साल भर पहले ब्लॉग बनाया था तो यही सोचा था कि बरसों से दबे हुए सारे उदगार निकाल डालूंगा। अनलिखी कहानियां और उपन्यास अब मेरी इस चलती-फिरती डायरी में दर्ज हो जाएंगे। डायरी सार्वजनिक है तो क्या? जिसको पढ़ना है, पढ़ लेगा। नहीं पढ़े तो अच्छा ही है। मुझ पर क्या फर्क पड़ेगा? अपना एकांतिक लेखन चलता रहेगा। साल-दो साल में जब रचनाएं सज-संवर तक पूरी तरह तैयार हो जाएंगी, तब किसी प्रकाशक के पास जाऊंगा और रचनाओं में क्योंकि नायाब अनुभव होंगे, इसलिए शायद ही कोई प्रकाशक इन्हें छापने से इनकार करेगा। अगर, हिंदी प्रकाशकों ने इनकार भी कर दिया तो अंग्रेज़ी प्रकाशक तो हैं ही, जिनके लिए अपनी किताबों का अंग्रेज़ी अनुवाद खुद कर दूंगा या किसी से पैसे देकर करवा लूंगा।
लेकिन साल भर होने पर पूरा नज़रिया ही बदल गया है। अनलिखी कहानियों और उपन्यास के नोट्स अब भी पुरानी डायरियों में जहां-तहां बिखरे पड़े हैं। अब तो मन में चलते-फिरते, आते-जाते जो स्फुट विचार आते हैं, उन्हें ही सूत्रबद्ध करने की उतावली लगी रहती है। कभी अपने हिसाब से कोई अच्छा विश्लेषण लिख दिया या जानकारी दे दी और उस पर खुदा न खास्ता कई घंटों बाद भी कोई टिप्पणी नहीं आई तो दिल बैठने लगता है। लिखने का दूरगामी नज़रिया एकदम अल्पकालिक हो चुका है। निष्काम भाव से लिखने की मूल मंशा अब तत्काल फल चाहने लगी है। इधर लिखा, उधर टिप्पणी आई तो मोगाम्बो खुश, नहीं तो देवदास जैसी निराशा बाहर से लेकर भीतर तक छा जाती है।
जो ब्लॉगर टिप्पणियां बटोर ले जाते हैं, उनसे यकीन मानिए, बड़ी जलन होती है। सोचने लगता हूं कि हम कोई एकालाप तो करते नहीं, न ही फालतू बातें लिखते हैं, फिर भी ज्यादा लोग संवाद करने क्यों नहीं आते। कुछ ब्लॉगरों की तरह बहुत दुरूह बातें भी नहीं लिखता जो सभी के सिर के ऊपर से गुजरती हों। मैं तो वही बातें लिखने की कोशिश करता हूं जो किसी के भी रोजमर्रा के सोच-विचार का हिस्सा होती हैं। फिर भी बात नहीं हो पाती तो इसका मतलब यही निकाला जाए कि अभी तक मैं हिंदी समाज के सक्रिय व संवेदनशील तबके की मुख्यधारा से एकाकार नहीं हो पाया हूं। या कहीं ऐसा तो नहीं कि मुख्यधारा खाली ऊपर की झागधारा हो और अंतर्धारा कहीं नीचे बह रही हो, जो मनमाफिक छवियों की झलक पाकर ही ऊपर सिर निकालेगी।
जो भी हो, समझ नहीं पाता कि ब्लॉग शुरू करके मैं किस झंझट में पड़ गया हूं। लिखूं तो किसके लिए लिखूं और क्यों लिखूं? सर्च-इंजन से तो मेरे ब्लॉग पर वैसे लोग आते नहीं, जैसे जीतू भाई के पन्ने पर आते हैं। अभी तक जितने भी पाठक हैं, सभी एग्रीगेटर से आते हैं और इनमें से 98 फीसदी खुद ब्लॉगर हैं। तो क्या फिलहाल जब तक असली पाठक नहीं आते, तब तक मैं केवल ब्लॉगर्स के लिए ही लिखूं। लेकिन इससे क्या फायदा? या ऐसा करूं कि जैसा माहौल चल रहा हो, उसी पर लिखूं। महिला, दलित, मोदी, ब्राह्मण बहुत से मसले आते-गिरते रहते हैं। या, ऐसा भी कर सकता हूं कि हेडिंग कुछ सनसनीखेज़ लगाऊं, जबकि अंदर कोई और माल पेश करूं।
समझ में नहीं आ रहा कि क्या लिखूं, किसके लिए लिखूं? या लिखूं भी कि ब्लॉग पर लिखना ही बंद कर दूं। आखिर इस अल्पजीवी लेखन की कोई सार्थकता भी है क्या? इस सक्रियता का कोई मतलब भी है क्या? साल भर में 323 पोस्ट लिख मारी तो मिल क्या गया? मेहनत तो लगती ही है। लेकिन इस मेहनत से दो-चार साल तक कोई कमाई तो होनी नहीं है। बाद में कमाई हो जाएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं। फिर क्यों लिखा जाए? ब्लॉगरों के लिए ही लिखना है तो क्या फायदा। वे तो खुद ही बहुत समझदार हैं। उन पर अपनी बात थोपकर मैं उनका अनावश्यक बोझ क्यों बढ़ाऊं?
