देश के एक तिहाई नौजवान अनपढ़ हैं, दलित हैं

हम गर्व करते हैं कि भारत नौजवानों का देश है क्योंकि हमारी आबादी के 65 फीसदी हिस्से की उम्र 35 साल से कम है। लेकिन हमें शर्म नहीं आती कि इन नौजवानों का 35 फीसदी हिस्सा आज भी अशिक्षित है। यह हकीकत टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (टीआईएसएस) के ताजा अध्ययन से सामने आई है। इस अध्ययन के मुताबिक देश के एक-तिहाई नौजवान अनपढ़ हैं और दिहाड़ी मजदूर बनने के लिए अभिशप्त हैं क्योंकि देश में रोज़गार के बढ़ते अवसर पढ़े-लिखे लोगों को ही मिल सकते हैं। इस अध्ययन में यह तो नहीं बताया गया है कि इन अशिक्षित नौजवानों की जाति क्या है, लेकिन हम अपने सामान्य अनुभव से जान सकते हैं कि तकरीबन ये सारे के सारे नौजवान दलित समुदाय के होंगे।

यह खबर आज अखबार में छप चुकी है। फिर भी इसे यहां इसलिए प्रस्तुत कर रहा हूं ताकि दलितों की दुर्दशा का प्रमाण मीडिया में खोजनेवाले प्रतिबद्ध पत्रकार आंखें उठाकर थोड़ा बाहर भी झांकें। टीआईएसएस ने देश भर के 593 ज़िलों में सर्वे किया। उसने पाया कि इनमें से 27 ज़िलों में निरक्षरता की दर 66 फीसदी है, जबकि 182 ज़िलों में यह दर 35 से 50 फीसदी है। महिलाओं में निरक्षरता की दर पुरुषों की बनिस्बत लगभग दोगुनी है और ग्रामीण इलाकों में निरक्षरता का अनुपात शहरों के मुकाबले बहुत ज्यादा है।

गांवों और शहरों के गरीब तबकों में जो नौजवान साक्षर भी हैं, उनमें से ज्यादातर सातवीं कक्षा से आगे नहीं जा पाए हैं और उच्च शिक्षा में जानेवालों की संख्या तो बहुत ही मामूली है। ऐसे में देश में 8-9 फीसदी सालाना की दर से हो रहे आर्थिक विकास का कोई लाभ इन नौजवानों को नहीं मिलनेवाला। कारण यह है कि अभी के आर्थिक विकास में आधे से ज्यादा का योगदान सेवा क्षेत्र का है जिसमें कुशल श्रमिकों को ही नौकरियां मिलती हैं। जिनकी जितनी ज्यादा पढ़ाई होती है, उनको उतनी ही बेहतर पगार मिलने की संभावना होती है।

टीआईएसएस की यह अध्ययन रिपोर्ट सरकार के सर्वशिक्षा अभियान की भी पोल खोल देती है। साथ ही राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गांरटी जैसे कार्यक्रमों में निहित बुनियादी कमी की ओर भी इशारा करती है। इस अध्ययन से जुड़े टीआईएसएस के एसोसिएट प्रोफेसर बिनो पॉल का कहना है कि रोज़गार गांरटी कार्यक्रम को मुफ्त शिक्षा के अभियान से जोड़ देना चाहिए, तभी हम गांवों में साक्षरता का स्तर बढ़ा सकते हैं। अंत में शुरू के आंकड़ों को थोड़ा और विस्तार से बता दूं। मीडिया एजेंसी MindShare के मुताबिक भारत की 65 फीसदी आबादी यानी 70 करोड़ से ज्यादा भारतीयों की उम्र 35 साल से कम है और करीब 50 फीसदी यानी 55 करोड़ से ज्यादा नौजवानों की उम्र 25 साल से कम है।
फोटो साभार: Twilight Fairy

