडी में कमी नहीं करेंगे, कृषि आय पर टैक्स नहीं लगाएंगे। खास बात ये है कि इस साल का बंपर कर राजस्व उन्हे ऐसी दरियादिली दिखाने का पूरा मौका भी दे रहा है।
चिदंबरम ने कुछ दिनों पहले खुद ही माना है कि इस बार अप्रत्यक्ष कर संग्रह 2,79,190 करोड़ रुपए के लक्ष्य से ज्यादा रहेगा। और, अगर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के अधिकारियों की मानें तो इस बार प्रत्यक्ष कर संग्रह तीन लाख करोड़ रुपए के ऊपर पहुंच जाएगा, जबकि लक्ष्य 2,68,932 करोड़ रुपए का था। अगर ऐसा होता है तो यह एक ऐतिहासिक बात होगी क्योंकि देश में पहली बार प्रत्यक्ष कर संग्रह अप्रत्यक्ष कर संग्रह से ज्यादा रहेगा। साल 2007-08 के बजट अनुमान के मुताबिक अप्रत्यक्ष कर संग्रह कुल कर राजस्व 5,48,122 करोड़ रुपए (राज्यों के हिस्से समेत) का 51 फीसदी और प्रत्यक्ष कर संग्रह को 49 फीसदी रहना था। लेकिन अगर प्रत्यक्ष कर (कॉरपोरेट कर, आयकर) तीन लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया तो कुल कर संग्रह में इसका हिस्सा 51 फीसदी हो जाएगा।
इसकी अहमियत इसलिए है क्योंकि आमतौर पर विकासशील देशों में कुल कर राजस्व में अप्रत्यक्ष करों का हिस्सा प्रत्यक्ष करों से कम रहता है। 1990-91 में जब देश में आर्थिक सुधारों का दौर शुरू हुआ तब कुल कर राजस्व में प्रत्यक्ष करों का हिस्सा 19.6 फीसदी था, जिसका करीब-करीब आधा हिस्सा आयकर और कॉरपोरेट कर का था। साल 2006-07 तक कुल कर राजस्व में प्रत्यक्ष करों का हिस्सा 47.6 फीसदी (आयकर – 17.5 फीसदी, कॉरपोरेट कर – 30.1 फीसदी) हो गया, जबकि अप्रत्यक्ष करों का हिस्सा घटते-घटते 52.1 फीसदी पर आ गया। 1990-91 में अप्रत्यक्ष कर संग्रह कुल कर राजस्व का 78.4 फीसदी हिस्सा हुआ करता था।
मुझे याद है, उसके साल-दो साल बाद तक मुझ जैसे नौसिखिया आर्थिक पत्रकार इसी बात पर हाय-हाय करते थे। कहते थे कि जो सरकार अपनी कर आमदनी का तकरीबन 80 फीसदी हिस्सा आम लोगों की गैर-जानकारी में उनकी जेब काटकर (कस्टम और उत्पाद शुल्क के जरिए) जुटाती है, वह उनका भला कैसे कर सकती है। हम कभी भी आर्थिक सुधारों के हिमायती नहीं रहे। लेकिन 16-17 सालों के सुधारों के बाद अगर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों का अनुपात उल्टा हो गया है तो मानना ही पड़ेगा कि कुछ तो हुआ है। अर्थव्यवस्था बढ़ी है तो उसके साथ आबादी के एक हिस्से की आमदनी भी बढ़ी है जो अब खुशी-खुशी सरकार को टैक्स दे रहा है। इससे अर्थव्यवस्था में काले धन की कमी का अंदाज़ा भी लगाया जा सकता है।
आम तौर पर माना जाता है कि प्रत्यक्ष कर सरकार के लिए राजस्व जुटाने का ज़रिया हैं, जबकि अप्रत्यक्ष कर समाज में समता लाने का माध्यम हैं। लेकिन अपने यहां प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों का अनुपात बदलने के बावजूद ऐसा नहीं हुआ है। सरकार विश्व व्यापार संगठन (WTO) के दबाव में कस्टम ड्यूटी (सीमा शुल्क) घटाती जा रही है और बड़े उद्योगों के दबाव में उपभोक्ता वस्तुओं को एक्साइज (उत्पाद शुल्क) घटाकर सस्ता बना रही है। हमारी सरकार के लिए अप्रत्यक्ष कर समता लाने का माध्यम नहीं बने हैं। इसका सबूत है कि आज एलसीडी टीवी सस्ता होता जा रहा है, जबकि दालें आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं।
यूपीए सरकार की मुखिया कांग्रेस ने अपने नारों में आम आदमी को केंद्र में रखा है। इसी नारे के दम पर वह अगले साल के आम चुनाव भी फतेह करना चाहती है। ज़ाहिर है कि चिदंबरम कल लगातार यही दिखाने की कोशिश करेंगे कि उनके सारे कदम आम आदमी के हित में उठाए गए हैं, किसानों के भले के लिए हैं, गरीबों के उत्थान के लिए हैं। लेकिन जो दिखता है और जो बोला जाता है, वही सच नहीं होता। इसलिए चिदंबरम के ताज़ा बजट को बड़े गौर से देखने-सुनने की ज़रूरत है।