अपनी उलझनें पहले मैं सुलझा लूं, तब उनके पास जाऊं तो हो सकता है कि कोई फायदा निकले। इसलिए तब तक शायद इंतज़ार करना ही बेहतर है जब तक हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया ब्लॉगर्स के दायरे से निकलकर असली पाठकों तक नहीं पहुंच जाती। तो आप लोग फसल तैयार कीजिए। जब पककर तैयार हो जाएगी तो इत्तला कर दीजिएगा। हम फौरन हाज़िर हो जाएंगे। इसी पॉजिटिव नोट के साथ विदा लेता हूं। नमस्कार...
मतदाता जागरूकता गीत
1 month ago
35 comments:
अरे अनिल जी, आपके यहां जो लगते हैं अपने से और जिनसे गुलजार है महफिल दोनों कटेगरी में रिजेक्ट माल नहीं है। ऐसा कैसे? खैर हमने तो जिस दिन से ब्लॉग बनाया उसी दिन से पसंदीदा ब्लॉग है आपका।
मुझे भी भ्रम था कि जिनसे गुलजार है महफिल, उनमें रिजेक्ट माल है। शायद गलती से रह गया था। अब जो लगते हैं अपने से, उसमें रख दिया है।
एक दुरूह सी टिप्पणी छोड़ जाऊं?..
अरे !! आप तो इतना अच्छा लिखते हैं. मैं तो प्रशंसक हूं आपका. हां कभी कभी ही टिप्पणी कर पाता हूं.
हालांकि टिप्पणी पाना अच्छा ज़रूर लगता है, किंतु टिपणी न आने का मतलब यह भी नहीं मानना चाहिये,किसी ने पसन्द नहीं किया.
अनिल भाई ,
लिखते रहिये जैसा जी करे --
ब्लॉग तो इसी आशय से लिखा जाता है -
थैक्स, अनिल जी। आपका अपना तो मैं रहा ही हूं। बाकी टेक्निकल मामला है।
"जो भी हो, समझ नहीं पाता कि ब्लॉग शुरू करके मैं किस झंझट में पड़ गया हूं। लिखूं तो किसके लिए लिखूं और क्यों लिखूं?"
कैसी बात करते हो अनिल, मेरे अनुज. तुम्हारा ब्लोग तो हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ चिट्ठों में से एक है. लिखते रहो.
सारथी परसों "मेरी पसंद के चिट्ठे" नाम से एक लेखन परंपरा चालू करने वाला है जिसमे यह चिट्ठा फीचर होने वाला है.
अपना टेलीफोन नंबर जरा पर मुझे webmaster@sarathi.info पर आज ही भेज दो.
देखिए, शास्त्रीजी ने कितने प्यार व अधिकारभाव से लिखा है! ब्लॉग न लिखते होते तो मिलता इस तरह से भाई? या किसी भी तरह से? मेरा तो एक बड़ा भाई है वह प्यार, अधिकार या किसी भी भाव से प्रेरित होकर नहीं लिख पाता (पाते? ओह, आदर प्रकट करना कैसे तो भूल-सा गया हूं!
अनिलजी,
शायद अविनाश ने प्रमोदजी के धड़ाधड़ लिखने पर कहा था...कि यह कुछ रियाज़ जैसा है।
है भी।
लिखते लिखते अपनी ही बात नये उजाले में दिखती है। टिप्पणियों का अपना नशा है। पर लिखने का भी कुछ कम नहीं है।
शराब की तरह एक आउन्ज़ रोज़...और दीर्घायु होने की गारंटी है।
वैसे आप बेहतरीन लिखते हैं और हर बात का बहुत बारीकी से विश्लेषण करते हैं।
अमरत्व का मूल मंत्र ? अमृत पान ? बस कहीं ज़्यादा न हो जाये । संभल के !