Comments

अनिल जी आपने सही कहा, हमें शर्म नहीं आती है, सेंसेक्‍स के उछाल के साथ हम भी उछलने लगते हैं, इसी देश में मुंबई जैसे शहर से दूसरे राज्‍यों से आए लोगों पर निशाना बनाया जाता है, फिर भी हम गुड फील करते हुए शरमाते नहीं है
Priyankar said…
सीधे समस्या की जड़ में -- उसकी तह में -- पहुंच गए आप तो . अब विमर्श कैसे होगा ?
"मीडिया एजेंसी MindShare के मुताबिक भारत की 65 फीसदी आबादी यानी 70 करोड़ से ज्यादा भारतीयों की उम्र 35 साल से कम है और करीब 50फीसदी यानी 55 करोड़ से ज्यादा नौजवानों की उम्र 25 साल से कम है।"

साहब जी,

भारत की ६५ फीसदी आवादी अगर ७० करोड़ होती है तो भारत की जनसंख्या १०८ करोड़ हुई. भारत की ५० फीसदी आवादी अगर ५५ करोड़ होती है तो भारत की जनसंख्या ११० करोड़ है.

इस रपट के हिसाब से अगर भारत की आवादी ११० करोड़ मान ली जाय तो भी भारत में ३५ साल तक की उम्र के लोगों की संख्या १२५ करोड़ है. आपको थोड़ा कन्फ्यूजिंग नहीं लगते ये आंकडे?
azdak said…
बिन शिक्षा सब तरक्‍की ससुर पानी में माछेर झोल बनाने माफिक है. मगर हम यहां तिल-तिल होते रहें. जिन्‍हें टिल्‍ल-टिल्‍ल होना है वो तो हो ही रहे हैं!
Arun Arora said…
ये आकडे आकडा डाल कर एसी आफ़िसो मे बनाये जाते है..जो सैम्पल पर आधारित होते है..१० महिलायो से पुछने पर अगर ७ गर्भवती हो तो सारा देश ७०% जनसंख्या बडाने को तत्पर दिखाई देगा इनकी रिपोर्ट मे..:)
आंकड़े चक्कर में डालते ही हैं। हमारा अनप्रोडक्टिव एज ग्रुप कहीं आता है या दिवंगत है!
और निरक्षर/बेरोजगार दलित ही हैं - यह कैसे?
यह लेख देखा जाये।
Sanjay Tiwari said…
भाई बालकिशन आपने किस तरह आंकड़ा 125 करोड़ पहुंचा दिया. मौज में थे क्या?
Sanjay Tiwari said…
सीधी सी बात है. 65 फीसदी आबादी है 35 साल की उम्र की. अब अगली बात 50 फीसदी आबादी है 25 साल से कम. इसका मतलब देश की कुल आबादी का 15 फीसदी 25 से 35 साल के बीच है और 50 फीसदी 25 साल से कम.

आपने दोनों को जोड़ दिया. ऐसा मत करिए, माईंड शेयर आपको सलाहकार रख लेगा.
@
बालकिशन जी, संजय जी ने बात साफ कर ही दी। 35 साल तक के नौजवानों (70 करोड़) में तो 25 साल तक के नौजवान (55 करोड़) तो शामिल ही हैं न। अब आप किसी एमए करनेवाले से ये तो नहीं पूछेंगे कि आपने हाईस्कूल किया है कि नहीं।
ghughutibasuti said…
आंकड़ें जो भी कहें हम अपनी आँखों से तो देख ही सकते हैं कि यदि कोई अत्यन्त गरीब है तो उसके दलित होने की संभावना अधिक होती है । यदि कोई अत्यन्त गरीब है तो उसके अनपढ़ होने की संभावना अधिक होती है । सर्व शिक्षा के साथ साथ हमें पाठ्यक्रम में भी कुछ बदलाव लाने चाहिये । जैसे विग्यान और गणित के प्रश्नपत्र दो लैवल के हों । जिन्हें आगे जाकर विग्यान व गणित ना लेना हो वे अंकगणित जानकर ही अगली कक्षा में जा सकें ।
घुघूती बासूती
संजय भाई और अनिल भाई,

आंकडे की आदत नहीं है शायद इसीलिए गलती हो गई. अब देखिये न, एक साधारण भारतीय के लिए आंकडे कितने भयावह होते हैं. जैसे मेरे केस में हो गया.
Udan Tashtari said…
सही कह रहे हैं.

Popular posts from this blog

मोदी, भाजपा व संघ को भारत से इतनी दुश्मनी क्यों?

चेला झोली भरके लाना, हो चेला...

घोषणाएं लुभाती हैं, सच रुलाता है