चिदंबरम ने कुछ दिनों पहले खुद ही माना है कि इस बार अप्रत्यक्ष कर संग्रह 2,79,190 करोड़ रुपए के लक्ष्य से ज्यादा रहेगा। और, अगर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के अधिकारियों की मानें तो इस बार प्रत्यक्ष कर संग्रह तीन लाख करोड़ रुपए के ऊपर पहुंच जाएगा, जबकि लक्ष्य 2,68,932 करोड़ रुपए का था। अगर ऐसा होता है तो यह एक ऐतिहासिक बात होगी क्योंकि देश में पहली बार प्रत्यक्ष कर संग्रह अप्रत्यक्ष कर संग्रह से ज्यादा रहेगा। साल 2007-08 के बजट अनुमान के मुताबिक अप्रत्यक्ष कर संग्रह कुल कर राजस्व 5,48,122 करोड़ रुपए (राज्यों के हिस्से समेत) का 51 फीसदी और प्रत्यक्ष कर संग्रह को 49 फीसदी रहना था। लेकिन अगर प्रत्यक्ष कर (कॉरपोरेट कर, आयकर) तीन लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया तो कुल कर संग्रह में इसका हिस्सा 51 फीसदी हो जाएगा।
इसकी अहमियत इसलिए है क्योंकि आमतौर पर विकासशील देशों में कुल कर राजस्व में अप्रत्यक्ष करों का हिस्सा प्रत्यक्ष करों से कम रहता है। 1990-91 में जब देश में आर्थिक सुधारों का दौर शुरू हुआ तब कुल कर राजस्व में प्रत्यक्ष करों का हिस्सा 19.6 फीसदी था, जिसका करीब-करीब आधा हिस्सा आयकर और कॉरपोरेट कर का था। साल 2006-07 तक कुल कर राजस्व में प्रत्यक्ष करों का हिस्सा 47.6 फीसदी (आयकर – 17.5 फीसदी, कॉरपोरेट कर – 30.1 फीसदी) हो गया, जबकि अप्रत्यक्ष करों का हिस्सा घटते-घटते 52.1 फीसदी पर आ गया। 1990-91 में अप्रत्यक्ष कर संग्रह कुल कर राजस्व का 78.4 फीसदी हिस्सा हुआ करता था।
मुझे याद है, उसके साल-दो साल बाद तक मुझ जैसे नौसिखिया आर्थिक पत्रकार इसी बात पर हाय-हाय करते थे। कहते थे कि जो सरकार अपनी कर आमदनी का तकरीबन 80 फीसदी हिस्सा आम लोगों की गैर-जानकारी में उनकी जेब काटकर (कस्टम और उत्पाद शुल्क के जरिए) जुटाती है, वह उनका भला कैसे कर सकती है। हम कभी भी आर्थिक सुधारों के हिमायती नहीं रहे। लेकिन 16-17 सालों के सुधारों के बाद अगर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों का अनुपात उल्टा हो गया है तो मानना ही पड़ेगा कि कुछ तो हुआ है। अर्थव्यवस्था बढ़ी है तो उसके साथ आबादी के एक हिस्से की आमदनी भी बढ़ी है जो अब खुशी-खुशी सरकार को टैक्स दे रहा है। इससे अर्थव्यवस्था में काले धन की कमी का अंदाज़ा भी लगाया जा सकता है।
आम तौर पर माना जाता है कि प्रत्यक्ष कर सरकार के लिए राजस्व जुटाने का ज़रिया हैं, जबकि अप्रत्यक्ष कर समाज में समता लाने का माध्यम हैं। लेकिन अपने यहां प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों का अनुपात बदलने के बावजूद ऐसा नहीं हुआ है। सरकार विश्व व्यापार संगठन (WTO) के दबाव में कस्टम ड्यूटी (सीमा शुल्क) घटाती जा रही है और बड़े उद्योगों के दबाव में उपभोक्ता वस्तुओं को एक्साइज (उत्पाद शुल्क) घटाकर सस्ता बना रही है। हमारी सरकार के लिए अप्रत्यक्ष कर समता लाने का माध्यम नहीं बने हैं। इसका सबूत है कि आज एलसीडी टीवी सस्ता होता जा रहा है, जबकि दालें आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं।
यूपीए सरकार की मुखिया कांग्रेस ने अपने नारों में आम आदमी को केंद्र में रखा है। इसी नारे के दम पर वह अगले साल के आम चुनाव भी फतेह करना चाहती है। ज़ाहिर है कि चिदंबरम कल लगातार यही दिखाने की कोशिश करेंगे कि उनके सारे कदम आम आदमी के हित में उठाए गए हैं, किसानों के भले के लिए हैं, गरीबों के उत्थान के लिए हैं। लेकिन जो दिखता है और जो बोला जाता है, वही सच नहीं होता। इसलिए चिदंबरम के ताज़ा बजट को बड़े गौर से देखने-सुनने की ज़रूरत है।
Comments
दो दिन से अखबार नहीं देखा!
माननीय चिदंबरम जी से कोई सेटिंग है क्या । यह कमेंट मैं बजट खत्म होने के बाद कर रहा हूं । लेकिन जो आशंकाएं आपने व्यक्त की थीं वही नतीजे में बदल गए । आपकी विद्वता का मै कायल ऐसे थोड़े ही रहता हूं । आज के अंक के लिए प्रख्यात अखबारों का झमाझम एंकर हो सकता था । कसम से हिट हो जाता अखबार । लोग कयास लगाते कि जरूर इस रिपोर्टर का वित्त मंत्रालय में जुगाड़ है । देश के जाने माने आइडिया बाज लोग कयासबाजी एक महीने से कर रहे हैं,लेकिन वही ढाक के तीन पात । ये हो जाएगा तो ये हो जाएगा । हालांकि ट्रेंड एवं विश्लेषण के आधार पर प्रिडक्शन किया जा सकता है । लेकिन इतना सटीक? दूसरे कितने लोग हैं इस तरह की प्रिडक्शन जो दे सकते हैं? लोगों को जरूर गौर करना चाहिए । आपके विचारों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है ।