यह बात सही है कि आप कुछ और लिखने के लिए ब्लाग की योजना बनाते हैं और लिखने कुछ और लगते हैं. शायद यही है जनता की मांग की ताकत.
श्रीकृष्ण महाराज ने शायद रघुराज महाराज के लिए ही कहा था- 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन!'
अजी ये आप कैसी बातें करने लग गये.. देखिये, मुझे पता है कि मैं आपके हर पोस्ट पर टिप्पणी नहीं कर पाता हूं ठीक वैसे ही की जैसे आप मेरे पोस्ट पर यदा कदा ही टिप्पणी करते हैं.. मगर इसका ये मतलब तो नहीं की मैं लिखना ही छोड़ दूं??
आप भरोसा रखिये कि मैं आपका हर पोस्ट पढता हूं ठीक वैसे ही जैसे मुझे आप पर भरोसा है.. :)
चलिये आपके नये पोस्ट का इंतजार करता हूं.. :)
अरे भाई!
आपको सब पढते हैं (कम से कम मैं जिन्हें जानता हूं). मन से पढते हैं . पर हर बार टिप्पणी करें,ऐसा नहीं होता . सो लिखते रहिए .
काहे ई सब दुविधा में धंसते हैं ?
ल्ल्लो जी आप भी हमारी तरह सोचने लगे.हम तो आपको गूगल रीडर से पढ़ते हैं इसलिये हमेशा टिप्पणी देना संभव नहीं हो पाता.लेकिन आप जैसे लोगों को तो टिप्पणीयों की आवश्यकता ही नहीं है. वह तो हम जैसे चिरकुटों को चाहिये...ताकि चिरकुटई करते रहें.
चलो भाई, टिप्पणी करो सब लोग, शाबास। देखो, टिप्पणी न मिलने पर बेचारा मोर भी क्या-क्या दिखाकर नाचना शुरू कर देता है!
चंद्रभूषण ने सही फरमाया. यह एक टिप्पणी घलुआ की..
"तब तक शायद इंतज़ार करना ही बेहतर है जब तक हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया ब्लॉगर्स के दायरे से निकलकर असली पाठकों तक नहीं पहुंच जाती। तो आप लोग फसल तैयार कीजिए। जब पककर तैयार हो जाएगी तो इत्तला कर दीजिएगा।"
प्रश्न फिर भी वहीं रह गया। क्या कोई ऐसा दिन आएगा जब एक आम पाठक (ब्लागर नहीं) चिट्ठा पढ़ेगा और उसे सराहेगा, उसके साथ दिए गए विज्ञापनों पर क्लिक करेगा, ख़रीददारी करेगा। कब ?
aapkii sabhi post padhti huun
अब प्रयास करेंगे कि रोज टिप्पणी करे। आते तो रोज ही है।
अनिल जी, आप मायूस हों जायेंगे तो कैसे काम चलेगा। आपको हमेशा पढते रहता हूं लेकिन कभी कभी कुछ शरारती लोगों को जो नफरत को बढावा देते हैं उन्हें जवाब देने में समय निकल जाता है ।
उम्मीद है अब आपकी नाराजगी दूर हो गयी होगी। माशा अल्लाह बहुत सारी टिप्पणियां दिख रही है।
तो बस अब ये सब विचार छोडिये और बस लिखते रहिये।
अनिलजी मैं जो बहुत गिने-चुने चिट्ठे पढंता हूं उनमें आपका चिट्ठा भी है, ये बात अलग है कि टिप्पणी नहीं दे पाता. कुछ तो आलस है और कुछ तो हम हैं ही.
आपके विश्लेषणात्मक लेख हिंदी ब्लागिंग की धरोहर हैं. हिंदी ब्लागिंग में जो स्तरीय ब्लाग हैं उनमें आपका ब्लाग भी है. टिप्पणियों पर ध्यान न दें लिखते रहें.
गूगल से ट्रेफिक आने के लिए आप अपनी पोस्ट्स के नीचे अंग्रेजी, हिंदी में लेबल लगा सकते हैं ज्यादातर ब्लागर ऐसा ही करते हैं शायद इसीलिए गूगल से ट्रेफिक आ रहा है.
मैं सभी के विचारो से सहमत हूँ .आप अपना नियमित लेखन जारी रखे .शुभकमनाओ के साथ
अरे यह क्या?? मैं हूँ न!! जल्द ही पूरा समय दूँगा. आप तो जारी रहो.
आप सही कहते हैं, यहाँ मैं भी तमाम तरह का साहित्य लिखने आया था पर हिट और कमेन्ट के चक्कर में कुछ और लिखने लगा. आपकी यह पोस्ट देखकर सोच रहा हूँ कि अब मुझे वापस अपने ढर्रे पर आना चाहिए. बजाय ब्लोग पर लिखने रजिस्टर पर हाथ से लिखना चाहिऐ. पर आप बहुत अच्छे लेखक हैं यह मैं जानता हूँ, क्योंकि आपके पोस्ट की भाषा इसका प्रमाण है.
दीपक भारतदीप
Anilji, hindi aur hindi chithajagat ka sach keh diya aapne.
आपकी यह समस्या मुझ जैसे धुर आलसी पाठकों की देन है, जो पढ़कर कट लेते हैं और टिप्पणी नहीं करते। लेकिन यह न सोचिए कि पढ़ने वाले नहीं हैं। आपके बहुत मुरीद हैं जो निरंतर आपके लेखन को सराहते रहते हैं, लेकिन मूक भाव से।
ओह ! पूरी 28 टिप्पणियाँ और अब तो उड़नतश्तरी भी छुट्टी मनाकर वापस आ गई है, अब तो मान जाइए और कबूल कर लीजिए कि रोज़ाना की तरह बराबर पोस्ट लिखेंगे वरना यह टिप्पणियों वाले आपको चैन से बैठने भी नहीं देंगे.
अरे टिप्पणियों को मारिये गोली। जो दिल के पास हो, मन को अच्छा लगे, लिखिये। अभी तो बहुत आगे जाना है।
देखिये मन की बात सामने आते ही इतने सारे गणमान्य लोग आपसे मुखातिब हो रहे हैं,अनिल जी आपकॊ हमेशा पढ़ता रहा हूँ...जो आप जो मन में आये लिखिये हम तो हैं ही पढने को..एक बात आपने सही लिखा है कि सारे पढ़ने वाले चिट्ठाकार साथी ही है..आम पाठक ?आप लिखिये वो भी आयेंगे ये हमारा विश्वास है..
मेरी भी मनस्थिति आप के जैसी बहुत दिनो से बनी हुयी है. दूसरा, कई दूसरी प्राथमिकताये भी है, जिसके चलते ब्लोग से गायब हू. पर कही भी 5 मिनट का समय मिलता है, तो आपका ब्लोग ज़रूर टटोलती हू. इरफान जी का ब्लोग भी कल देखा कि बन्द पडा है, उनका बिल भी शायद अभी तक समस्या है.
मेरा ब्लोग बन्द भी हो जाय तो भी ब्लोग जगत मे आपके, और कुछ दूसरे ब्लोग्स के लिये आना जाना रहेगा.
अनिलजी
ये तो सभी ब्लॉग लिखने वालों को समय-समय पर लगता है। लेकिन, टिप्पणी बहुत आ जाने से तो कोई बात बनने वाली है नहीं। आपने ही कहा कि ये ब्लॉगर ही पढ़ते हैं। सवाल वही कि 2000 के करीब के हिंदी ब्लॉगर के अलावा कौन पढ़ रहा है। वैसे अब गूगल से काफी लोग खोजते हुए मेरे ब्लॉग पर आने लगे हैं। मुझे नहीं लगता कि आपके ब्लॉग पर कोई खोजकर नहीं आता होगा।
अनिल जी,
आपने भाई साहिब के द्वारा(जो आपके सबसे बड़े प्रशंसक हैं)आपके लेखन से परिचय हुआ है,और इसका आनंद है। आप का सशक्त,संवेदनशील,विवेकी लेखन पाठकों को दूर सुदूर अपनी भाषा से जोड़ता है। ब्लागर या सिर्फ़ पाठक,अपना या पराया,दूर या पास: जो कोई शब्दों द्वारा लेखक के संदेश से जुड़ गया:वही अपना है।
स्वीकारें शुभेच्छा ।
यकीन मानिये टिप्पणी न करने वाले मेरे जैसे अनगिनत लोग भी आपको हर बार लगातार पढ़ते हैं। लिखते रहिये, पढ़ने वालों की चिंता मत कीजिये यही ब्लॉग समर का नियम होना चाहिये।
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